chandra gupt ke samay magadh me sashan tha
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चन्द्रगुप्त ने 321 से लेकर 298 यानि लगभग तेईस वर्षों तक शासन किया। उसने स्वेच्छा से शासन त्याग किया और अपने बेटे बिन्दुसार को सत्ता सौंप दक्षिण कर्नाटक चला गया, जहाँ जैनियों के सल्लेखना विधि से अन्न त्याग कर उसने जीवन लीला ख़त्म की। प्रमाणों के अनुसार वह 25 की उम्र में मगध-सम्राट बनता है। 23 वर्ष शासन करने के बाद उसकी उम्र 48 की होगी। इस उम्र में सन्यास और सल्लेखना विधि से मृत्यु का स्वागत यह बताता है कि वह संकल्प-पुरुष था। उसने सब कुछ हासिल किया और सब कुछ का त्याग किया। नन्द साम्राज्य का उसने अंत अवश्य किया, लेकिन महापद्मनंद के पदचिन्हों पर ही चला और जिस मगध साम्राज्य की आधारशिला पद्मनन्द ने रखी थी, उसे उसने और बढ़ाया। सन्यास के कोई आठ साल पूर्व उत्तर-पश्चिम सीमांत इलाके में यवनों को पराजित कर उसने मगध की सीमा में ला दिया। दक्षिण में उसके रथों के घर्घर नाद को संगम कवियों ने सुना और उसे शब्दों में बाँधा। पूरब की तरफ भी उसने दूर तक अपनी सीमा रेखा खींची। पूरे हिमालय को उसने अपने साम्राज्य से जोड़ा। I hope it helps you
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