chandra gehna se lauti ber kavita ka saar
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चंद्र गहना से लौटती बेर की व्याख्या- Chandr Gahna Se Lauti Ber Vyakhya: प्रस्तुत कविता में कवि केदारनाथ अग्रवाल जी ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। हरे-भरे खेत, बगीचे या फिर नदी का किनारा, सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। जिस समय यह कविता केदारनाथ जी ने लिखी थी, वह नगर में रहते थे और किसी कार्यवश वे चंद्र गहना नामक गाँव में आये थे। लौटते वक्त एक खेत के पास बैठकर वो प्रकृति का आनंद लेते हुए इस कविता की रचना करने लगे। अपनी कल्पना में वे खेतों में उगने वाली सारी फ़सलों को मानवीय रूप दे देते हैं और उनकी विशेषता बताते हैं। वे ये भी बताते हैं कि वो क्यों सुन्दर लग रही हैं। कवि केदारनाथ अग्रवाल जी अपनी कविता में नदी के तट पर भोजन ढूंढ रहे बगुले के साथ-साथ उस पक्षी का भी बहुत ही सुन्दर वर्णन करते हैं, जो नदी में गोता लगाकर अपना भोजन प्राप्त करता है।
उनके जाने का समय हो जाता है, उनकी ट्रेन आने वाली होती है। उन्हें इस बात का बहुत दुःख होता है कि उन्हें इस प्राकृतिक सौंदर्य से भरे गांव को छोड़कर फिर से नगर में जाना पड़ेगा। जहाँ रहने वाले लोग स्वार्थी एवं पैसे के लालची हैं। जिन्होंने गांव की इस सुंदरता को कभी देखा ही नहीं है। इस तरह हम कह सकते हैं कि कवि अपनी कविता के द्वारा अपने मन की बात कहने में पूरी तरह से सफल हुए हैं।