छात्रो के अनुशासन के लिए कया कया कदम उठाए जानेचाहिए
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HERE IS YOUR ANSWER ME
मैं यह लेख सिर्फ अपने उस अनुभव के चलते लिख रहा हूँ जो मेरे लिये आंख खोलने वाला साबित हुआ। मैं कई स्टार्टअप्स के साथ काम कर चुका हूँ और कुछ स्टार्टअप की स्थापना अपने दम पर भी कर चुका हूँ। सीधे और सरल शब्दों में कहूं तो मुझे इनके साथ काम करने में मजा आता है। माहौल में फैला उत्साह, जितना अधिक से अधिक आप कर सकते हैं उतना करने की प्रेरणा, और स्वयं को कई भूमिकाओं के निर्वहन के लिये ढालना हर किसी को बेहद पसंद आता है। नतीजतन हमारे भीतर लगातार सीखने की लालसा बढ़ती जाती है। एक स्टार्टअप के साथ काम करने के दौरान आपके पास कुछ नया सीखने की असीमित संभावनाएं होती हैं और ऐसा करने के लिये भारत में सिलिकाॅन वैली बैंगलोर से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है।
हालांकि मेरा पिछला अनुभव वास्तव में काफी चैंकाने वाला रहा। मेरा पहला दिन काफी सकारात्मक रहा और मेरे पास कंपनी के तकनीकी साझीदार को देने के लिये काफी इनपुट थे, लेकिन आने वाले दिन मेरे लिये एक बुरे सपने की तरह रहे जब माहौल को ‘ठेठ’ स्टार्टअप का माहौल बनाने का प्रयास किया जाने लगा। मैं इस बात को लेकर निश्चित नहीं हूँ कि यहां पर ‘ठेठ’ का क्या मतलब निकल सकता है क्योंकि कई चीजें व्यावसायिकता के दायरे में हो रही थीं।
कार्यालय में रखा रेफ्रीजरेटर बीयर के केन से भरा हुआ था और इसके अलावा अन्य चीजों सहित बार टेबल भी पूरी तरह से गुलजार थी। मेरी जाॅइनिंग के पहले ही सप्ताह में सीईओ के साथ हुई मेरी मुलाकात कुछ ऐसी रही जिसे एक पेशेवर के तौर पर स्वीकार करना मेरे लिये नामुमकिन था। वह मेरी मेज़ के बिल्कुल सामने बैठा था और मेरी एक महिला सहयोगी तेल लेकर उसके सिर की मालिश कर रही थी। मुझे इतना बुरा लगा कि मैं काम के बारे में बिल्कुल चर्चा ही नहीं कर सका!
चीजें ऐसे ही आगे बढ़ती रहीं, लेकिन इनके नियंत्रण से बाहर जाने से पहले ही मैंने अपने कदम पीछे खींच लिये। ओह! जी हां, स्टार्टअप न तो एक कठोर संरचना हैं, न ही वे चीजों को लेकर तनावग्रस्त हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद बुनियादी अनुशासन तो एक आवश्यकता है ही और अपनी टीम के भीतर नियमों का पालन करवाना मुख्य रूप से स्टार्टअप के संस्थापकों की ज़िम्मेदारी है।
HERE IS YPUR ANSWER COMPLETED
HOPE THIS HELPS YOUR
PLEASE MARK AS BRAINLIEST
PLEASE FOLLOW ME
!!THANKS!!
मैं यह लेख सिर्फ अपने उस अनुभव के चलते लिख रहा हूँ जो मेरे लिये आंख खोलने वाला साबित हुआ। मैं कई स्टार्टअप्स के साथ काम कर चुका हूँ और कुछ स्टार्टअप की स्थापना अपने दम पर भी कर चुका हूँ। सीधे और सरल शब्दों में कहूं तो मुझे इनके साथ काम करने में मजा आता है। माहौल में फैला उत्साह, जितना अधिक से अधिक आप कर सकते हैं उतना करने की प्रेरणा, और स्वयं को कई भूमिकाओं के निर्वहन के लिये ढालना हर किसी को बेहद पसंद आता है। नतीजतन हमारे भीतर लगातार सीखने की लालसा बढ़ती जाती है। एक स्टार्टअप के साथ काम करने के दौरान आपके पास कुछ नया सीखने की असीमित संभावनाएं होती हैं और ऐसा करने के लिये भारत में सिलिकाॅन वैली बैंगलोर से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है।
हालांकि मेरा पिछला अनुभव वास्तव में काफी चैंकाने वाला रहा। मेरा पहला दिन काफी सकारात्मक रहा और मेरे पास कंपनी के तकनीकी साझीदार को देने के लिये काफी इनपुट थे, लेकिन आने वाले दिन मेरे लिये एक बुरे सपने की तरह रहे जब माहौल को ‘ठेठ’ स्टार्टअप का माहौल बनाने का प्रयास किया जाने लगा। मैं इस बात को लेकर निश्चित नहीं हूँ कि यहां पर ‘ठेठ’ का क्या मतलब निकल सकता है क्योंकि कई चीजें व्यावसायिकता के दायरे में हो रही थीं।
कार्यालय में रखा रेफ्रीजरेटर बीयर के केन से भरा हुआ था और इसके अलावा अन्य चीजों सहित बार टेबल भी पूरी तरह से गुलजार थी। मेरी जाॅइनिंग के पहले ही सप्ताह में सीईओ के साथ हुई मेरी मुलाकात कुछ ऐसी रही जिसे एक पेशेवर के तौर पर स्वीकार करना मेरे लिये नामुमकिन था। वह मेरी मेज़ के बिल्कुल सामने बैठा था और मेरी एक महिला सहयोगी तेल लेकर उसके सिर की मालिश कर रही थी। मुझे इतना बुरा लगा कि मैं काम के बारे में बिल्कुल चर्चा ही नहीं कर सका!
चीजें ऐसे ही आगे बढ़ती रहीं, लेकिन इनके नियंत्रण से बाहर जाने से पहले ही मैंने अपने कदम पीछे खींच लिये। ओह! जी हां, स्टार्टअप न तो एक कठोर संरचना हैं, न ही वे चीजों को लेकर तनावग्रस्त हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद बुनियादी अनुशासन तो एक आवश्यकता है ही और अपनी टीम के भीतर नियमों का पालन करवाना मुख्य रूप से स्टार्टअप के संस्थापकों की ज़िम्मेदारी है।
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