Characters of chapter-Sapno ke se din with explanation in hindi.
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Sapnon Ke Se Din Summary - पाठ सार (सपनों के-से दिन)
लेखक कहता है कि उसके बचपन में उसके साथ खेलने वाले बच्चों का हाल भी उसी की तरह होता था। सभी के पाँव नंगे, फटी-मैली सी कच्छी और कई जगह से फटे कुर्ते , जिनके बटन टूटे हुए होते थे और सभी के बाल बिखरे हुए होते थे। जब सभी खेल कर, धूल से लिपटे हुए, कई जगह से पाँव में छाले लिए, घुटने और टखने के बीच का टाँग के पीछे माँस वाले भाग पर खून के ऊपर जमी हुई रेत-मिट्टी से लथपथ पिंडलियाँ ले कर अपने-अपने घर जाते तो सभी की माँ-बहनें उन पर तरस नहीं खाती बल्कि उल्टा और ज्यादा पीट देतीं। कई बच्चों के पिता तो इतने गुस्से वाले होते कि जब बच्चे को पीटना शुरू करते तो यह भी ध्यान नहीं रखते कि छोटे बच्चे के नाक-मुँह से लहू बहने लगा है और ये भी नहीं पूछते कि उसे चोट कहाँ लगी है। परन्तु इतनी बुरी पिटाई होने पर भी दूसरे दिन सभी बच्चे फिर से खेलने के लिए चले आते। लेखक कहता है कि यह बात लेखक को तब समझ आई जब लेखक स्कूल अध्यापक बनने के लिए प्रशिक्षण ले रहा था। वहाँ लेखक ने बच्चों के मन के विज्ञान का विषय पढ़ा था।
लेखक कहता है कि कुछ परिवार के बच्चे तो स्कूल ही नहीं जाते थे और जो कभी गए भी, पढाई में रूचि न होने के कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। यहाँ तक की राशन की दुकान वाला और जो किसानों की फसलों को खरीदते और बेचते हैं वे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरुरी नहीं समझते थे। वे कहते थे कि जब उनका बच्चा थोड़ा बड़ा हो जायगा तो पंडत घनश्याम दास से हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि पढ़वाकर सीखा देंगे और दुकान पर खाता लिखवाने लगा देंगे।
लेखक कहता है कि बचपन में किसी को भी स्कूल के उस कमरे में बैठ कर पढ़ाई करना किसी कैद से कम नहीं लगता था। बचपन में घास ज्यादा हरी और फूलों की सुगंध बहुत ज्यादा मन को लुभाने वाली लगती है। लेखक कहता है की उस समय स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। ये कलियाँ इतनी सूंदर और खुशबूदार होती थीं कि लेखक और उनके साथी चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। परन्तु लेखक को अब यह याद नहीं कि फिर उन फूलों का वे क्या करते थे। लेखक कहता है कि शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक देती होगी या लेखक और उनके साथी खुद ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या 'चर' जाया करते होगें।
लेखक कहता है कि उसके समय में स्कूलों में, साल के शुरू में एक-डेढ़ महीना ही पढ़ाई हुआ करती थी, फिर डेढ़-दो महीने की छुटियाँ शुरू हो जाती थी। हर साल ही छुटियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चले जाता था। वहाँ नानी खूब दूध-दहीं, मक्खन खिलाती, बहुत ज्यादा प्यार करती थी। दोपहर तक तो लेखक और उनके साथी उस तालाब में नहाते फिर नानी से जो उनका जी करता वह माँगकर खाने लगते। लेखक कहता है कि जिस साल वह नानी के घर नहीं जा पाता था, उस साल लेखक अपने घर से दूर जो तालाब था वहाँ जाया करता था। लेखक और उसके साथी कपड़े उतार कर पानी में कूद जाते, फिर पानी से निकलकर भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर रेत के ऊपर लोटने लगते फिर गीले शरीर को गर्म रेत से खूब लथपथ करके फिर उसी किसी ऊँची जगह जाकर वहाँ से तालाब में छलाँग लगा देते थे। लेखक कहता है कि उसे यह याद नहीं है कि वे इस तरह दौड़ना, रेत में लोटना और फिर दौड़ कर तालाब में कूद जाने का सिलसिला पाँच-दस बार करते थे या पंद्रह-बीस बार।
Answer:
बचपन में भले ही हर कोई सोचता हो कि काश! हम बड़े होते तो अच्छा होता। लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, बचपन की उन्हीं यादों को याद कर खुश हो जाते हैं। बचपन में बहुत सी बातें पहले समझ में नहीं आती क्योंकि उस उम्र में समझ का स्तर सीमित होता है। कई बार जब हम बच्चों के रूप में कुछ समझ नहीं पाते हैं, तो वह सच हो जाता है।साथ ही लेखक ने इस पाठ में अपने बचपन की यादों का उल्लेख किया है
पाठ सारांश:
- सपनों के दिन दुनिया के आम लोगों की कहानी है। यह रोजमर्रा की चुनौतियों और जीत के बारे में एक कहानी है जिसका हम सभी सामना करते हैं। इस कहानी में, लेखक ने हर कल्पनीय विवरण पर एक व्यापक रूप प्रदान किया है। यह कहानी सरल, समझने में आसान शैली में लिखी गई है। कहानी जीवन, विचारों, परिवेश और पात्रों के बारे में उनकी धारणाओं को प्रकट करती है।आजादी से पहले हमारा गांव आज के गांव से काफी अलग था। गाँव फल-फूल रहा था, जहाँ लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी जी रहे थे और एक साथ काम कर रहे थे। समुदाय की एक मजबूत भावना थी, और हर कोई खुश था। बच्चों के लिए पढ़ना घर पर अटके रहने जैसा हो सकता है। किताबों से बचने का कोई उपाय नहीं है, चाहे आप कितना भी चाहें।
- स्कूल में छात्रों के ऊबने का कारण यह है कि शिक्षक बहुत सख्त होते हैं। स्कूल वह जगह है जहां छात्र सीखता है कि कैसे अपना आकार और रूप खोजना है। उनका स्कूल उन्हें उज्ज्वल भविष्य के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है। कवि समस्या से निपटने और समाधान की व्याख्या करने का एक तरीका प्रदान करता है
- स्कूल में एक प्रिंसिपल शर्मा जी हैं, जो दयालु और सज्जन हैं। उनका मानना है कि बच्चों की उम्र उन्हें सख्ती से आंकने से नहीं, बल्कि उन्हें स्नेह और प्यार से समझने से समझनी चाहिए। वह बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार और सजा का कड़ा विरोध करते हैं। इसलिए बच्चे उन्हें प्यार करते हैं। उन्होंने स्कूल में एक क्लास में भाग लिया।अपने अन्य शिक्षक प्रीतम चंद के विपरीत, जो दयालु और सौम्य हैं, उनके स्कूल के अन्य शिक्षक बच्चों के साथ कठोर व्यवहार करते हैं। लेकिन वे उन्हें कठोर और क्रूर दंड भी देते हैं। सभी बच्चे बड़ों से डरते हैं और अपने व्यवहार के कारण पढ़ाई से दूर भागते हैं। जिस दिन शर्माजी को इस तरह के व्यवहार का पता चलता है, वह उनकी सेवा में बाधा डालते हैं।यह कहानी आज के शिक्षकों को दिखाती है कि एक बच्चे का मन प्रेम दिखाने की ओर होता है, कठोर दंड की ओर नहीं।
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