Hindi, asked by dipankarrai9816, 1 year ago

Crackers effect in envirmant in 300 in hindi

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Answered by hatimlaila23
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The newspapers on the days following Diwali are filled with tragic stories of children losing their eyes and being subjected to traumatic respiratory disorders. The monotony and repetition of such news has come to mark Diwali every year. Authorities have taken little, if not no remedial measures to curb such incidents, often blaming it on the carelessness of the victim.

It is very evident that firecrackers are polluters, but the hidden story behind their manufacture goes unnoticed and ignored. Hundreds, if not thousands, of children are employed in the racket of producing this very carcinogenic substance and the unethical means of this servitude is appalling, considering episodes of fire accidents in these factories.


Answered by Lamesoul
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दिवाली खुशियों का त्‍योहार है, यह रोशनी और हर्षोल्‍लास का त्‍योहार है। लेकिन, खुशी मनाने के चक्‍कर में हम पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा हैं।

सजावट के सामान से लेकर, दिवाली में जलाए जाने वाले पटाखे भी कुदरत के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं। पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पटाखों के कारण ही होता है। इसके अलावा पटाखों के कारण चोट भी लग सकती है। इसलिए इस दिवाली पटाखों से दूर रहने की कोशिश करें। अगर पटाखे जला भी रहे हैं तो थोड़ी सावधानी बरतें।
सर्द ऋतु के प्रारंभ में ही अधिकतर पक्षियों का प्रजनन काल पूरा हो जाता है। इस समय पक्षियों के घोंसलों में छोटे-छोटे बच्चे हैं। गौरैया, मैना, कौआ, तोता, पाइड बुशचैट आदि पक्षी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में आबादी के आसपास ही घोसला बनाते हैं। इसमें मादा पक्षी अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों को पाल रही होती हैं। लेकिन उन बेचारों को तो जरा भी आभास नहीं होता कि उनके लिए खौफनाक रात भी आने वाली है। 


दिवाली पर आतिशबाजी का शोर गांव की अपेक्षा शहरों में ज्यादा होता है। प्रो. दिनेश भट्ट का कहना है कि शहर में पालतू जानवरों पर भी पटाखों के शोर और वायु प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है। कुत्ते, गाय-भैंस आदि पशुओं में दिवाली की रात बेचैनी स्पष्ट देखी जा सकती है। उनके फेफड़ों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।

गुरुकुल कांगड़ी विवि के प्रोफेसर अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक डा. दिनेश भट्ट का कहना है कि दिवाली की रात तेज आवाज वाले पटाखे चलाए जाते हैं। यह आवाज कई नन्हें पक्षी सहन नहीं कर पाते और दहशत से उनकी मौत तक हो जाती है। पिछले वर्षों में इस तरह के कई मामले देखने में आए हैं।

व्यस्क पक्षी भी पटाखों की तेज आवाज से सहमे रहते हैं। तेज आवाज के साथ ही वायु प्रदूषण का पक्षियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। दिवाली के बाद 25-30 प्रतिशत पक्षियों के श्वसन तंत्र पर प्रभाव देखा जा सकता है।

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