Hindi, asked by asmarahman9164, 1 year ago

Chandra Gehna se lauti Ber Kavita mein prakritik kis ki Bhumika Nibhaye rahi hai

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Answered by kairakhan
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केदारनाथ अग्रवाल जी ने 'चंद्र गहना से लौटती बेर' कविता में

प्रकृति के प्रति अनुराग व्यक्त किया है। चंद्र गहना नामक गाँव से लौटते समय वे

खेतों के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गए।

देख आया चंद्र गहना 

............  सज कर खड़ा है।

वे प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने ले लिए खेत की मेड़ पर बैठ

जाते हैं। उनकी नज़र एक छोटे से चने के पौधे पर पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे की वह एक

दूल्हा है जो शादी में जाने के लिए तैयार है क्योंकि वह सर पर गुलाबी फूल की पगड़ी

बांधे हुए है।

पास ही मिल कर उगी है 

...............  दूँ ह्रदय का दान

उसको।

वे देखते हैं कि उसके पास में एक अलसी उग रही है। ऐसा लगता

है कि वह हठ करके चने के पास उगी है। उसका शरीर पतला दुबला है और कमर लचकदार है।

वह सर पर नीले फूल पहने है। ऐसा लगता है कि वह सुंदरी कह कह रही है कि जो उसे

छुएगा वह उसे अपना दिल दे देगी।

और सरसों की न पूछो 

...............  उपजाऊ अधिक है।

कवि कहते है कि सरसों के सौंदर्य के बारे में न पूछा जाये

तो अच्छा है। वह एक सयानी युवती जैसी लग रही है जो शादी के मंडप में अपने हाथों को

पीला करके आई है। वहाँ गीत गाता हुआ फागुन का महिना आ गया है और ऐसा लगता है जैसे

वहाँ कोई स्वयंवर हो रहा है।

इस सुनसान जगह पर धरती का प्रेम से भरा अंचल झूम रहा है। सब

प्रसन्न दिखाई देते हैं। शहरों की अपेक्षा गाँव में धरती प्रेम के मामले में अधिक

उपजाऊ है। वहाँ सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे भी प्यार करते हैं। वहाँ

प्रकृति का प्रत्येक अंग प्रेम से भरा है।

और पैरों के टेल 

.............  प्यास जाने कब

बुझेगी!

कवी जहाँ बैठे है वहाँ पास में एक तालाब है। हवा चलने से

उसमें लहरें उठ रही हैं। उसकी नीली तली में जो भूरी घास है वह भी लहरा रही है।

उसमें पड़ने वाली सूरज की परछाईं आँखों को चुँधिया रही है। वह चाँदी के गोल खंभे

जैसी दिख रही है। तालाब के किनारे अनेक पत्थर पानी पी रहे हैं। कवि सोचते हैं कि

इन पत्थरों की प्यास पता नहीं  कब बुझेगी।

चुप खड़ा बगुला 

...........  उड़ती है गगन में!

तालाब में एक बगुला ध्यान में मगन खड़ा है। लेकिन यह ध्यान बनावटी

है क्योंकि मछलियों को देखते ही वह ध्यान त्याग देता है और उन्हें खा लेता है। कवि

देखते हैं कि एक चिड़िया जिसका माथा

सफेद है और पंख सफेद हैं, पानी की सतह पर झपट्टा मारती है और एक मछली को अपनी पीली

चोंच में दबाकर उड़ जाती है।

औ यहीं से 

..............  जाना नहीं है।

कवि जहाँ बैठे हैं वहाँ से कुछ दूरी पर जमीन उठी हुई है।

वहाँ रेल की एक पटरी है। कवि जानते हैं कि वह रेल के आने-जाने का समय नहीं है और

उन्हें भी कहीं आना जाना नहीं है। उन्हें उस समय कोई विशेष काम नहीं है।

चित्रकूट की अनगढ़ 

.............  कुरूप खड़े हैं।

कवि देखते हैं कि सामने दूर-दूर तक चित्रकूट की टेढ़ी-मेढ़ी,

उबड़-खाबड़, कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ फैली हुई हैं जिनकी भूमि अनुर्वर है। वहाँ रींवा

के काँटेदार, कुरूप पेड़ खड़े हैं जिनमें कोई आकर्षण नहीं है।

सुन पड़ता है 

...........  चुप्पे-चुप्पे।

कवि को तोते की आवाज़ सुनाई देती है। उन्हें उसकी आवाज़ बहुत

मधुर लगती है। दूसरी ओर से उन्हें सारस की आवाज़ सुनाई देती है। वह आवाज़ कहीं दूर से

वन प्रांत को चीरती हुई आती है। वह स्वर कभी तेज़ होता है और कभी मंद हो जाता है।

कवि उसे सुनकर प्रेमातुर हो जाते हैं। उनका मन करता है कि वे सारस के साथ उड़कर उस

जगह पर पहुँच जाएँ जहाँ हरे-भरे खेतों के बीच में यह युगल जोड़ी रहती है और प्रेम

की बातें करती है। वे छिपकर, चुपचाप खड़े होकर उनकी प्रेम कहानी सुनना चाहते हैं। 

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