Chhattisgarhi sarvpratham lipibaddh Kavita kis Kavi Ne kahi hai
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छत्तीसगढ़ी की सर्वप्रथम लिपिबद्ध कविता पंडित सुंदरलाल शर्मा ने की थी।
पंडित सुंदरलाल शर्मा का जन्म छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित चित्रोत्पला के ग्राम चमसूर में हुआ था। उनका जन्म 21 जनवरी से 1881 ईस्वी को तथा मृत्यु 28 दिसंबर 1940 ईस्वी को हुई थी। वे उत्तम कोटि के साहित्यकार थे और उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा को ग्रामीण जीवन से बाहर निकालकर लिपिबद्ध करके एक साहित्यिक रूप दिया। उन्हें छत्तीसगढ़ी भाषा का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है। वे एक समाज सुधारक भी थे और भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया। अपने इन कार्यों के कारण उन्हें ‘छत्तीसगढ़ केसरी’ तथा ‘छत्तीसगढ़ का गांधी’ भी कहा जाता रहा है। उनकी प्रमुख रचनाओं में काव्यामृत वर्षिनी, सीता परिणय, प्रहलाद चरित्र, छत्तीसगढ़ी रामायण, छत्तीसगढ़ी दानलीला, सच्चा सरदार, करुणा पच्चीसी, पार्वती परिणय, विक्रम शशि कला नाटक, कंस वध खंडकाव्य आदि हैं। उन्होने ही छत्तीगढ़ी में सर्वप्रथम खंडकाव्य परंपरा की शुरुआत की।
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