Hindi, asked by kumararyan2697, 2 months ago

'डायरी का एक पन्ना ' पाठ के आधार पर 26 िनवरी , 1931 को कोलकाता मेंह ुई गनतववधधयों की एक ररपोटघ प्रस्तुत कीजिए । class 10 please​

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Answered by xXbrainlykibacchiXx
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Answer:

अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्यग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की उम्मीद जगाई। देश भर से ऐसे बहुत से लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के ढ़ाई साल बाद ,1950 को यही दिन हमारे अपने सम्विधान  के लागू होने का दिन भी बना।

अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्यग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की उम्मीद जगाई। देश भर से ऐसे बहुत से लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के ढ़ाई साल बाद ,1950 को यही दिन हमारे अपने सम्विधान  के लागू होने का दिन भी बना।प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की इच्छा रखने वाले उन्ही महान इंसानों में से एक थे। वह दिन -प्रतिदिन जो भी देखते थे ,सुनते थे और महसूस करते थे ,उसे अपनी एक निजी डायरी में लिखते रहते थे। यह कई वर्षों तक इसी तरह चलता रहा। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है जो उन्होंने खुद अपनी डायरी में लिखा था।

अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्यग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की उम्मीद जगाई। देश भर से ऐसे बहुत से लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के ढ़ाई साल बाद ,1950 को यही दिन हमारे अपने सम्विधान  के लागू होने का दिन भी बना।प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की इच्छा रखने वाले उन्ही महान इंसानों में से एक थे। वह दिन -प्रतिदिन जो भी देखते थे ,सुनते थे और महसूस करते थे ,उसे अपनी एक निजी डायरी में लिखते रहते थे। यह कई वर्षों तक इसी तरह चलता रहा। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है जो उन्होंने खुद अपनी डायरी में लिखा था।नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकता ) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश के साथ मनाया, अंग्रेज प्रशासकों ने इसे उनका विरोध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे -कैसे जुल्म ढाए, इन सब बातों का वर्णन इस पाठ में किया गया है।यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों को तो याद दिलाता ही है साथ ही साथ यह भी सिखाता है कि यदि एक समाज या सभी लोग एक साथ सच्चे मन से कोई कार्य करने की ठान लें तो ऐसा कोई भी काम नहीं है जो वो नहीं कर सकते।

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