छाते की आत्मकथा निबंध
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मैं छाता हूँ। छोटा हूँ, लेकिन बहुत उपयोगी हूँ। पूरे विश्व में लोग मेरा उपयोग करते हैं। वर्षा ऋतु में मेरे बगैर कोई अपने घर से बाहर भी नहीं निकलता है। मैं छोटे-बड़े, रंगबिरंगे अनेक रूपों में मिलता हूँ। अपनी सुविधानुसार कभी आप मुझे छोटा करके अपने थैले में डाल सकते हैं, तो कभी आप मेरा उपयोग छड़ी की भाँति भी कर सकते हैं। मैं लोगों को बरसात के साथ ही गर्मी से भी बचाता हूँ।
भारत में मेरा प्रचलन १९वीं सदी के अंत में हुआ। माना जाता है कि मेरा आविष्कार चीन में हुआ था। इसके बाद अपनी उपयोगिता के कारण मैं धीरे-धीरे पूरे विश्व में प्रसिद्ध होने लगा। चीन में शुरू-शुरू में धूप से बचने के लिए लोग मेरा उपयोग करते थे। इसके बाद मुझपर मोम की परत चढ़ाकार बरसात में मेरा उपयोग किया जाने लगा। रोम में मेरा उपयोग धूप से बचने के लिए किया जाता था। इंग्लैंड में मेरा उपयोग सबसे पहले जॉन हेरवे द्वारा किया गया था। शुरुआती दिनों में लोग मुझे पेटीकोट वाली छड़ी के रूप में जानते थे।
समय के साथ-ही-साथ मेरा रूप-रंग बदलता गया। मेरे ऊपर का कपड़ा बदला; मेरा हत्था बदला; मेरे भीतर लगने वाली तीलियाँ भी बदलीं और आज मैं आपके सामने नए-नए व आकर्षक रूप में प्रस्तुत हूँ। मेरा उपयोग आप वर्षा व धूप में तो करते ही हैं, कभी-कभी मैं छोटे-मोटे अन्य कामों में भी काम आ जाता हूँ। मेरा निर्माण मानवजाति की सेवा के लिए हुआ था और मैं अपने इस कर्तव्य को करते हुए बहुत संतुष्ट व प्रसन्न हूँ।