ड-भीम ने कीचक का वध क्यों किया?
Answers
Explanation:
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! जैसे क्रोध में भरा हुआ गण्डस्थल से मद टपकाते हुए दूसरे हाथी को सूँड़ से पकड़ ले, उसी प्रकार रोषयुक्त कीचक ने सहसा झपटकर दोनों हाथों से भीमसेन को पकड़ लिया। तब पराक्रमी भीम ने भी झपटकर उसे पकड़ा, किंतु बलवानों में श्रेष्ठ कीचक ने बलपूर्वक उन्हें झटक दिया। उस समय उस युद्ध में उन दोनों बलवानों की भुजाओं की रगड़ से बाँस फटकने सा भयानक शब्द होने लगा। फिर जिस प्रकार प्रचण्ड आँधी वृक्ष को झकझोर डालती है, उसी प्रकार भीमसेन कीचक को बलपूर्वक धक्के दे देकर उसे नृत्यशाला में वेग से घुमाने लगे। उस युद्ध में बलवान भीम की पकड़ में आकर यद्यपि कीचक अपना बल खो रहा था, तथापि वह यथाशक्ति उन्हें परास्त करने की चेष्टा करता रहा और भीमसेन को अपनी ओर खींचने लगा। जब वे कुछ-कुछ वश में आ गये और उनका पैर कुछ लड़खड़ने लगे, तब उस दशा में खड़े हुए भीमसेन को बलवान कीचक ने क्रोधपूर्वक दोनों घुटनों से मारकर पृथ्वी पर गिरा दिया। अत्यन्त बलशाली कीचक द्वारा इस प्रकार भूमि पर गिराये हुए भीमसेन हाथों में दण्ड धारण करने वाले यमराज की भाँति बड़े वेग से उछलकर खड़े हो गये। सूतपुत्र और पाण्डूनन्दन दोनों बल से उन्मत्त हो रहे थे। वे दोनों बलवान वीर स्पर्धा के कारण उस निर्जन स्थान में आधी रात के समय एक दूसरे को खींचते और धक्के देते रहे।। इससे वह विशाल भवन बार-बार हिल उठता था। दोनों योद्धा बड़े क्रोध में भरकर एक दूसरे के सामने जोर-जोर से गरज रहे थे।
इतने में ही भीम ने दोनों हथेलियों से बलवान कीचक की छाती पर प्रहार किया। चोट खाकर बलवान कीचक क्रोध से जल उठा, किंतु अपने स्थल से एक पग भी विचलित नहीं हुआ। भूमि पर खड़े रहकर दो घड़ी तक उस दुःसह वेग को सह लेने के पश्चात भीमसेन के बल से पीड़ित हो सूतपुत्र कीचक अपनी शक्ति खो बैठा। महाबली भीम ने उसे निर्बल एवं अचेत होते देख उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बड़े वेग से उसे रौंदने लगे। विजयी वीरों में श्रेष्ठ भीमसेन का क्रोधावेश अभी उतरा नहीं था। उन्होंने पुनः बारंबार उच्छ्वास लेकर कीचक के केश पकड़ लिये। जैसे कच्चे मांस की अभिलाषा रखने वाला सिंह महान मृग को पकड़ ले, उसी प्रकार महाबली भीम कीचक को पकड़ कर बड़ी शोभा पा रहे थे। तदनन्तर उसे अत्यन्त थका जानकर भीम ने अपनी भुजाओं मे इस प्रकार कस लिया, जैसे पशु को रस्सी से बाँध दिया गया हो। अब वह फूटे नगारे के समान विकृत स्वर में जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा बन्धन से छूटने के लिये छटपटाने लगा। उसकी चेतना लुप्त हो रही थी। उसी दशा में भीमसेन ने बहुत देर तक घुमाया। फिर द्रौपदी का क्रोध शान्त करने के लिये उन्होंने दोनों हाथों से उसका गला पकड़कर बड़े वेग से दबाया। इस प्रकार जब उसके सब अंग भंग हो गये, आँख की पुतलियाँ बाहर निकल आयीं और वस्त्र फट गये, तब उन्होंने उस कीचकाधम की कमर को अपने घुटनों से दबाकर दोनों भुजाओं द्वारा उसका गला घोंट दिया और उसे पशु की तरह मारने लगे। मृत्यु के समय कीचक को विवाद करते देख पाण्डुनन्दन भीम ने उसे धरती पर घसीटा और इस प्रकार कहा- ‘जो सैरन्ध्री के लिये कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं उऋण हो जाऊँगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी। पुरुषों में उत्कृष्ट वीर भीमसेन के नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे।