डॉ. भीम राव अमबेडकर से हमे क्या सीख मिलती है
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"मानव इतिहास में बेसहारों का सहारा बने और शोषितों की डूबती नईया का किनारा बने भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेकडर जी का जीवन व उनके कार्य मानव को सही दिशा देते हैं। "
क्या कभी किसी ने सोचा था कि एक दिन एक ऐसा व्यक्ति भी होगा जो गुलामों को हजारों सालों की बेड़ियों से आजाद करा देगा? कभी किसी ने सोचा था कि वह व्यक्ति कोई उच्च कुलीन वर्ग से नहीं बल्कि अत्यंत शोषित वर्ग से होगा? कभी किसी ने सोचा था कि वह इतने बड़े कार्य को शिक्षा और बुद्धि के बल पर कर लेगा? और क्या कभी किसी ने सोचा था कि वह व्यक्ति अपने जीवन व कार्य से आनेवाली करोड़ों जिंदगियों के जीवन में प्रकाश भर देगा?
जी हाँ, वह व्यक्ति है भारत रत्न बाबा साहिब डॉ भीमराव अम्बेडकर। हमारे अपने बाबा साहिब। बाबा का अर्थ है पिता और साहिब का अर्थ है एक आदरणिय और श्रेष्ठ व्यक्ति। डॉ अम्बेडकर ने आनेवाली करोड़ों पीढ़ियों के जीवन में इतना प्रकाश भर दिया कि वह सबके लिए पिता सामान आदरणिय हो गए और उन्हें हम आदर और प्रेम से बाबा साहिब बुलाते हैं। बाबा साहिब की शिक्षा, उनके लेखों और कार्यों के बराबर का कोई दूसरा व्यक्ति विरले ही दुनिया में मिलेगा। उन्होंने वर्षों पहले जो शिक्षा प्राप्त की, आज भी उतनी शिक्षा बहुत कम लोग लेते हैं। उतनी शिक्षा लेने के बाद भी वह कोई नौकरीपेशा या व्यवसायी न बन कर एक ऐसे व्यक्ति बनें जिसने आनेवाली उस पीढ़ी को जिंदगी दी जिनके पुरखें जातिवाद की गुलामी में सदियों से पिस्ते आ रहे थे। बाबा साहिब द्वारा किए गए अनेक कार्य हमें उनकी कार्यशैली और लगन से परिचित करते हैं। उनके कार्य हमें बताते हैं कि कैसे विषम परिस्थितियों और आर्थिक कमी होने पर भी भी बाबा साहिब अपने उद्देश्य में लगे रहे। एक तरफ उन पर अपने परिवार की जिम्मेदारी थी तो दूसरी तरफ शोषित समाज और आर्थिक तंगी दूर करने की समस्याएँ। एक तरफ वह अपने कार्य पूरा कर रहे थी तो दूसरी तरफ अपने कार्यों और परिवार के लिए धन भी एकत्र करते थे। ऐसे में वह किन-किन विषम परिस्थितियों से जूझ कर गुलाम समाज की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे यह हमें उनके जीवन व कार्यों की जानकारी प्राप्त करके पता चलता है।
आज हम करोड़ों में है और अपना-अपना परिवार पाल रहे हैं। हम में से शायद ही कोई समाज की तरफ ध्यान देता है। आज हम आर्थिक तरक्की भी कर रहे हैं। परन्तु आज भी कस्बो और गाँवों में जातिगत समस्याएँ ज्यूँ की त्यूं बनी हुई है। शहरों में भी अंतर्जातीय विवाहों में बहुत कठनाई होती है। ऐसे में समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने कार्यों के साथ-साथ यह प्राण ले कि वह भारत को जातिमुक्त देश बनाने के लिए एक वैसे ही सैनिक की तरह युद्ध करेगा जैसे कि भारत की सेनाएं विदेशी ताकतों के साथ करती है। सीमा पर हमारा शत्रु विदेशी है पर सीमा के भीतर हमारा शत्रु देसी है। जातिवाद का शत्रु इसी देश की उपज है और उसे इसी देश के भीतर और इसी देश के लोगों द्वारा समाप्त करना होगा। परन्तु हमारे तरीके व साधन शांति प्रिया होने चाहिए। जातिवाद समाप्त करने में हमें भाईचारे का ध्यान रखते हुए यही सोच कर युद्ध करना है कि हमारा यह जातिवाद के विरुद्ध युद्ध भाईचारे और सौहाद्र की स्थापना के लिए ही है न की संघर्ष और हिंसा को आगे बढ़ाने के लिए।
