Hindi, asked by sphunter547gmailcom, 10 months ago

Darwin ward ka Siddhant ​

Answers

Answered by palak970
1

Answer:

डार्विन, चार्ल्स रॉबर्ट (Darwin, Charles Robert, सन्‌ 1809-82) अंग्रेज प्रकृतिवैज्ञानिक का जन्म श्रिउसबरी में हुआ था। विकासवाद के सिद्धांत की स्थापना का श्रेय मुख्यत: इन्हें प्राप्त है।

यद्यपि विश्व की परिवर्तनशीलता के कारणों के संबंध में प्राचीन काल से अनेक विचार चले आ रहे थे तथा 18वीं और 19वीं शताब्दियों में उद्भव (descent) के अनुसार जातियों की उत्परिवर्तनशीलता (Mutability) का सिद्धांत जड़ पकड़ रहा था, फिर भी डार्विन के पूर्व कोई परिकल्पना सर्वमान्य नहीं हुई थी। डार्विन के युवा होने तक जीवों की विभिन्न जातियों की उत्पत्ति का प्रश्न पुनर्विचार के लिए परिपक्व हो गया था। इनका कार्य इस संबंध की विपुल सामग्री को एकत्रित कर विश्व को सप्रमाण समझाना था।

इन्होंने इससे भी बड़ा काम किया। परिवर्तन (variation) तथा आनुवंशिकता (heredity) का अध्ययन कर इन्होंने एक ऐसे नए विज्ञान को जन्म दिया जिसकी कसौटी पर आगे चलकर उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत जाँचे गए। अन्यों द्वारा तथा स्वयं निरीक्षण की हुई बातों से सच्चे विवेचन और विश्लेषणात्मक तर्क से तथा वास्तविकता के आधार पर इन्होंने विकास के ऐसे सिद्धांत को प्रतिष्ठापित किया जो धीरे-धीरे सर्वमान्य हो गया और जिसने ज्ञात बातों की नई व्याख्या के लिए प्रशस्त मार्ग खोल दिया। बाद के अविष्कारों के कारण इनके मूल सिद्धांत में कुछ परिवर्तन करना पड़ा है, किंतु मुख्य संगत तथ्य वही के वही हैं।

जीवन तथा शिक्षा -

चार्ल्स डारविन के पिता का नाम रॉबर्ट डार्विन तथा माता का सुज़ैना वेजवुड (Susannah Wedgewood) था। ये अपने पिता के, जो श्रिउसबरी के समृद्ध डाक्टर थे, छठे पुत्र थे। ये जब आठ वर्ष के थे, इनकी माता की मृत्यु हो गई और इनकी बड़ी बहनों ने घर सँभाला, पर ये बहुधा अपने ननिहाल में रहते थे। फलत: आगे चलकर इनकी ममेरी बहन, एमा वेजवुड, से इनका विवाह हो गया, जिनके साथ इन्होंने अपने जीवन के अंतिम 43 वर्ष बिताए।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा श्रिउसबरी के ग्रैमर स्कूल में हुई। डार्विन ने स्वयं लिखा है कि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। 16 वर्ष की आयु में चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा के लिए इन्हें एडिनबरा युनिवर्सिटी में भरती किया गया, किंतु इस शास्त्र में इनका मन नहीं लगा। इनका झुकाव प्राकृतिक विज्ञान की ओर था। इन्होंने प्राणिवैज्ञानिक मौलिक निरीक्षणों संबंधी अपना सर्वप्रथम लेख प्लिनियन (plinian) सोसायटी के संमुख पढ़ा।

डाक्टरी के पेशे में इनके लगने की आशा जब कम दिखाई दी तो इनके पिता ने दु:खित हो इन्हें केंब्रिज विश्वविद्यालय में भरती कराया। जनवरी, सन्‌ 1831 में इन्होंने यहाँ से साधारण डिग्री प्राप्त की।

बीगल (Beagle) की यात्रा -

इसी साल पैटागोनिआ (Patagonia) तथा टियरा डेल फूएगो (Tierra del fuego) के समुद्रतटों का नक्शा तैयार करने तथा पृथ्वी के चतुर्दिक्‌ कालमापन के लिए राजकीय जहाज 'बीगल' पर कैप्टन रॉबर्ट फिट्ज़रॉय जा रहे थे। इन्हें एक प्राकृतिक वैज्ञानिक को साथ में ले जाने की अनुमति मिली और यह पद डार्विन को मिल गया।

