छोटू के पिताजी क्या काम करते थे ?
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तलाश
भारत के अतीत की झाँकी
बीते हुए सालों में मेरे मन में भारत ही भारत रहा है। इस बीच मैं बराबर उसे
समझने और उसके प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करने की
कोशिश करता रहा हूँ। मैंने बचपन की ओर लौटकर याद करने की कोशिश
की कि मैं तब कैसा महसूस करता था, मेरे मन में इस अवधारणा ने कैसा
धुंधला रूप ले लिया था और मेरे ताज़ा अनुभव ने उसे कैसे सँवारा था।
आखिर यह भारत है क्या? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व
करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? क्या उसने इस
शक्ति को पूरी तरह खो दिया है? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के
अलावा क्या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा
सके? आधुनिक विश्व से उसका तालमेल किस रूप में बैठता है?
भारत मेरे खून में रचा-बसा था। इसके बावजूद मैंने उसे एक बाहरी
आलोचक की नज़र से देखना शुरू किया। ऐसा आलोचक जो वर्तमान के
साथ-साथ अतीत के बहुत से अवशेषों को, जिन्हें उसने देखा था-नापसंद
करता था। एक हद तक मैं उस तक पश्चिम के रास्ते से होकर पहुंचा था।
मैंने उसे उसी भाव से देखा जैसे संभवत: किसी पश्चिमी मित्र ने देखा होता।
मेरे भीतर शंकाएँ सिर उठा रही थीं। क्या मैंने भारत को जान लिया था? मैं,
जो उसके अतीत की विरासत के बड़े हिस्से को खारिज करने का साहस
कर रहा था। लेकिन अगर भारत के पास वह कुछ नहीं होता जो बहुत
जीवंत और टिकाऊ रहा है, वह बहुत कुछ जो सार्थक है, तो भारत का वजूद
उस रूप में नहीं होता जैसा आज है और वह हजारों वर्ष तक अपने 'सभ्य'
अस्तित्व की पहचान इस रूप में कदापि बनाए नहीं रख सकता था। वह
'विशेष' तत्व आखिर क्या था?
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Can you please tell the name of the chapter??