इस प्रकार शांतिवादी तरीके से हम तब ही युद्ध कर सकते हैं जब हमने बाबा साहिब के जीवन और कार्यों का अध्यन्न किया हो। जब हमें पता हो कि किस प्रकार बाबा साहिब शांतिवादी तरीके से अपने ज्ञान-बल और अपने बुद्धि-बल से अपने कार्य करते थे। हमें यह भी पता चलना चाहिए कि वह किस प्रकार विषम परिस्थितियों का सामना करते और समस्याएँ हल करते थे। जब हम पहले अच्छे से उनके कार्य व जीवन को जान लेंगे तो हम समाज को नई दिशा देने लायक बन जाएंगे नहीं तो समाज जैसे अंधेरों में भटक रहा है वैसे ही उस बुद्धिहीन, अज्ञान और अकुशल समाज की भाँती भटकते रहेंगे।
निम्नन पुस्तके भले ही आपको अधिक मूल्यों की लगे परन्तु इन्हें खरीदनेवाली राशि को आप केवल पुस्तकों के मूल्यों के रूप में न देखे, इस राशि को आप समाज परिवर्तन के कार्यों में इन्वेस्टमेंट के रूप में देखें। आप जब तक नए समाज की स्थापना में इन्वेस्टमेंट नहीं करेंगे तब तक नए समाज की स्थापना नहीं हो पाएगी। कुछ लोगों ने हमसे कहा कि पुस्तकें ई - फॉर्म में इंटरनेट पर डाल दी जाएं। परन्तु ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि यदि ई फॉर्म में भी एक पुस्तक लिखी जाए तो उसके लिए शोधकर्ता, लेखक और कम्प्यूटर एक्सपर्ट के साथ आधुनिक मशीनों की भी आवश्यकता पड़ती है। यह सारे काम व्यक्तियों द्वारा किये जाते हैं जिनके ऊपर अपने अपनी व् अपने परिवार की भी जिम्मेदारी हैं। साथ-ही-साथ हमारे देश में ई पुस्तकें उतनी पढ़ी भी नहीं जाती और अभी भी अधिकांश्तर लोगों के पास कम्यूटर नहीं है और है तो उसे चलाना नहीं आता और यदि यह सब है तो अभी भी बिजली की समस्या इतनी है कि कंप्यूटर पर काम करना अभी दूर की बात रह गयी है। और यदि आपके पास अभी इतनी राशि नहीं है तो पुस्तकों के लिए वैसे ही राशि जमा करें जैसे आप और चीजों के लिए करते हैं। बुद्धि का विकास सबसे महत्वपूर्ण विकास है और फिर है सामाजिक विकास। एक विकसित समाज के व्यक्ति को उतना व्यक्तिगत और पारिवारिक संघर्ष नहीं करना पड़ता जितना एक अविकसित समाज के व्यक्ति को। सो अपनी बुद्धि, अपने समाज और अपनेआप को विकसित बनाने के लिए धनराशि जमा करे और अपना समय पुस्तकों के अध्यन्न में लगाएं। आप आज खुस्किस्मत हैं कि आप तक ज्ञान इतनी सरलता से जा रहा है वरना एक समय था जब बाबा साहिब को स्कूल के भीतर घुसाने भी नहीं दिया जाता था। आज आपके पास अवसर है कि ज्ञान को प्राप्त करने में कंजूसी अथवा संकोच न करें और आगे बढ़ कर एक लीडर की भांति ज्ञान प्राप्त करे और समाज को नई दिशा दें।
- जय भीम जय भारत - निखिल सबलानिया
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर देश के सर्वप्रथम कानून के रचयिता उनकी जीवनी बहुत ही कठिन थी वह समाज के सबसे छोटे वर्गों में आते थे उन्हें समाज नीच के भावना से देखते थे पर उनके विचार उनके लगन और उनके साहस ने समाज के उन वर्गों को आईना दिखाने की कोशिश की और वह सफल भी रहे वह बेसहारों के सहारा तथा गरीबों के सबसे बड़े हितकर थे उनके अंदर मानवता की भावना कूट-कूट कर भरी थी और यही चीजें हम उनके जीवनी से शिक्षा के रूप में ग्रहण करते हैं।