छत्तीसगढ़ के दो कवियों के बारे में जानकारी बताइए
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पं. सुन्दरलाल शर्मा
राजिम के पास एक गांव है जिसका नाम है चमसुर। उसी चमसुर गांव में पं. सुन्दरलाल शर्मा का जन्म हुआ था। उनका जन्म विक्रम संवत 1938 की पौष कृष्ण अमावस्या अर्थात् 1881 ई० को हुआ था। इनके पिता थे पं. जयलाल तिवारी जो कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे, उनकी मां थीं देवमती देवी। पं. जयलाल तिवारी बहुत ज्ञानी एंव सज्जन व्यक्ति थे। कांकेर राजा ने उन्हें 18 गांव प्रदान किये थे। पं. जयलाल तिवारी बहुत अच्छे कवि थे और संगीत में उनकी गहरी रुचि थी। पं. सुन्दरलाल शर्मा की परवरिश इसी प्रगतिशील परिवार में हुई। चमसुर गांव के मिडिल स्कूल तक सुन्दरलाल की पढ़ाई हुई थी। इसके बाद उनकी पढ़ाई घर पर ही हुई थी। उनके पिता ने उनकी उच्च शिक्षा की व्यवस्था बहुत ही अच्छे तरीके से घर पर ही कर दी थी। शिक्षक आते थे और सुन्दरलाल शर्मा ने शिक्षकों के सहारे घर पर ही अंग्रेजी, बंगला, उड़िया, मराठी भाषा का अध्ययन किया। उनके घर में बहुत-सी पत्रिकाएँ आती थीं, जैसे- "केसरी" (जिसके सम्पादक थे लोकमान्य तिलक) "मराठा"। पत्रिकाओं के माध्यम से सुन्दरलाल शर्मा की सोचने की क्षमता बढ़ी। किसी भी विचारधारा को वे अच्छी तरह परखने के बाद ही अपनाने लगे। खुद लिखने भी लगे। कविताएँ लिखने लगे। उनकी कवितायें प्रकाशित भी होने लगीं। 1898 में उनकी कवितायें रसिक मित्र में प्रकाशित हुई। सुन्दरलाल न केवल कवि थे, बल्कि चित्रकार भी थे। चित्रकार होने के साथ-साथ वे मूर्तिकार भी थे। नाटक भी लिखते थे। रंगमंच में उनकी गहरी रुचि थी। वे कहते थे कि नाटक के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है।
डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
छत्तीसगढ प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, भाषाविद, शिक्षाशास्त्री, डॉ. पालेश्वर शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं है । हिन्दी के लेखक तथा समीक्षक के रूप में प्रख्यात होने के बाद, डॉ. शर्मा ने विगत तीन दशकों से अपने लेखन कर्म को छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया है । हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी शब्दों के साथ और गोष्ठियों और चर्चाओं में प्राध्यापकीय मुद्रा में अर्थ पूछना और फिर उत्तर देकर सबकों चमत्कृत कर ज्ञान के अछूते क्षेत्र से परिचित कराना उनकी विशेष प्रतिभा और शब्द-शिल्पी होने का प्रमाण है ।