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इन लोक नृत्यों को विभिन्न कारणों से खुशी व्यक्त करने के लिए किया जाता है जैसे कि ऋतुओं, शादियों, एक बच्चे का जन्म, त्यौहार आदि, क्योंकि हर त्योहार उत्सवों के साथ होता है, जिसके साथ ही भारत के लोक नृत्य (Folk Dances of India Hindi Me) हमारे अभिन्न अंग बन जाते हैं।
इसमें, 15वीं सदी के कवि-संत श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधबदेवा द्वारा बनाए गए असमिया भक्ति गीतों की एक शैली, 600-सौ साल पुराने बोर्गेट को मैसेडोनियन सिम्फोनिक ऑर्केस्ट्रा द्वारा रिकॉर्ड किया जाएगा, जो अपनी तरह की पहली पहल में से एक है। और पैमाने।
कथक नृत्य उत्तर भारतीय शास्त्रिय नृत्य है। कथा कहे सो कथक कहलाए। कथक शब्द का अर्थ कथा को नृत्य रूप से कथन करना है। प्राचीन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।
बाउल या बाउल बंगाल क्षेत्र से तंत्र, सूफीवाद, वैष्णववाद और बौद्ध धर्म के मिश्रित तत्वों के रहस्यवादी टकसालों का एक समूह है, जिसमें बांग्लादेश और भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम की बराक घाटी शामिल हैं। बाउल एक समन्वित धार्मिक संप्रदाय और एक संगीत परंपरा दोनों का गठन करते हैं।
नाटी एक समृद्ध नृत्य परंपरा है। यह मेलों तथा त्योहारों पर किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय व मशहूर नृत्य है। नाटी नृत्य हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, सिरमौर, शिमला इत्यादि जनपदों में किया जाता है। इसे धीमी गति से आरम्भ किया जाता है, जिसे करते समय इसे ढीली नाटी कहा जाता है व बाद में यह द्रुत गति से बढ़ता जाता है।
भरतनाट्यम् या सधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है। इस नृत्यकला में भावम्, रागम् और तालम् इन तीन कलाओ का समावेश होता है। भावम् से 'भ', रागम् से 'र' और तालम् से 'त' लिया गया है। इसलिए भरतनात्यम् यह नाम अस्तित्व में आया है। यह भरत मुनि के नाट्य शास्त्र (जो ४०० ईपू का है) पर आधारित है। वर्तमान समय में इस नृत्य शैली का मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अभ्यास किया जाता है। इस नृत्य शैली के प्रेरणास्त्रोत चिदंबरम के प्राचीन मंदिर की मूर्तियों से आते हैं।[1]
भरतनाट्यम् को सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता है। इस नृत्य को तमिलनाडु में देवदासियों द्वारा विकसित व प्रसारित किया गया था। शुरू शुरू में इस नृत्य को देवदासियों के द्वारा विकसित होने के कारण उचित सम्मान नहीं मिल पाया, लेकिन बीसवी सदी के शुरू में ई. कृष्ण अय्यर और रुकीमणि देवी के प्रयासों से इस नृत्य को दुबारा स्थापित किया गया। भरत नाट्यम के दो भाग होते हैं इसे साधारणत दो अंशों में सम्पन्न किया जाता है पहला नृत्य और दुसरा अभिनय। नृत्य शरीर के अंगों से उत्पन्न होता है इसमें रस, भाव और काल्पनिक अभिव्यक्ति जरूरी है।
भरतनाट्यम् में शारीरिक प्रक्रिया को तीन भागों में बांटा जाता है -: समभंग, अभंग, त्रिभंग भरत नाट्यम में नृत्य क्रम इस प्रकार होता है। आलारिपु - इस अंश में कविता(सोल्लू कुट्टू ) रहती है। इसी की छंद में आवृति होती है। तिश्र या मिश्र छंद तथा करताल और मृदंग के साथ यह अंश अनुष्ठित होता है, इसे इस नृत्यानुष्ठान कि भूमिका कहा जाता है। जातीस्वरम - यह अंश कला ज्ञान का परिचय देने का होता है इसमें नर्तक अपने कला ज्ञान का परिचय देते हैं। इस अंश में स्वर मालिका के साथ राग रूप प्रदर्शित होता होता है जो कि उच्च कला कि मांग करता है। शब्दम - ये तीसरे नम्बर का अंश होता है। सभी अंशों में यह अंश सबसे आकर्षक अंश होता है। शब्दम में नाट्यभावों का वर्णन किया जाता है। इसके लिए बहुविचित्र तथा लावण्यमय नृत्य पेश करेक नाट्यभावों का वर्णन किया जाता है। वर्णम - इस अंश में नृत्य कला के अलग अलग वर्णों को प्रस्तुत किया जाता है। वर्णम में भाव, ताल और राग तीनों कि प्रस्तुति होती है। भरतनाट्यम् के सभी अंशों में यह अंश भरतनाट्यम् का सबसे चुनौती पूर्ण अंश होता है। पदम - इस अंश में सात पन्क्तियुक्त वन्दना होती है। यह वन्दना संस्कृत, तेलुगु, तमिल भाषा में होती है। इसी अंश में नर्तक के अभिनय की मजबूती का पता चलता है। तिल्लाना - यह अंश भरतनाट्यम् का सबसे आखिरी अंश होता है। इस अंश में बहुविचित्र नृत्य भंगिमाओं के साथ साथ नारी के सौन्दर्य के अलग अलग लावणयों को दिखाया जाता है।
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