clean environment is life in hindi give me 5 pages answer with topics
Answers
Answered by
0
पर्यांवरण पर निबंध
आज पर्यांवरण ना सिर्फ एक जरुरी सवाल है बल्कि पूरे विश्व के लिए ही एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, लेकिन बहुत ही अफ़सोस की बात है कि काफी बड़ी संख्या में लोग ना तो इसके बारे में ज्यादा जानते हैं और जो जानते भी हैं उनको कोई परवाह भी नही है.
इस धरती पर निवास करने वाला प्रत्येक प्राणी जब जब सांस लेता है तो उसको पर्यांवरण के होने का एहसास होना चाहिए और उसको शुक्र-गुजार होना चाहिए इस प्रक्रति का, जिसकी वजह से ही ये अनमोल जीवन व्याप्त है.
क्या अभी तक कोई सही तरीके से बता पाया कि ये धरती कितनी पुरानी है….?? वैज्ञानिक भी सिर्फ अंदाजा ही लगाते हैं. ना जाने कितने युग इस धरती पर बीते और फिर नष्ट हो गये…हमें नही पता.
प्रक्रति जीवन का पालन करती है….लेकिन जब इसके साथ दुर्वव्हार होता है या मजाक होता है….तब भी ये खामोश ही रहती है. लेकिन प्रक्रति जब उस व्यवहार का जबाब देती है तो सिर्फ रह जाती है तो बस….प्रलय.
पर्यावरण क्या है….??
पर्यांवरण शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है….परिऔर आवरण. परि का अर्थ है – चारों ओर और आवरण का अर्थ है ढका हुआ. वो वातावरण जिससे हम हर वक़्त चारों ओर से घिरे हुए हैं जहाँ हम रहते हैं….पर्यांवरण कहलाता है.
पेड़- पोधे, जल, वायु, मौसम…..आदि सब पर्यांवरण के अंतर्गत ही निहित हैं. प्रथ्वी के जीवन के लिए पर्यांवरण सबसे अहम् भूमिका निभाता है, जो सभी प्राणियों के जीवित रहने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है.
हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली समस्त कारक और घटनाएँ चाहे वो रासायनिक, जैविक या भोतिक हों….पर्यांवरण ही उन सब का मुख्य केंद्र है जो इन सब में अपनी भागीदारी रखता है जिससे हम चारों ओर से घिरे होने के साथ साथ हमारी समस्त क्रियाएं पर्यांवरण को सीधे सीधे प्रभावित करती हैं.
पर्यांवरण के अनंत फैलाव की बात करें तो इसमें सभी सूक्ष्म जीव और कीड़े- मकोड़े से लेकर मानव और जानवर सभी आते हैं और साथ ही सभी निर्जीव पदार्थ भी और ये सभी किसी न किसी रूप में पर्यांवरण के होने से ही इस धरती पर मौजूद हैं. इन सभी की क्रियांएँ किसी ना किसी रूप में पर्यांवरण को प्रभावित करती हैं, चाहे तो सजीव से हों या फिर निर्जीव से.
पर्यांवरण: एक परिचय
हालाकि प्रक्रति और पर्यांवरण समस्त धरती पर एक ही है….लेकिन मानव इसको कुछ अलग तरीके से सोचने लगते हैं. प्रक्रति द्वारा निर्मित मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है जिसने इस पर्यांवरण को भी जैसे बाँट लिया है और इसी वजह से पर्यांवरण को दो इकाई के रूप में देखा जाने लगा है….प्राक्रतिक और मानव निर्मित पर्यांवरण.
वो घटनाएँ जो प्रकति अपनी मर्जी से करती है….आकशीय बादल, चमकती बिजली, घनघोर वर्षा, तारों की टिमटिमाहट….इत्यादि सब प्राक्रतिक है. लेकिन जब कुछ बुद्धिमान मनुष्य सिर्फ अपने लालच और फायदे के लिए रासयनिक और भोतिक क्रियाओं से इस प्रक्रति में छेड़छाड़ करके ऐसा माहोल बना देते हैं जो प्रक्रति के नियम के विपरीत है….तो उसे मानव निर्मित पर्यांवरण कहा जाता है.
जब मानव अपने आर्थिक और विलासित जीवन की इच्छा रखते हुए प्रक्रति के नियमों का उल्लंघन करके उसमें छेड़छाड़ करता है तो ये खुद समस्त मानव जाति और आस-पास के जीव जंतुओं के लिए विनाश के दरवाजे पर दस्तक देने जैसा है और साथ ही प्रक्रति के अस्तित्व और प्रणाली को भी खतरे में रख दिया है….और ऐसी पर्यावरणीय समस्याओं को पर्यावरणीय अवनयन कहा जाता है.
पर्यावरण और पारितंत
प्रथ्वी पर रहने वाले सभी जैविक घटक चाहे वो जल, थल, वायु कही भी रहते हैं….इस पर्यांवरण के साथ मिलकर अपना पारितंत्र बनाते हैं, जिसमें सभी किसी न किसी माध्यम से एक दुसरे से सम्बंधित होते हैं. यहाँ तक कि पेड़-पौधे भी इसी श्रेणी में आते हैं जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से सभी जैविक प्राणियों के लिए निरंतर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं.
पर्यांवरण के प्रभावित होने से पारितंत्र प्रभावित होता है, ये तो सब जानते हैं. लेकिन क्या परितंत्र के प्रभावित होने से पर्यांवरण प्रभावित होगा….??
जी हाँ….बिल्कुल होगा.
अगर पेड़-पौधे नष्ट होने लगें और शहरीकरण अपने चरम सीमा तक पहुच जाए…तो क्या ऑक्सीजन की कमी नही होगी और साथ ही पर्यांवरण प्रभावित नही होगा. इसलिए ही मानव समाज को इस बात पर गौर देने की ज्यादा जरूरत है कि अपनी आर्थिक जरूरतों के भी कही ज्यादा ऊपर इस पर्यांवरण के नियम पर भी ध्यान दें.
पर्यांवरण प्रदुषण
सभी जानते हैं कि गावों में प्रदुषण शहरों की अपेक्षा बहुत कम है…और क्यों. शहरीकरण….ही इसका सबसे अहम् कारण है. पर्यांवरण दूषित होने के कई कारण हो सकते हैं और कई तरीके भी. वायु, जल, भूमि, ध्वनि प्रदुषण इत्यादि से हम इसको परिभाषित भी करते हैं.
पर्यांवरण प्रदुषण का मतलब है कि किसी भी ऐसे पदार्थ या उर्जा का पर्यांवरण के किसी भी गटक में इस तरह से प्रविष्ट होना जिससे वो उसकी छवि को नुक्सान पहुचाये या फिर गंदा करे…पर्यांवरण प्रदुषण कहलाता है.
बढती हुई जनसँख्या, बड़ी बड़ी फैक्ट्री से निकलता हुआ धुंआ, नदियों में डाले जाने वाला कचरा, पेड़-पोधो की कटाई, सड़कों पर अँधा-धुंध वाहनों का चलना….आदि ऐसे कारण है जो पर्यांवरण को प्रदूषित करने में अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं.
पर्यांवरण प्रदुषण से ही प्राकृतिक आपदाएं भी जन्म लेती हैं जैसे महामारी, सूखा, बाढ़, तूफ़ान, चक्रवात….आदि.
Similar questions