Chaupai ke pratek charan me kitani matra hoti hai
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चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं।
मैं रामचरितमानस के सुंदरकांड से कुछ चौपाई और उनके अर्थ लिख रही हूं--
१) जलनिधि रघुपति दूत बिहारी, तै मैनाक होई श्रम हारी--
अर्थ-- समुद्र ने हनुमान जी को रामचंद्र जी का दूत समझा और मैनाक से कहां की तुम इनकी थकान दूर करो, इनको विश्राम करने दो।
२)मसक समान रूप कपि धरी। लंकही चलेउ सुमिरी नरहरी।
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सोह कह चलेसी मोहि निंदरी।।
अर्थ-- मच्छर का रुप धारण कर हनुमान जी लंका की ओर जा रहे हैं।
वहीं द्वार पर लंकिनी राक्षसी हनुमान जी से पूछती है कि बिना मेरे अनुमति के कहा जा रहा है।
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