Hindi, asked by bablisingh659, 2 months ago

छायावादी कविता की चार विशेषता लिखो​

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Answered by ms8367786
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आत्माभिव्यक्ति संपादित करें

छायावाद में सभी कवियों ने अपने अनुभव को मेरा अनुभव कहकर अभिव्यक्त किया है। इस मैं शैली के पीछे आधुनिक युवक की स्वयं को अभिव्यक्त करने की सामाजिक स्वतंत्रता की आकांक्षा है। कहानी के पात्रों अथवा पौराणिक पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति की चिर आचरित और अनुभव सिद्ध नाटकीय प्रणाली उसके भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ नहीं थी। वैयक्तिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति की मुक्ति से संबद्ध थी। यह वैयक्तिक अभिव्यक्ति भक्तिकालीन कवियों के आत्मनिवेदन से बहुत आगे की चीज है। यह ऐहिक वैयक्तिक आवरणहीन थी। इसपर धर्म का आवरण नहीं था। सामंती नैतिकता को अस्वीकार करते हुए पंत ने उच्छवास और आँसू की बालिका से सीधे शब्दों में अपना प्रणय प्रकट किया है:- "बालिका मेरी मनोरम मित्र थी।" वैयक्तिक क्षेत्र से आगे बढ़कर निराला ने अपनी पुत्री के निधन पर शोकगीत लिखा और जीवन की अनेक बातें साफ-साफ कह डालीं। संपादकों द्वारा मुक्त छंद का लौटाया जाना, विरोधियों का शाब्दिक प्रहार, सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए एकदम नए ढंग से सरोज का विवाह करना आदि लिखकर सामाजिक क्षेत्र के अपने अनुभव सीधे-सीधे मैं शैली में अभिव्यक्त किए। इसी तरह वनबेला में निराला ने अपनी कहानी के माध्यम से पुरानी सामाजिक रूढ़ियों पर और आधुनिक अर्थ पिशाचों पर प्रहार किया है।

नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण संपादित करें

इसके आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आता है। कुछ आचार्य इसे छायावाद की ही एक प्रवृत्ति मानते हैं और कुछ इसे साहित्य का एक नया आंदोलन।

नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण छायावादी कवियों ने नारी को प्रेम का आलंबन माना है। तथा छायावादी कवियों ने नारी के रूप रंग वा सौंदर्य का आदुतीय वर्णन किया है। और नारी के प्रेम को आलौकिक माना है।उन्होंने नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण किया जो यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण है। जिसमें धरती का सौंदर्य और स्वर्ग की काल्पनिक सुषमा समन्वित है। अतः इन कवियों ने प्रेयसी के कई चित्र अंकित किये हैं। कामायनी में प्रसाद ने श्रद्धा के चित्रण में जादू भर दिया है। छायावादी कवियों का प्रेम भी विशिष्ट है।

इनके प्रेम की पहली विशेषता है कि इन्होंने स्थूल सौंदर्य की अपेक्षा सूक्ष्म सौंदर्य का ही अंकन किया है। जिसमें स्थूलता, अश्लीलता और नग्नता नहींवत है। जहाँ तक प्रेरणा का सवाल है छायावादी कवि रूढ़ी, मर्यादा अथवा नियमबद्धता का स्वीकार नहीं करते। निराला केवल प्राणों के अपनत्व के आधार पर, सब कुछ भिन्न होने पर अपनी प्रेयसी को अपनाने के लिए तैयार हैं।

इन कवियों के प्रेम की दूसरी विशेषता है - वैयक्तिकता। जहाँ पूर्ववर्ती कवियों ने कहीं राधा, पद्मिनी, ऊर्मिला के माध्यम से प्रेम की व्यंजना की है तो इन कवियों ने निजी प्रेमानुभूति की व्यंजना की है।

इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।

प्रकृति प्रेम संपादित करें

प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की उल्लेखनीय विशेषता है।

छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है। जैसे,

बीती विभावरी जाग री,

अम्बर पनघट में डूबो रही

तारा घट उषा नागरी। (प्रसाद) या

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से

उतर रही

वह संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे। (निराला)

प्रकृति सौंदर्य की दूसरी प्रवृत्ति है- मुग्धता की। जहाँ कवि प्रकृति में चेतनता का आरोप करता है तो प्रकृति उसे सप्राण लगती है। इससे कवि विस्मय प्रकट करता है। जैसे पंत की मौन निमंत्रण कविता।

कवि मानव-जीवन की समस्त भावनाओं और अनुभूतियों को प्रकृति के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। छायावादी कवियों में प्रधान रूप से महादेवी में यह प्रवृत्ति विशेष लक्षित होती है। जैसे, मैं बनी मधुमास आली।

राष्ट्रीय / सांस्कृतिक जागरण संपादित करें

छायावादी कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने राष्ट्रप्रेम को अभिव्यक्त किया है। इस युग में वीरों को उत्साहित करने वाली कविताएँ लिखी गईं। देश के वीरों को संबोधित करते हुए जयशंकर प्रसाद लिखते है़ं-

'हिमाद्रि तुंग श्रृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती'

इतना ही नहीं आम जनता को जागृत करने के भाव से ही 'जागो फिर एक बार' जैसी कविताएँ लिखीं गईं।

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