chapter -3 (रीढ़ की हड्डी )
प्रश्न-अभ्यास यह
1. रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा ज़माना था..." कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?
2. रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
3. अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
4. गोपाल प्रसाद विवाह को 'बिज़नेस' मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।
5. "...आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं..." उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
6. शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की-समाज को कैसे व्यक्तित्व की ज़रूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
7. 'रीढ़ की हड्डी' शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
8. कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों? 9. एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
10. इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।
11. समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं?
Answers
Answer:
1.'रीड की हड्डी' एकांकी में बाबू रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद अपनी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वैवाहिक संबंधों के अतिरिक्त अपनी बातों के बीच अपने पुराने जमाने को याद करते हुए उसे अच्छा बताते हैं ।दोनों बातचीत करते हुए अपने समय को वर्तमान की तुलना में बेहतर कहते हैं। हमारी दृष्टि में उन दोनों का अतीत और वर्तमान की तुलना करना कतई उचित नहीं है। यह सर्वज्ञात है कि समय सदैव परिवर्तनशील होता है ।इसके चलते कभी भी कोई बात या स्थिति भी स्थिर नहीं होती है।समय समय के अनुसार हर वस्तु स्थिति, परिस्थिति में परिवर्तन होना सृष्टि का नियम है तथा स्वभाविक है। अतः यही उचित है कि समय के साथ होने वाले हर परिवर्तन को हम सहज रूप में स्वीकार करें।
2. संकीर्ण मानसिकता एवं रूढ़िवादी परंपरा के चलते रामस्वरूप ने अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को छिपाकर, उसे मैट्रिक पास बताना, उसकी विवशता थी।लड़की का संबंध जोड़ने एवं उसे बनाए रखने के लिए रामस्वरूप को गोपाल प्रसाद एवं उसके बेटे शंकर की इच्छानुरूप चलना पड़ रहा था। गोपाल प्रसाद जी अपने बेटे शंकर के लिए उच्च शिक्षित बहू नहीं चाहते थे। दूसरी ओर रामस्वरूप गोपाल प्रसाद के बेटे से अपनी बेटी का विवाह करना चाहते थे। अतर रामस्वरूप जी विवशतावश अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को छुपा रहे थे।
3.गोपाल प्रसाद के बेटे शंकर से अपनी पुत्री उमा का रिश्ता करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा रखते थे, वह अनुचित था। लड़की कोई भेड़ बकरी या मेज कुर्सी नहीं जिसे किसी के हाथ बेच दिया जाए और वह अपनी कुछ भी क्रिया प्रतिक्रिया प्रकट न करें। उमा एक शिक्षित व समझदार, आधुनिक और स्वतंत्र विचारों वाली संतान है। वह अपने जीवन मैं अपना भला-बुरा स्वयं सोच सकती है। वह भी मनपसंद वर पाने की हकदार है। वह पद दलित बनकर चुपचाप दुख दर्द सहन नहीं कर सकती।पति के साथ मुंह सील कर दिया हीन ग्रंथि पालकर वह जीवन व्यतीत करने को तैयार नहीं है। अतर रामस्वरूप बेटी से जिस व्यवहार की अपेक्षा रखते थे ,वह उचित न था।
