corona महामारी के दौरान हुई बेरोजगारी पर निबंध लिखिए
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कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती की खबरें आ रही हैं.
माल्स, रेस्तरां, बार, होटल सब बंद हैं, विमान सेवाओं और अन्य आवाजही के साधनों पर रोक लगी हुई है. फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.
ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.
इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.
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कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती की खबरें आ रही हैं.
माल्स, रेस्तरां, बार, होटल सब बंद हैं, विमान सेवाओं और अन्य आवाजही के साधनों पर रोक लगी हुई है. फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.
ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.
इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.
बॉस्टन कॉलेज में काउंसिलिंग मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर और 'द इंपोर्टेन्स ऑफ वर्क इन अन एज ऑफ अनसर्टेनिटी : द इरोडिंग वर्क एक्सपिरियन्स इन अमेरिका' क़िताब के लेखक डेविड ब्लूस्टेन कहते हैं, "बेरोज़गारी की वैश्विक महामारी आने वाली है. मैं इसे संकट के भीतर का संकट कहता हूँ."जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.
सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें?लॉकडाउन के कारण दफ्तरों और कारखानों में काम बंद हो गया है.
हालात कठिन हैं
39 वर्ष के जेम्स बेल जिस बार में काम करते थे, उसके बंद होते ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. अपने पाँच लोगों के परिवार को चलाने के लिए वेतन और टिप पर पूरी तरह निर्भर जेम्स के लिए यह एक बड़ा झटका था.
वो कहते हैं, "मुझे अंदाजा था कि कोरोना की ख़बरों के बाद बार में बहुत कम लोग आ रहे हैं, लेकिन यह अंदेशा नहीं था कि मेरी नौकरी ही चली जाएगी."
अब वह बेरोज़गारी भत्ते और विभिन्न चैरिटेबल संस्थाओं से वित्तीय सहायता पाने के लिए कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन अचानक आजीविका चली जाने के दुख पर एक सुकून यह भी है कि अब उन्हें हर दिन वायरस से संक्रमित होने के डर से मुक्ति मिल गयी है.
वो कहते हैं, "नौकरी जाने से एक हफ्ते पहले तक मैं बार के दरवाज़ों के हैंडल को बार-बार डिसिनफ़ेक्ट कर रहा था."
उनके मुताबिक़ उनकी भावनात्मक स्थिति बहुत डांवाडोल है. नौकरी जाने का तनाव और महामारी का डर दोनों उन्हें परेशान करता रहता है.
जेम्स कहते हैं कि उन्हें इस बातका आभास है कि यह स्थिति हर व्यक्ति के साथ है. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि मेरी असली चिंता यह है कि ये सब कब तक चलेगा. ये हालात जितने अधिक समय तक रहेंगे, हमारा वित्तीय संकट बढ़ता ही जाएगा."