Hindi, asked by sawisha8, 4 months ago

‘छोटे-छोटे पौधे’ प्रतीक हैं ??
(i) छोटे बच्चों का
(ii) नवजात शिशु का
(iii) नई पीढ़ी को
(iv) नई परंपराओं का​

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Answered by KeshavKhattar
4

Answer:

चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ

गिदरां नुं मैं शेर बनावाँ

सवा लाख से एक लड़ावाँ

ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ

नमस्कार कक्षा चतुर्थ-डी, डीएलएफ पब्लिक स्कूल से मैं केशव खट्टर और मेरा यह मानना है कि जनसाधारण में कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से जाने...जाने वाले, जिन्होंने निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण किया, मोह से मुक्त, दृढ़ निश्चयी पुरुष श्री गुरु गोविंद सिंह ही वास्तव में महापुरुष कहलाने योग्य हैं।

अनादि काल से हमारी यह भारतभूमि ऋषि-मुनियों, राजऋषियों, तपस्वियों एवं योगियों की भूमि कहलाती है, जिन्होंने अपने कर्मो से भारत वर्ष को सोने की चिड़िया एवं विश्वगुरु के दिव्य नामों से सुशोभित किया I

परंतु एक ऐसा अद्वितीय व्यक्ति जिसने हमारी संस्कृति की रक्षा की, मानव धर्म का अनुपालन किया, समाज में फैली हुई विकृतियों को खत्म करने में प्रयासरत रहे, बासुदेव कुटुंबकम् पर विश्वास रखा और आज अगर हमारे देश में धर्म और संस्कार स्थापित है तो इसका पूरा श्रेय उस सच्चे संत सिपाही को जाता है, उस सरबंसदानी को जाता है जिनका नाम है गुरु गोविंद सिंह l

वह गुरु गोविंद सिंह जो न सिर्फ शांति, प्रेम और एकता की मिसाल थे बल्कि एक विलक्षण क्रांतिकारी संत भी थे जिन्होंने समूचे राष्ट्र के उत्थान के लिए संघर्ष के साथ-साथ निर्माण का रास्ता अपनाया l

जितनी सहजता और सरलता से गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश दिया, जितनी सहनशीलता, मधुरता और सौम्यता से उन्होंने अपना अहित चाहने वालों को परास्त किया...

... उतनी ही अटूट निष्ठा दृढ़ संकल्प, त्याग और कर्मठता से उन्होंने सिद्धांतों एवं आदर्शों की लड़ाई लड़ी और इन आदर्शों के धर्मयुद्ध में जूझ मरने एवं लक्ष्य-प्राप्ति हेतु वे ईश्वर से वर मांगा--- 'देहि शिवा वर मोहि, इहैं, शुभ करमन ते कबहू न टरौं।'

गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ।

एक ओर जहां वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता, कई ग्रंथों के रचनाकlर थे l

वहीं दूसरी ओर उस कालखंड में पिछड़ी जाति के लोगों को अमृतपान और फिर खुद उनके साथ अमृत छककर उन्होंने सामाजिक एकात्मता, छुआछूत की बुराई के त्याग और 'मानस की जात एक सभै, एक पहचानबो' का महासंदेश दिया।

गुरु गोविंद सिंह जी की महानता का प्रतीक एवं सबूत है उनके द्वारा धारण की गई मीरी और पीरी नामक दो तलवारें, जहां एक ज्ञान, सेवा एवं आध्यात्मिकता का प्रतीक थी तो वहीं दूसरी नैतिकता एवं जीवन मूल्यों की रक्षा का प्रतीक थी l

आज प्राय: जब मनुष्य के हृदय में सुख-शांति, भाई चारा आदि गुणों का अत्यंत अभाव दिखता है, समाज में हिंसा, नारी-अपमान, दुष्कर्म आदि पाप कर्मों में वृद्धि हुई है, अमीर-गरीब सभी दुखी है, तब ऐसी विकट स्थिति में मनुष्य जब संघर्ष, निर्माण एवं सुख शांति का मार्ग खोजने के लिए हिम्मत चाहता है तो राह में

उद्यमं साहसं धैर्यं, बुद्धि, शक्ति, पराक्रमः । षडेते यत्र वर्तन्ते, तत्र देवः सहायकृत ।।

वो एकमात्र दिव्य महापुरुष सूर्य की भांति आशा की किरणें फैलाता हुआ दिखता है l

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