ड)गिल्लू कितने वर्ष लेखिका के घर रहा?
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तीन-चार मास में उसके स्निग्ध रोंएँ, झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं। हमने इसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे "गिल्लू" कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हल्की डलिया में रूई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया। वही दो वर्ष "गिल्लू" का घर रहा।
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