dashrathmanji kon the or unhone kiya ki usko honsle ki misaal kaha jata h.
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बिहार में भागलपुर जिले के लालूचक गांव के लोगों ने अपने भगीरथ प्रयास से रातों-रात 15 फीट ऊंची और 50 फीट लंबी एप्रोच रोड बनाकर मिसाल पेश की है। ग्रामीणों के लंबे संघर्ष के बाद पांच साल पूर्व गांव में पुल तो बना दिया गया था, लेकिन उसे जोड़ने वाली एप्रोच रोड नहीं बन पायी थी। ग्रामीणों ने इसके लिए तब पहल की जब विधायक से लेकर मुख्यमंत्री व पूरी सरकारी मशीनरी से उन्हें निराशा हाथ लगी।
यह एप्रोच रोड नहीं होने से तीन पंचायतों की 60 हजार से अधिक की आबादी को आवागमन में परेशानी झेलनी पड़ती थी। यह तीनों पंचायतें दियारा क्षेत्र में स्थित हैं। इसलिए बरसात के समय इतनी बड़ी आबादी का संपर्क देश से टूट जाता था। ग्रामीण चंदा जुटाकर प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च करके चचरी पुल (बांस का पुल) बनाकर आवागमन करते थे। ग्रामीणों की मांग को देखते हुए 2012 में मुख्यमंत्री सेतु योजना के तहत 538 लाख रुपये की लागत से पुल तो बना दिया गया, लेकिन एप्रोच रोड नहीं बनी।
चुनाव बहिष्कार के बावजूद नहीं मिली सफलता
पिछले विधानसभा चुनाव में ग्रामीणों ने एप्रोच रोड को लेकर वोट का बहिष्कार भी किया था। लेकिन शासन-प्रशासन को मानो इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। सरकारी सुस्ती से आजिज आ चुके ग्रामीणों मे आखिरकार मई माह के दूसरे पखवाड़े में बैठक कर इस संबंध में बड़ा निर्णय लिया।
यह थी सड़क बनने में बड़ी बाधा
ग्रामीणों ने बताया कि जहां पर एप्रोच रोड बननी थी, वह जमीन लालूचक के बासू साह की थी। बासू के पास वही एकमात्र जमीन थी। उस जमीन पर वह खेती कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। इसलिए बैठक में बासू साह को भी बुलाया गया और निर्णय लिया गया कि जमीन के बदले भरण-पोषण के लिए ग्रामीण उन्हें प्रत्येक वर्ष उतनी फसल देंगे, जितनी उनके खेत में उपज होती थी। इस पर बासू साह राजी हो गए। इसके बाद 30 गांवों में ढोल बजाकर फिर बैठक बुलाई गई। बासू साह की सहमति मिलने के बाद करीब 10 हजार ग्रामीण शुक्रवार की शाम लालूचक में इकट्ठा हुए। एक जेसीबी और 60 ट्रैक्टरों के जरिए ग्रामीणों ने 24 घंटे के अंदर संपर्क मार्ग का निर्माण कर दिया। कार्य के दौरान सभी ग्रामीण रातभर बिना कुछ खाए-पीए डटे रहे।
यह एप्रोच रोड नहीं होने से तीन पंचायतों की 60 हजार से अधिक की आबादी को आवागमन में परेशानी झेलनी पड़ती थी। यह तीनों पंचायतें दियारा क्षेत्र में स्थित हैं। इसलिए बरसात के समय इतनी बड़ी आबादी का संपर्क देश से टूट जाता था। ग्रामीण चंदा जुटाकर प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च करके चचरी पुल (बांस का पुल) बनाकर आवागमन करते थे। ग्रामीणों की मांग को देखते हुए 2012 में मुख्यमंत्री सेतु योजना के तहत 538 लाख रुपये की लागत से पुल तो बना दिया गया, लेकिन एप्रोच रोड नहीं बनी।
चुनाव बहिष्कार के बावजूद नहीं मिली सफलता
पिछले विधानसभा चुनाव में ग्रामीणों ने एप्रोच रोड को लेकर वोट का बहिष्कार भी किया था। लेकिन शासन-प्रशासन को मानो इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। सरकारी सुस्ती से आजिज आ चुके ग्रामीणों मे आखिरकार मई माह के दूसरे पखवाड़े में बैठक कर इस संबंध में बड़ा निर्णय लिया।
यह थी सड़क बनने में बड़ी बाधा
ग्रामीणों ने बताया कि जहां पर एप्रोच रोड बननी थी, वह जमीन लालूचक के बासू साह की थी। बासू के पास वही एकमात्र जमीन थी। उस जमीन पर वह खेती कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। इसलिए बैठक में बासू साह को भी बुलाया गया और निर्णय लिया गया कि जमीन के बदले भरण-पोषण के लिए ग्रामीण उन्हें प्रत्येक वर्ष उतनी फसल देंगे, जितनी उनके खेत में उपज होती थी। इस पर बासू साह राजी हो गए। इसके बाद 30 गांवों में ढोल बजाकर फिर बैठक बुलाई गई। बासू साह की सहमति मिलने के बाद करीब 10 हजार ग्रामीण शुक्रवार की शाम लालूचक में इकट्ठा हुए। एक जेसीबी और 60 ट्रैक्टरों के जरिए ग्रामीणों ने 24 घंटे के अंदर संपर्क मार्ग का निर्माण कर दिया। कार्य के दौरान सभी ग्रामीण रातभर बिना कुछ खाए-पीए डटे रहे।
shivdyalsharma:
sorry bhai ji your answer is wrong
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