छमा ज्ञान का आभुशड़ है संस्कृति मे लिखे
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नरस्याभरणं रूपं
रूपस्याभरणं गुण:।
गुणस्याभरणं ज्ञानं।
ज्ञानस्याभरणं क्षमा॥
भावार्थ
मनुष्य का आभूषण उसका रूप होता है, रूप का आभूषण गुण होता है, गुण का आभूषण ज्ञान होता है और ज्ञान का आभूषण क्षमा होता है।अर्थात् रूपवान् होना भी तभी सार्थक है जब सच्चे गुण, सच्चा ज्ञान और क्षमा मनुष्य के भीतर हो।
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