Chinese, asked by chandaramasingh9, 9 months ago

China se yudh hua to china ke taraf aur India ke taraf kaun jaiga​

Answers

Answered by khushpreet50
10

ग्लोबल टाइम्स' में रक्षा विशेषज्ञों की राय पर गौर किया जाए तो लगता है कि यदि मौजूदा हालात नहीं सुलझे तो चीन अपने भूभाग की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता है और यहां तक कि युद्ध की हद तक भी जा सकता है. इधर भारत सरकार का कहना है कि वर्तमान तनाव के लिए भारत कतई जिम्मेदार नहीं है बल्कि यह विवाद मूल रूप से चीन और भूटान के बीच तीन दशकों से जारी है. इस क्षेत्र में चीन की दखलंदाजी से भारत की संप्रभुता पर भी खतरा मंडरा सकता है, इसलिए भी भारत को अपनी भूमिका निभानी पड़ी.

वैसे हमें यहां यह भी नही भूलना चाहिए कि अगर हम 1962 की तुलना में बेहद मजबूत हुए हैं और हमारे देश ने काफी तरक्की की है तो चीन की रफ्तार तो हमसे कहीं ज्यादा है. आज का चीन भी 1962 वाला चीन नहीं है बल्कि तब की तुलना में वह काफी आगे निकल चुका है. यह सर्वविदित है कि 1962 की लड़ाई में भारत को चीन के हाथों करारी हार मिली थी. उस जंग में भारत के करीब 1300 सैनिक मारे गए थे और एक हजार सैनिक घायल हुए थे. डेढ़ हजार सैनिक लापता हो गए थे और करीब चार हजार सैनिक बंदी बना लिए गए थे. वहीं चीन के करीब 700 सैनिक मारे गए थे और डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए थे. इसी को ध्यान में रखकर चीन ने इतिहास से सबक लेने की चेतावनी भारत को दी है.

अब जरा यह समझ लें कि आखिर क्यों एक बार फिर से भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर खटपट हो रही है? विवाद का कारण बना डोका-ला इलाका भारत के सिक्किम और भूटान के बीच चुम्बी घाटी क्षेत्र में स्थित है. चीन में इसे डांगलांग और भूटान में डोकलाम के नाम से जाना जाता है. इसको लेकर चीन और भूटान के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है, जिसे सुलझाने के लिए 1984 से लेकर अब तक 24 वार्ताएं हो चुकी हैं. भारत इसलिए चिंतित है कि भूटान का यह इलाका, जहां चीन सड़क बनाने की कोशिश कर रहा है, ठीक उसके नीचे है. 'चिकेन नेक' वह इलाका है जो उत्तर-पूर्व भारत को बाकी देश से जोड़ता है. अगर यहां सड़क बन जाती है तो यह सीधे चीन की तोपों की रेंज में आ जाएगा. फिलहाल इस इलाके में भारत मजबूत स्थिति में है. हमारी सारे पोस्टें ऊंचाई पर हैं जबकि चीन यहां नीचे है. पहाड़ी इलाकों में यह रणनीतिक तौर पर काफी फायदेमंद होता है. यहां भारत के पैर उखाड़ने के लिए चीन को काफी दम लगाना पड़ेगा.

इस बारे में जब मैंने कई ऐसे विशेषज्ञों से बात की जो भारत-चीन संबधों पर गहरी नजर रखते हैं तो सब इस बारे में एकमत दिखे कि 1962 से आज के हालात काफी बदल चुके हैं. बेशक चीन सामरिक तौर पर हमसे कई मामलों में काफी आगे निकल चुका है और यदि किसी वजह से लड़ाई के हालात बने तो हमारे जीतने की संभावनाएं काफी कम होंगी, पर चीन के लिए भी यह लड़ाई अब उतनी आसान नहीं होगी. वैसे सेना और हथियार के लिहाज से भारत पहले की तुलना में काफी ताकतवर तो हुआ है लेकिन चीन की तुलना में उतना नहीं. खासकर अगर सरहद पर देखें तो जिस तरह से चीन ने अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है उसकी तुलना में हमारा आधारभूत ढांचा अभी भी कमजोर है. हम अभी चीन से लगी सीमा तक रेल पहुंचाने की योजना बना रहे हैं तो वह सीमा तक रेल पहुंचा चुका है. भारतीय सीमा में सड़क मार्ग की हालत भी खस्ता ही बनी हुई है. हां, चीन से लगी सीमा पर कई एयरफील्ड को जरूर आधुनिक किया गया है ताकि जरूरत पड़ने पर हमारे लड़ाकू विमान तत्काल वहां से उड़ान भर सकें और ट्रांसपोर्ट विमानों से तुरंत रसद एवं मदद पहुंचाई जा सके.

वैसे 1962 के भारत-चीन युद्ध के बारे में जो जानकारी सामने आई है उससे लगता है उस वक्त के राजनीतिक नेतृत्व और सेना के कई कमांडरों ने अपनी जवाबदेही ठीक से नहीं निभाई जिसकी वजह से भारत को हार का मुंह देखना पड़ा. बताया जाता है कि न तो सेना लड़ने के लिए तैयार थी, न ही उसके पास कपड़े थे और न ही हथियार. रही सही कसर मौसम ने पूरी कर दी थी. वायुसेना के कई रणनीतिकारों को यह बात आज तक हजम नहीं हुई कि आखिर उस वक्त जंग में वायुसेना का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया क्योंकि चीनी वायुसेना की तुलना में उस समय भारतीय वायुसेना काफी बेहतर थी.

हालांकि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का कहना है कि भारत ढाई फ्रंट से निपटने के लिए तैयार है. इसमें चीन और पाकिस्तान के अलावा देश के भीतर मौजूद आंतरिक खतरों से निपटना भी शामिल है. चीन को यह बातें हजम नहीं हुईं और उसने बिना सेना प्रमुख का नाम लिए इसे गैरजिम्मेदाराना बयान बताया. इतना ही नहीं पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय सेना के वह शख्स इतिहास से सीख लें और युद्ध के बारे में इस तरह से शोर मचाना बंद करें. वैसे यह भी हकीकत है कि केवल सेना के बूते चीन को भारत धमका नहीं सकता. हमारी सेना चीन की तुलना में उतनी मजबूत नहीं है.

सेना प्रमुख जनरल रावत के बयान से ठीक उलट पिछले साल तत्कालीन सह वायुसेना प्रमुख और अब मौजूदा वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोवा ने माना था कि वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की कमी है और दो मोर्चों पर जंग की सूरत में वायुसेना के पास लड़ने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. थल सेना और वायुसेना के बयान में यह अंतर इस बात को साफ करता है कि भारत, चीन का मुकाबला अब भी आसानी से नहीं कर सकता.

हालांकि, चीन तो क्या, यह बात हर कोई जानता है कि अब लड़ाई किसी देश के बूते की बात नहीं है. हां बस इसके नाम पर दबाव जरूर बनाया जा सकता है. सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिका और जापान की दोस्ती चीन को रास नहीं आ रही है, लिहाजा वह दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है, ताकि इन तीनों देशों की दोस्ती परवान न चढ़ सके और इस क्षेत्र में उसका दबदबा कायम रहे.

India-China war India-China border dispute Sikkim doka la North-east India Indian Army 1962 China war blog Rajeev Ranjan

भारत में कोरोनावायरस महामारी के फैलाव पर नज़र रखें, और NDTV.in पर पाएं दुनियाभर से COVID-19 से जुड़ी ताज़ातरीन ख़बरें.

Answered by a2yrnew
0

Answer:

मै तो इंडिया के तरफ जाऔे गा

Similar questions