Dayari lekhan ki parmukh visestayae
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डायरी लेखन की प्रमुख विसेसताएॅ हैं।
शब्द अपने साथ एक पूरे इतिहास को समेटकर चलता है। शब्द का एक भाषा से दूसरी भाषा में पहुंचना अर्थात दूसरे के द्वारा पहले की सभ्यता को स्वीकार करना। संस्कृति के मेल-मिलाप से भी शब्दों का आदान-प्रदान होता है। डायरी अंग्रेजी भाषा से लिया गया शब्द है। तभी प्राचीन भारतीय साहित्य में, इसे लिखने की प्रथा दिखाई नहीं देती। हमारी सभ्यता में इसका कोई साक्ष्य नहीं क्योंकि गंगा-जमुना संस्कृति में इसका चलन नहीं था। और अगर किसी लेखक ने स्वयं के साथ-साथ तत्कालीन समाज पर कुछ लिखा भी है तो उसका रूप, स्वरूप व विधा भिन्न थी। पूर्वोत्तर एशिया, खासकर जापान व चीन के उत्साही पर्यटकों ने अपने यात्रा संस्मरण लिखे। जिनमें से कई लोकप्रिय भी हुए। इनकी हिंदुस्तान में खूब चर्चा हुई। भ्रमण के दौरान लिखे गए इन यात्रा वृत्तांतों में स्थानीय समाज, शासन व्यवस्था व धार्मिक अवस्था पर व्यक्तिगत अनुभव भी लिखे गये परंतु फिर भी यह डायरी लेखन नहीं है।
डायरी एवं आत्मकथा में भी कई समानताएं हैं मगर साथ ही एक स्पष्ट अंतर को भी देखा जा सकता है। डायरी रोज का लिखा गया लेखन है तो आत्मकथा पीछे के एक पूरे जीवनकाल का, एक साथ कलमबध्द किया गया लेखा-जोखा। डायरी में जहां दिन-प्रतिदिन घटने वाली बातों का विस्तार में विश्लेषणात्मक विवरण मिलता है वहीं आत्मकथा में मुख्य घटनाओं का जिक्र तो होता है पर रोजमर्रा का वर्णन संभव नहीं। डायरी में प्रतिदिन उठ रही भावनाओं को तुरंत उसी वक्त लिख लिया जाता है, इसीलिए विचार गुम नहीं होते। आत्मकथा में पीछे की घटनाओं को याद करके लिखने पर दृष्टिकोण, विवरण, विवेचना में अंतर आ सकता है। और इसीलिए यह खरेपन से दूर होती है जबकि डायरी सत्य के नजदीक। डायरी जहां सूक्ष्मदर्शीय अवलोकन है तो आत्मकथा एक बृहद दृष्टि।
डायरी लेखन अब हिंदुस्तान में भी एक जानी-पहचानी विधा है। घर-घर में इसे लिखा जा रहा है। इस पर अब चर्चा भी होती है। इसे हमारे साहित्य जगत ने भी स्वीकार कर लिया है। व्यक्तिगत और प्रकाशित न होने के कारण इसकी संख्या के बारे में ठीक-ठीक अनुमान लगाना संभव नहीं। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि अभी भी यह अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां कम ही लिखी जाती है। और जो थोड़ी-बहुत लिखी भी जाती है उसमें नियमितता व निरंतरता का अभाव देखने को मिलता है।
