Hindi, asked by biswamdeb0626, 10 months ago

छोटे बच्चों से काम करवाना कानून की नज़र में अपराध है, फिर भी हजारों बच्चे इस तरफ
धकेल दिए जाते हैं । ऐसे बच्चों के लिए आप क्या क्या कर सकते हैं ? लिखिए ।​

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Answered by vishwaskumbhar15
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Explanation:

2 जी मामले में कनिमोड़ी और दूसरे आरोपियों की जमानत अर्जी पटियाला हाउस कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी। हालांकि सीबीआई ने जमानत अर्जी का विरोध नहीं किया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि मामला बेहद गंभीर है और ऐसे में इस मौके पर जमानत नहीं दी जा सकती। कानूनी जानकार बताते हैं कि गैर-जमानती अपराध में परिस्थितियों, सबूतों और मामले की गंभीरता को ध्यान में रखकर अदालत जमानत अर्जी पर फैसला देती है।

थाने से ही मिल सकती है जमानत

कानूनी जानकार बताते हैं कि मामले दो तरह के होते हैं - जमानती और गैर जमानती। आमतौर पर मामूली अपराध जैसे मारपीट, धमकी, लापरवाही से हुई मौत आदि के मामले जमानती अपराध की कैटिगरी में आते हैं। हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा ने बताया कि सीआरपीसी में एक सूची बनाई गई है कि कौन-कौन से अपराध जमानती हैं। ऐसे मामलों में आरोपी को जमानत का अधिकार होता है। गिरफ्तारी होने पर थाने से ही जमानत मिल सकती है। थाने का इंचार्ज बेल बॉन्ड भरने के लिए कह सकता है और बेल बॉन्ड भरने के बाद जमानत मिल जाती है।

गंभीर मामलों में नहीं मिलती जमानत

दूसरे मामले गैर-जमानती होते हैं। गैर-जमानती अपराध होने पर मामला मैजिस्ट्रेट के सामने जाता है। अगर मैजिस्ट्रेट को लगता है कि मामले में फांसी या उम्रकैद तक की सजा हो सकती है तो वह जमानत नहीं देता। इससे कम सजा के प्रावधान वाले मामले में मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत केस के मेरिट के हिसाब से जमानत दे सकती है। सेशन कोर्ट किसी भी मामले में जमानत अर्जी स्वीकार कर सकता है। जाने-माने वकील के. टी. एस. तुलसी ने बताया कि मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में अगर उम्रकैद या फांसी की सजा के प्रावधान वाले केस में जमानत अर्जी लगाई गई हो और सीआरपीसी की धारा-437 के अपवाद का सहारा लिया जाए तो उस आधार पर कई बार जमानत मिल सकती है। यह याचिका कोई महिला या शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार ही लगा सकता है। हालांकि आखिरी फैसला अदालत का ही होता है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि सेशन कोर्ट किसी भी गंभीर मामले में जमानत दे सकता है लेकिन फैसला केस की मेरिट पर निर्भर करता है।

बेल न मिलने की कुछ और वजहें

सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि अदालत में जमानत पर सुनवाई के दौरान मामले की गंभीरता, गवाहों को प्रभावित किए जाने का अंदेशा, आरोपी के भागने की आशंका आदि फैक्टरों को देखा जाता है। अगर ऐसा कोई अंदेशा हो तो जमानत नहीं मिलती। आरोपी अगर आदतन अपराधी है तो भी जमानत नहीं मिलती। ट्रायल की किस स्टेज पर जमानत दी जानी चाहिए, इसके लिए अलग-से कोई कानूनी व्याख्या नहीं है। कानूनी जानकार बताते हैं कि ऐसे मामले जिसमें 10 साल कैद या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो, उसमें गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करनी होती है। इस दौरान चार्जशीट दाखिल न किए जाने पर सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत आरोपी को जमानत मिल जाती है। वहीं 10 साल से कम सजा के मामले में अगर गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल न किया जाए तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद

इस दौरान अगर चार्जशीट दाखिल कर दी गई हो तो जमानत केस की मेरिट पर ही तय होती है। केस की किस स्टेज पर जमानत दी दिया जाए, इसके लिए कोई व्याख्या नहीं है। लेकिन आमतौर पर तीन साल तक कैद की सजा के प्रावधान वाले मामले में मैजिस्ट्रेट की अदालत से जमानत मिल जाती है। एफआईआर दर्ज होने के बाद आमतौर पर गंभीर अपराध में जमानत नहीं मिलती। यह दलील दी जाती है कि मामले की छानबीन चल रही है और आरोपी से पूछताछ की जा सकती है। एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद यह तय हो जाता है कि अब आरोपी से पूछताछ नहीं होनी और जांच एजेंसी गवाहों के बयान दर्ज कर चुकी होती है, तब जमानत के लिए चार्जशीट दाखिल किए जाने को आधार बनाया जाता है। लेकिन अगर जांच एजेंसी को लगता है कि आरोपी गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं तो उस मौके पर भी जमानत का विरोध होता है क्योंकि ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज होने होते हैं और यह चार्ज फ्रेम होने के बाद ही होता है।

आखिरी फैसला अदालत का

ऐसे में मामला अगर गंभीर हो और गवाहों को प्रभावित किए जाने का अंदेशा हो तो चार्ज फ्रेम होने के बाद भी जमानत नहीं मिलती। ट्रायल के दौरान अहम गवाहों के बयान अगर आरोपी के खिलाफ हों तो भी आरोपी को जमानत नहीं मिलती। मसलन रेप केस में पीड़िता अगर ट्रायल के दौरान मुकर जाए तो आरोपी को जमानत मिल सकती है लेकिन अगर आरोपी के खिलाफ बयान दे दे तो जमानत मिलने की संभावना खत्म हो जाती है। कमोबेश यही स्थिति दूसरे मामलों में भी होती है। गैर जमानती अपराध में किसे जमानत दी जाए और किसे नहीं, यह अदालत तय करता है।

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