यह समुद्री यात्रा पाँच वर्ष रही। इस यात्रा में इनकी प्रतिभा को पूर्ण अवसर मिला। अब ये मन की तुष्टि पर्यत निरीक्षण, संग्रह, अनुशीलन तथा सैद्धांतिक परिकल्पना कर सकते थे। केप वर्ड (Cape Verde) द्वीपों में, जहाँ जहाज अधिक काल तक रुकनेवाला था, इन्होंने विभिन्न जातियों के प्राणियों का निरीक्षण करना आरंभ किया। जीवित तथा उच्छिन्न जातियों का संबंध, उनका भौगोलिक वितरण, द्वीपों के रूपों का स्थानसीमन तथा विपुल कालावधि, ये सब विकासवाद के सिद्धांत के उद्घाटन में सहायक हुए।केप वर्ड द्वीपों के पश्चात्‌ दक्षिणी अमरीका महाद्वीप का पूर्वी समुद्रतट और टियरा डेल फूएगो तथा फाकलैंड द्वीपों के समुद्रतटों की यात्रा में 29 मास लगे। डार्विन कभी समुद्रतट पर और कभी देश के भीतर यात्रा करते हुए निरीक्षण किया करते। गालापागस (Galapagos) द्वीपसमूह, टाहिटी, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, टास्मैनिया कीलिंग द्वीप, ऐसेंशन (Ascension) द्वीप, सेंट हेलेना तथा सदाशा अंतरीप की यात्रा ने 13 महीने लिए। अक्टूबर, सन्‌ 1836 में डार्विन इंग्लैंड वापस पहुँचे और संकलित तथ्यों में सामंजस्य स्थापित करने में लग गए।

उनकी गणना तब विज्ञान के शीर्ष विद्वानों में होने लगी, क्योंकि उनकी अनुपस्थिति में उनके मित्र, केंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेन्स्लो ने, बिना उन्हें बताए, विज्ञान विषयक उनके पत्र छपवा डाले थे। सन्‌ 1838 में वे जियॉलॉजिकल सोसायटी के मंत्री बनाए गए तथा एक वर्ष पश्चात्‌ रॉयल सोसायटी के सदस्य (Fellow) चुने गए।

प्रकाशन -

बाद के वर्ष इन्होंने यात्रा का विवरण तैयार करने में बिताए। यात्रा में एकत्रित भूवैज्ञानिक तथ्य तीन खंडों में प्रकाशित हुए। जीववैज्ञानिक अनुसंधान विषयक बातें पाँच खंडों की पुस्तक में प्रकाशित हुईं। इनके शेष जीवन का बड़ा भाग ग्रंथ लिखने और उनके प्रकाशन में बीता, किंतु ये कार्य उनके मुख्य कार्य में बाधा पहुँचाते रहे। जातियों के प्रश्न का, जो विकास की समस्याओं का वास्तविक आधार था, स्पष्टीकरण आवश्यक था। संभवत: इसी कारण इन्होंने अलकपादों (cirripedes) तथा खंडावरों (barnacles) के संबंध में पूर्ण अनुसंधान आरंभ किया। इसमें इन्हें आठ वर्ष लगे और इसका फल चार खंडों में प्रकाशित हुआ।जातिपरिवर्तनों के संबंध में लिखना इन्होंने सन्‌ 1837 में आरंभ किया था। इसके पश्चात्‌ अनेक वर्षों तक ये जीवों तथा वनस्पतियों के संबंध में विपुल तथ्य एकत्रित कर उनमें सामंजस्य स्थापित करने की चेष्टा में लगे रहे। इस कार्य के लिए इन्होंने विभिन्न उद्यमों में लगे लोगों, जैसे डाक्टरों, किसानों, मालियों, पशुपालकों इत्यादि, से भी यथार्थ बातें संचित कीं। इस प्रकार इन्होंने विशाल सामग्री का संग्रह किया और उसके आधार पर एक सुगठित सिद्धांत की परिकल्पना की।

Answered by pragyan07sl
2

Answer:

  • चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन का जन्म 1809 में इंग्लैंड के श्रूस्बरी में हुआ था।
  • डार्विन का (12 फरवरी, 1809-अप्रैल 19, 1882) योगदान जैविक विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान जैविक विकास के अवधारणा को उचित आकार दिया है ।
  • अपने स्वयं के अवलोकनों के आधार पर प्रकृति और समकालीन जीवविज्ञानियों के विचारों से प्रभावित डार्विन ने प्रजातियों की उत्पत्ति के सिद्धांत तैयार किए थे।  
  • डार्विन (और वालेस) के विकासवादी सिद्धांत को "प्राकृतिक चयन द्वारा प्रजातियों की उत्पत्ति" के रूप में जाना जाता है।
  • या "प्राकृतिक चयन का सिद्धांत" या "संशोधन के साथ वंश" और इसे शीघ्र ही "डार्विनवाद" के रूप में भी जाना जाता है।

यह सिद्धांत प्रकृति के निम्नलिखित अवलोकनों पर आधारित है जिनसे कुछ तार्किक निष्कर्ष निकलते हैं:-

1. भारी गुणा दर: (Enormous Multiplication Rate)

  • प्रत्येक प्रजाति में प्रजनन द्वारा गुणा करने की प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है
  • दौड़ की निरंतरता के लिए ज्यामितीय प्रगति (1:2:4:8......) में। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार मनुष्य सहित पौधे, जानवर प्रत्येक पीढ़ी में दुगुने हो जाते हैं।

2. अस्तित्व के लिए संघर्ष: (Struggle for Existence)

