डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे
जन्म : ७ अगस्त १९४२, गुलबर्गा (कर्नाटक) रचनाएँ : लगभग ६५ पुस्तकें - अनुवाद का समाज शास्त्र तथा हिंदी कथा साहित्य और
देश विभाजन उल्लेखनीय हैं । परिचय : डॉ. रणसुभे जी मराठी भाषी हिंदी लेखक, प्राध्यापक, अनुवादक, समीक्षक के रूप में जाने जाते
हैं।
प्रस्तुत निबंध के माध्यम से लेखक ने शब्दों की शक्ति को दिखाते हुए इनकी संपदा को बढ़ाने के लिए जागरूक किया है ।
स्वयं अध्ययन
वाणी कैसी होनी चाहिए, बताओ।
आदिम अवस्था से आधुनिक मनुष्य तक की
विकास यात्रा का रहस्य किसमें है, क्या इसका तुम्हें
पता है? अधिकांश लोग इसका उत्तर देते हैं कि अन्य
प्राणियों की तुलना में मनुष्य का विकसित मस्तिष्क इस
पूरी प्रगति व संस्कृति के मूल में है । यह उत्तर अपूर्ण
है। पूर्ण उत्तर यह है कि मनुष्य की प्रगति हुई, वह
तिने शाला की खोज की। भाषा
शब्दों का यह संसार बड़ा विचित्र है । शब
ताकत की ओर हमारा ध्यान कभी नहीं जाता।
मनुष्य को ज्ञान से जोड़ते हैं । शब्द ही मनुष्य के
से जोड़ते हैं और शब्द ही मनुष्य को मनुष्य से ते
विज्ञान की दृष्टि से तो अक्षर ध्वनि के चिह्न हैं
हैं । मनुष्य ही उन्हें अर्थ देता है, जीवंत बनाता
शब्द जीवंत हो जाते हैं तो फिर उनमें मनुष्य
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nammaiv igwbwni wiiajs e 1. sundor wbkf just sjneog isysywyneovs. Yankees dg eisibev
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