Chaitanya ji ke dohe
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hello mate
Explanation:
" चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्निनिर्वापणं,
श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधुजीवनम्।
आनंदाम्बूधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं,
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्।।"
अर्थात:- इस मायामय जगत में श्री कृष्ण संकीर्तन ही विजय को प्राप्त होता है। यही चित्त रूपी दर्पण का शोधन करता है। संसार रुपी महा दावानल को मिटने वाला है। कल्याण रूपी कुमुदिनी के विकास के लिए चन्द्रिका का विस्तार करने वाला है।विद्या रूप वधु का जीवन स्वरुप है।आनंद समुद्र को बढ़ने वाला है।पद पद पर पूर्ण अमृत का असस्वादन करवाने वाला है। बाहर भीतर से सर्वतोभावेन अन्तः करण पर्यन्त स्नान करवा देता है अर्थात सब पाप ताप नष्ट कर देता है।
"नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति-
स्तत्रार्पित नियमित: स्मरणे न कालः।।1।।
एतादृशी तव कृपा भगवन ! ममापि
दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नाअनुरागः।।2।।"
अर्थात:- हे भगवन जीवो की भिन्न भिन्न रूचि को रखने के लिए ही तो आपने अपने अनेक नामो को प्रकशित किया है और प्रत्येक नाम में अपनी सम्पूर्ण शक्ति भी स्थापित कर दी है और स्मरण के विषय में देश काल शुद्धाशुद्धि का भी नियम बंधन तोड़ दिया। हाय प्रभु! आपकी तो जीवो पर ऐसी अहैतुकी कृपादृष्टि वृष्टि है, तथापि मेरा ऐसा दुर्भाग्य है की आपके नाम में मुझे अनुराग उत्पन्न नहीं हो रहा।
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