Chidiya Ghar ki sair
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गत रविवार को आकाश में बादल छाये थे । मौसम बहुत सुहावना था । मैंने अपने मित्रों से चिड़ियाघर चलने का प्रस्ताव किया । वे सभी सहमत थे । हम अपनी मारुति से चिड़ियाघर पहुँचे ।
गाड़ी खड़ी कर के मुख्य द्वार की ओर चले । वहाँ अनेक व्यक्ति टिकट खरीद रहे थे । कुछ वार्तालाप कर रहे थे और कुछ समीपवर्ती वृक्षों के नीचे विश्राम कर रहे थे । हम ने भी टिकट खरीद लिये । दिल्ली का यह चिड़ियाघर पुराने किले के पास स्थित है । किले की दीवार के साथ सुन्दर झील है ।
इसमें अनेक प्रकार के जल-जीव तैर रहे थे । सुन्दर-सुन्दर बत्तखें, बगुले और अनेक प्रकार की चिड़ियाँ जल में आनन्द ले रही थीं, आगे बढ़ने पर पक्षियों का बाड़ा आ गया । यहाँ नाना प्रकार के पक्षी तोते, कबूतर, चील, चिड़ियाँ, नीलकंठ चह-चहा रहे थे । हमें उल्लू भी देखने को मिला जो ऊंघ रहा था ।
थोड़ा आगे बढ़ने पर एक अंधे जाल से घिरे बाड़े में अनेक शेर और चीते चक्कर काट रहे थे । कुछ आराम कर रहे थे । कुछ दर्शकों को देखकर दहाड़ रहे थे । कुछ शेर पिंजरों में बंद थे । उन के दड़वे में मांस के टुकड़े पड़े थे । कुछ दुर्लभ प्रकार के सफेद शेर थे जिन्हें किसी राजा ने चिड़ियाघर को दिया था ।
कुछ और आगे बढ़ने पर हम एक उद्यान में पहुँचे । वहाँ अनेक हिरण चौकड़ी भर रहे थे । वे बड़े सुन्दर थे । उनके सींग बहुत बड़े-बड़े थे । इससे आगे बढ़ने पर अनेक बन्दर और लंगूर दिखाई दिये । बच्चे उन्हें चिढ़ा रहे थे । कुछ उन के आगे चने के दाने फेंक रहे थे । वे पेड़ से कूद कर दाने उठाने के लिए कूद पड़ते थे ।
चिड़िया घर में रीछ, दरियाई घोड़ा, शतुरमुर्ग और जिर्राफ विशेष आकर्षण का केन्द्र थे । अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी छोटी बड़ी मछलियां, मगरमच्छ जलाशय में आनन्द मग्न क्रीड़ा कर रहे थे । एक बाड़े में नील गाय, अफ्रीका का भैंसा और इसी श्रेणी के अन्य जानवर थे । गैंडा भी यहाँ देखने को मिला । पहली बार कंगारू के दर्शन किये ।
हम घूमते-घूमते थक गये । लगभग ढाई तीन घंटे बीतने पर भी पूरा चिड़ियाघर नहीं देख पाये थे । अंतत: हम उस ओर पहुँचे जहाँ प्रगति मैदान के ऊँचे-ऊँचे द्वार दिखाई पड़े । रेलवे लाइन पर छोटी-सी रेल दौड़ रही थी जिसमें बच्चे, युवक-युवतियां आनंद ले रहे थे । हाथी की सवारी का आनंद उठाने की सुविधा भी थी ।