जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएं तथा काव्यगत विशेषताएँ
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जीवन-परिचयः छायावाद के प्रमुख स्तम्भ एवं राष्ट्रीय चेतना के अमर कवि जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पूरे छायावादी युग पर छाया रहा। प्रसाद, पन्त और निराला को मिलाकर जो वृह्तत्रयी बनती है, उसमें जयशंकर प्रसाद को ब्रह्म कहा जा सकता है। छायवादी युग के एकमात्र महाकाव्य ‘कामायनी’ के रचयिता के रूप में ही जयशंकर को याद नहीं किया जाता, बल्कि छायावादी युग की चेतना को गढ़ने वाले अमर कवि के रूप में भी उन्हे याद किया जाता है।
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न वैश्य परिवार मे 30 जनवरी 1889 को हुआ था। आपके पितामह श्री शिवरत्न जी तथा पिता देवी प्रसाद जी काशी में तम्बाकू, सुंघनी तथा सुर्ती के मुख्य विक्रेता थे। जयशंकर प्रसाद जी की माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था।आपका परिवार काशी में सुंघनी साहु के नाम से प्रसिद्ध था। जिस समय प्रसाद जी सातवीं कक्षा में पढ़ते थे, उस समय उनके पिता का देहान्त हो गया था। घर को चलाने की जिम्मेवारी उनके बड़े भाई पर आ पड़ी। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। प्रसाद जी को उन दिनों तीन कार्य करने पड़ते थे - व्यायाम करना, पढ़ना और दुकान की देखभाल करना। प्रसाद जी मन दुकानदारी में नहीं लगता था। प्रायः तम्बाकू की दुकान पर बैठे बही में कविताएं लिखा करते थे। भाई की डांट-फटकार का भी उन पर काई असर नहीं पड़ता था। कुछ ही समय में उनके द्वारा भेजी गई समस्या पूर्तियों का प्रभाव पड़ने लगा था। भाई ने उन्हें कविता लिखने की छूट दे दी। कुछ समय पश्चात् शम्भु रत्न जी की मृत्यु हो गयी। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा। गृहस्थी चलाने की जिम्मेवारी जयशंकर प्रसाद जी पर आ पड़ी। प्रसाद जी अत्यन्त उदार, सरल, मृदुभाषी, साहसी एवं स्पष्ट वक्ता थे। उन्हें साहित्य पर जो भी पुरस्कार मिले, उन्होंने वे सभी दान कर दिये। प्रसाद जी एकान्तप्रिय तथा भीड़-भाड़ से बचने वाले व्यक्ति थे।
Related : आकाशदीप कहानी की समीक्षा मृत्यु : 22 जनवरी, 1937 को वे बीमार पड़े और डॉक्टरों ने उन्हें क्षय रोग का रोगी घोषित कर दिया था। वे प्रायः जीवन से उदासीन हो गए थे और 1937 में उनका देहान्त हो गया। अड़तालीस वर्ष की अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई। हिन्दी जगत् को प्रसाद जी ने अमूल्य साहित्य-रत्न दिए।
रुचियाँ : वे एक कुशल कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार होने के अतिरिक्त बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे।
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छायावाद के प्रमुख स्तम्भ एवं राष्ट्रीय चेतना के अमर कवि जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पूरे छायावादी युग पर छाया रहा। प्रसाद, पन्त और निराला को मिलाकर जो वृह्तत्रयी बनती है, उसमें जयशंकर प्रसाद को ब्रह्म कहा जा सकता है। छायवादी युग के एकमात्र महाकाव्य ‘कामायनी’ के रचयिता के रूप में ही जयशंकर को याद नहीं किया जाता, बल्कि छायावादी युग की चेतना को गढ़ने वाले अमर कवि के रूप में भी उन्हे याद किया जाता है। जयशंकर प्रसाद जी का जन्म वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के एक सम्पन्न वैश्य परिवार मे 30 जनवरी 1889 को हुआ था। आपके पितामह श्री शिवरत्न जी तथा पिता देवी प्रसाद जी काशी में तम्बाकू, सुंघनी तथा सुर्ती के मुख्य विक्रेता थे। जयशंकर प्रसाद जी की माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था।आपका परिवार काशी में सुंघनी साहु के नाम से प्रसिद्ध था। जिस समय प्रसाद जी सातवीं कक्षा में पढ़ते थे, उस समय उनके पिता का देहान्त हो गया था। घर को चलाने की जिम्मेवारी उनके बड़े भाई पर आ पड़ी। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। प्रसाद जी को उन दिनों तीन कार्य करने पड़ते थे - व्यायाम करना, पढ़ना और दुकान की देखभाल करना। प्रसाद जी मन दुकानदारी में नहीं लगता था।