छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-(क) गुटेन्बर्ग प्रेस (ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार (ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
Answers
उत्तर :
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस :
योहान गुटेनबर्ग जर्मनी का निवासी था। वह बचपन से ही तेल तथा जैतून पेरने की मशीनें देखता आया था। बाद में उसमें हीरो तथा शीशा में पॉलिश करने की कला सीखी। अपने ज्ञान और अनुभव का प्रयोग उसने अपनी प्रिंटिंग प्रेस के निर्माण में किया। उसके द्वारा बनाई गई प्रेस विश्व की पहली प्रिंटिंग प्रेस थी जिसका आविष्कार 1448 में हुआ था। इससे पहले पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थी। गुटेनबर्ग की प्रेस पर सबसे पहले छपने वाली पुस्तक बाइबल थी। इस पुस्तक की 180 प्रतियां छपने में 3 वर्ष का समय लगा था। गुटेनबर्ग ने रोमन वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों के टाइप बनाएं। यह टाइप धातुई थी। उन्होंने इन्हें इधर-उधर घुमा कर शब्द बनाने का तरीका निकाला। इसलिए गुटेनबर्ग की प्रेस को मूवेबल टाइप प्रिंटिंग प्रेस का नाम दिया गया। इसके बाद लगभग 300 वर्षों तक छपाई की यही तकनीक प्रचलित रही।
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार:
इरैस्मस पुनर्जागरण काल का एक महान विद्वान था। उसने कैथोलिक धर्म के अतिवादी स्वरूप की कड़ी आलोचना की। उसका मानना था कि कैथोलिक चर्च एक लालची संस्था है जो बात बात पर साधारण लोगों से लूट-खसोट करती है।
छपी किताब को लेकर वह बहुत आशंकित था । इस संबंध में उसने 1508 में ऐडजे़ज़ में अपने विचार व्यक्त किए थे। वे पुस्तकों को भिभिनाती मक्खियों की तरह मानता था जो संसार के हर कोने में पहुंच जाती है। उसके अनुसार पुस्तकें जानने योग्य कोई एकाध बात ही बताती है । उनका अधिकांश भाग हानिकारक ही होता है। उसका कहना था कि अधिकतर धूर्त , धर्म विरोधी तथा षड्यंत्रकारी लोग ही किताबें छापते हैं । ऐसे लोगों तथा उनकी किताबों से हमें बचना चाहिए।
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट :
वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट 1878 में लॉर्ड लिटन ने पास किया था। इसके अनुसार भारत के देसी समाचार पत्रों पर कड़ा सेंसर बैठा दिया गया ताकि वे अंग्रेजी सरकार की आलोचना न कर सकें। अंग्रेजी समाचार पत्रों को इस सेंसर से मुक्त रखा गया था। यदि किसी समाचार पत्र में छपी किसी रिपोर्ट को विद्रोही समझा जाता था तो पहले समाचार पत्र को चेतावनी दी जाती थी। यदि इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया जाता था तो समाचार पत्र को जब्त कर लिया जाता था। यहां तक कि उस समाचार पत्र को छापने वाली मशीन भी छीनी जा सकती थी।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न
निम्नलिखित के कारण दें
(क) बुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
(ख) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। (ग) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी।
(घ) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
https://brainly.in/question/9630717
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था
(क) महिलाएँ
(ख) गरीब जनता
(ग) सुधारक
https://brainly.in/question/9629925
Explanation:
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार (ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।