कहा जाता है कि जो बात किसी से भी नहीं कही जा सकती वो डायरी में लिखी जा सकती है। डायरी अंतरंग, विशिष्ट व भरोसे का मित्र है। इससे अपने दिल की बातें की जा सकती है। व्यक्तिगत बातें कही जा सकती है। यह अंतर्मन की अभिव्यक्ति है। यह आपकी अंतरात्मा को सुनने वाली प्रथम पाठक है। यह स्वयं से साक्षात्कार है। गोपनीयता इसका मूल स्वभाव है इसलिए इसमें मन की कोमल भावनाओं को उंडेला जा सकता है। अपनी बेबाक टिप्पणी, राय व विचार बेधड़क होकर लिखे जा सकते हैं। यह तभी तक सत्य व संभव है जब तक इसे बिना किसी उद्देश्य के लिखा जाए। प्रकाशित करने के लिए लिखे जाने पर इसकी सत्यता, मौलिकता व पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। क्योंकि डायरी लेखक संभावित प्रतिक्रिया के डर से या किसी मोह में फंसकर उसमें आवश्यकतानुसार उलट-फेर जरूर करता है। बस यहीं से शुरू होती है मिलावट। दिल की जगह दिमाग का खेल प्रारंभ हो जाता है। हां, लेखक की अनुपस्थिति व अनभिज्ञता में इसे छापा या पढ़ा जाए तो मूल विचार पढ़ने को मिल सकते हैं। सिर्फ न छपने की शर्त और किसी अन्य के द्वारा न पढ़े जाने की संभावना ही लेखक को अतिरिक्त साहस प्रदान करती है, जो सच को सच कहने के लिए जरूरी है, ईमानदारी के लिए आवश्यक है। अन्यथा कई जगह इनके द्वारा संबंध मजबूत होते हैं तो कई जगह दुश्मनी की संभावना बन सकती है। पत्नी-पत्नी के बीच आपसी समझ बढ़ाने में यह मददगार साबित होती है। रशियन लेखक लियो टॉलस्टाय व उनकी पत्नी एक दूसरे की डायरी पढ़ा करते थे। जिससे उनमें बेहतर समझ पैदा हुई। परंतु ऐसी अवस्था में एक-दूसरे की झूठी प्रशंसा करने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
डायरी लेखन में लिखने वाले का लेखक होना जरूरी नहीं और यही इसकी विशेषता बन जाती है। इसमें व्याकरण और वर्तनी, वर्ण विन्यास का शुद्ध और सही होना आवश्यक नहीं। विश्व में उनकी डायरी सर्वाधिक सफल, लोकप्रिय व सशक्त मानी जाती है जिन्हें भाषा का ज्ञान नहीं था। जब आम आदमी भी अपने विचारों, मतों व भावनाओं को सहज और स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करता है, समकालीन परिस्थितियों का विश्लेषण करता है तो पाठक और समाज को एक नया दृष्टिकोण मिलता है। इसके माध्यम से संबंधित क्षेत्र, समय व काल को भी देखा, पढ़ा व समझा जा सकता है। इस तरह का मौलिक लेखन धरातल से जुड़ा होता है जिसमें खरेपन के साथ सहज संवेदनाएं संचारित होती हैं। इसके पाठक डायरी लेखक के साथ-साथ उसके द्वारा की गयी बेबाक टिप्पणी से भी परिचित हो जाते हैं। डायरी लेखन में लेखकों का विभिन्न कार्य क्षेत्र व पृष्ठभूमि से आना रचना में विविधता व नवीनता पैदा करता है।
डायरी के द्वारा पाठक जाने-अनजाने समकालीन समाज, धर्म, देश, सभ्यता व इतिहास से रू-बरू हो जाता है। इन सब को वो डायरी लेखक की दृष्टि से देखता है। कहीं-कहीं संदर्भ मस्तिष्क पर प्रहार करते हैं। डायरी स्वाभाविक रूप से संस्कृति व सांस्कृतिक संवाद की बात भी कर जाती है। जब यह लेखक के 'मैं' से निकलकर समाज पर भी टिप्पणी करती है तो साहित्यिक कृति बन जाती है। जब इसमें घटनाओं का विचारात्मक सूक्ष्म विश्लेषण होता है तो यही फिर दर्शनशास्त्र बन जाती है। इसके माध्यम से जहां आम व समकालीन मशहूर व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, वहीं कुछ बेहद सारगर्भित कथन उभर कर आते हैं।