  • जबकि व्यक्ति ज्यामितीय अनुपात में गुणा करते हैं, भोजन की कुल मात्रा और निवास पृथ्वी पर लगभग स्थिर रहता है।
  • तो डार्विन ने निष्कर्ष निकाला कि प्रत्येक जीव को प्रयास करना पड़ता है या जीवन के लिए अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों के साथ संघर्ष करना।
  • यह संघर्ष युग्मनज अवस्था से लेकर तक जारी रहता है मौत। संघर्ष में बड़ी संख्या में व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक प्रजाति को प्रजनन करना पड़ता है बड़ी संख्या में संतानें, ताकि, कुछ दौड़ जारी रखने के लिए जीवित रह सकें।

3. विविधता और आनुवंशिकता: (Variation and Heredity)

  • एक प्रजाति के कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल समान नहीं हैं (समान को छोड़कर जुडवा)। यह एक प्रजाति के सदस्यों के बीच देखे गए छोटे या बड़े अंतर के कारण होता है और इसे जाना जाता है 'विविधता' के रूप में।
  • कुछ विविधताएँ लाभप्रद हो सकती हैं और उनके जीवित रहने की संभावना को बढ़ा सकती हैं वाहक लेकिन हानिकारक या तटस्थ विविधताएं अस्तित्व के संघर्ष में मदद नहीं करती हैं।

4. योग्यतम की उत्तरजीविता (या प्राकृतिक चयन): (Survival of the Fittest or Natural Selection)

  • अनुकूल और पैतृक संपत्ति रखने वाले व्यक्ति अस्तित्व के संघर्ष में भिन्नताएँ अधिक सफल होती हैं। वे संघर्ष में जीतते हैं और कहा जाता है योग्यतम "योग्यतम की उत्तरजीविता" की अवधारणा मूल रूप से हर्बर्ट स्पेंसर और उसी का विचार था डार्विन ने घटना को "प्राकृतिक चयन" के रूप में नामित किया है।
  • उन्होंने प्राकृतिक चयन के विचार की कल्पना की थी कृत्रिम चयन का उनका अवलोकन। उन्होंने बताया कि घरेलू पशुओं के प्रजनक प्रदर्शन करते हैं वांछनीय विशेषताओं के साथ घोड़ों, मवेशियों, कुत्तों और बिल्लियों की नई किस्मों को बढ़ाने के लिए चयनात्मक प्रजनन।
  • प्रकृति भी जीवित रहने और संरक्षण के लिए बेहतर विविधता वाले ऐसे व्यक्तियों का चयन करती है। इसी प्रकार, उपयोगी प्रकृति में होने वाली विभिन्नताओं को संरक्षित किया जाता है क्योंकि प्रकृति उन्हें चुनती है। इसलिए, सबसे योग्य व्यक्ति प्राकृतिक चयन के माध्यम से जीवित रहें।

5. सतत पर्यावरण परिवर्तन: (Continuous Environmental Change)

  • डार्विन ने देखा कि समय के संबंध में पर्यावरण और अंतरिक्ष कभी स्थिर नहीं होता। तो एक विशेष भिन्नता जो किसी दिए गए वातावरण में सबसे उपयुक्त हो सकती है बदली हुई पर्यावरणीय परिस्थितियों में प्रतिकूल साबित होते हैं। इसलिए जीव पूर्णता तक नहीं पहुंच सकता बदलते परिवेश में।
  • इसलिए, अस्तित्व के संघर्ष में जीवित रहने के लिए, एक जीव को होना चाहिए बदलते परिवेश की प्रतिक्रिया में बदलने में सक्षम हो।
  • विशाल सरीसृपों के विलुप्त होने के कारण मेसोज़ोइक युग के दौरान पर्यावरण परिवर्तन के लिए एक उपयुक्त उदाहरण है।

6. प्रजाति की उत्पत्ति: (Origin of Species)

  • उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर डार्विन ने प्रजातियों की उत्पत्ति का निष्कर्ष निकाला प्राकृतिक चयन के माध्यम से।
  • किसके द्वारा चुने जाने पर पर्यावरण परिवर्तन के साथ लाभकारी विविधताएं प्रकृति और प्रक्रिया धीरे-धीरे और लगातार जारी रहती है और लाखों वर्षों से इस तरह के उद्भव की ओर ले जाती है वंशज जो अपने पूर्वजों से काफी भिन्न हैं।
  • अंततः ये वंशज नए बनते हैं प्रजातियाँ। जब विभिन्न दिशाओं में भिन्नताएं होती हैं, तो एक से दो या उससे भी अधिक प्रजातियां उत्पन्न हो सकती हैं पैतृक स्टॉक।
  • यह प्रक्रिया आज पृथ्वी पर मौजूद जानवरों की दस लाख प्रजातियों के लिए जिम्मेदार है और जीवन की उत्पत्ति के समय से विलुप्त प्रजातियों की संख्या बहुत अधिक है।

#SPJ3

Similar questions