छा क्या ही स्वच्छ
शात और न्युपचाप
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चारों ओर स्वच्छ चाँदनी बिखरी हुई है। ऐसा लग रहा है कि जैसे यह रात थम-सी गई है। एक मनमोहक सुगंध वातावरण में फैली हुई है। हर तरफ आनंद-ही-आनंद है। इस स्तब्ध कर देने वाली सुंदरता का प्रभाव सभी की सूत्रधार नियति अर्थात प्रकृति पर नहीं पड़ रहा है। उसके क्रिया-कलाप एकांत भाव से चुपचाप जारी हैं।
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