- 4. गोपाल प्रसाद का विवाह को बिजनेस मानना और रामस्वरूप द्वारा अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को छिपाना अनुचित है। वे दोनों ही समान रुप में अपराधी हैं। गोपाल प्रसाद विवाह संबंधों और उसकी पवित्रता को महत्व नहीं देते हैं। वे अपने व्यावसायिक दृष्टिकोण के चलते सौदा तय करने से पूर्व तरह-तरह की जांच पड़ताल कर लेना चाहते हैं।वे अपने आवारा बेटे की इच्छा कीमत वसूलने के लिए लालायित हैं।रामस्वरूप जी ने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा तो दिलवाई परंतु उसे छिपा कर भी अपनी विवशता प्रकट करते हैं।उनके द्वारा ऐसा करना कतई गलत है ।उन्हें इस प्रकार के संबंध को जोड़ने में पहल ही नहीं करनी चाहिए ,जिसमें उनकी बेटी किसी आवारा मनचले युवक के पल्ले बंद कर कभी सुख चैन ना पा सके ।अपनी बेटी को शिक्षा दिलवाकर उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है जिसे छुपाया जाए। वे व्यर्थ ही अपराध बोध से ग्रस्त हैं।
5. " .... आपके लाडले बेटे की रीड की हड्डी भी है या नहीं...."घुमा के इस कथन से गोपाल प्रसाद के बेटे शंकर की दो तरह की कमियां पाठकों के सामने उजागर होती हैं। एक, शंकर एक चरित्रहीन युवक है।गर्ल्स हॉस्टल में लड़कियों के इर्द-गिर्द आवारागर्दी करता हुआ पकड़ा गया था।तब उसने नौकरानी के पैरों पकड़कर माफी मांगी थी। तब कहीं जाकर उसकी जान छूटी थी। इस प्रकार उसमें चारित्रिक दृढ़ता का नए हो ना उससे रीड से हीन सिद्ध करता है। दूसरे, शंकर शारीरिक रूप से भी विकृत है। वह तन कर सीधा नहीं बैठ सकता है। गोपाल प्रसाद रामस्वरूप से बातें करते हुए उसे बीच-बीच में शंकर बैठने का निर्देश भी देते हैं।
6. रीड की हड्डी एकांकी में लेखक जगदीश प्रसाद गुप्त ने समाज के उन लोगों पर करारा व्यंग किया है जिनके दिल में स्त्री समाज के प्रति कोई सम्मान या आदर भाव नहीं है। गोपाल प्रसाद जैसे व्यक्ति उनमें मुख्य हैं किंतु उनका पुत्र शंकर और रामस्वरूप भी उनके पक्ष में चुप्पी साध कर समर्थन जताते हैं। समाज को ऐसे लोगों की कोई आवश्यकता नहीं है। शंकर चरित्रहीन, डब्बू व्यक्तित्व वाला पात्र है। वह शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर है। इस तरह वह समाज में उपेक्षित माना जा सकता है, जिसका समाज में कोई स्थान नहीं है। आज समाज को उमा जैसे व्यक्तित्व की आवश्यकता है। उमा शिक्षित, संस्कारित एवं स्वतंत्र विचारों वाली लड़की है। उसमें साहस के साथ ही स्पष्ट वक्ता होने का गुण भी है।उसमें समाज के तथाकथित ठेकेदार की कलाई खोल कर उन्हें आईना दिखाने का साहस है।
7. जगदीश प्रसाद गुप्त जीके एकांकी रीड की हड्डी का यह नाम एकदम सटीक एवं युक्ति संगत है।शरीर में रीड की हड्डी का महत्वपूर्ण स्थान है। यही उसे सीधा रखती है। यही स्थिति समाज की भी है। शंकर जैसे व्यक्तियों के पास स्वयं का तो कुछ होता नहीं है। वे स्वयं दूसरों के इशारों पर नाचते रहते हैं।आज भी समाज में अनेक शंकर जैसे रीड ही व्यक्तित्व हैं जो समाज का भला करने में असमर्थ है। विदिशा हीन होकर समाज का बड़ा अहित कर रहे हैं। अतः यह शीर्षक समाज की मुख्य भावना को व्यक्त करने में पूर्णत: समर्थ है।
8.कहानी की शुरुआत में उमा भले ही हमें गुण पत्र दिखाई देती है ,परंतु अंत में जाकर हमें आभास होता है कि वह इस एकांकी की मुख्य पात्र और एकांकी की सूत्रधार है।उमा के माध्यम से ही लेखक अपनी वाणी को प्रभावी ढंग से मुखरित कर पाया है ।उमा के माध्यम से उजागर संदेश स्वयं लेखक का है ।वह अपने सशक्त व्यक्तित्व का परिचय देकर अन्य पात्रों पर हावी हो जाती है। कथावस्तु उसी के इर्द-गिर्द घूमती है।