Demain, il va ___beau ( faire ).
Answers
Explanation:
कमेंट्स के जरिए बातें चली थी।
वह मुझे पोस्ट पर कमेंट्स करती
और मैं उसकी पोस्ट कमेंट्स देता था ।
एक दिन कमेंट्स मैसेज में बदल गए
मैसेज मैसेज में ही बातें बढ़ गईं
वो सवाल पर सवाल करती जाती थी
मेरी आदत जवाबों में मशगूल पड़ गई ,
दोस्ती का एक लिहाज़ नज़र आता था
मुझे उसकी बातों में प्यार नज़र आता था ।
फ्रेंड रिक्वेस्ट आकर बदल चली गई
हमारी दोस्ती तो दो प्यार में चली गई ।
वो दिन आ ही जाना था जब
मिलने का कोई बहाना था
उसे पढ़ाई अच्छी लगती थी
मैं अपने ही काम का दीवाना था ,
प्यार में सोच एक जैसी हो गई
एक ही कोर्स में हम दोनों की पुष्टि हो गई ।
खुशियों से मिला था ये खजाना
भूल गए हम रूठना मनाना ।
फिर एक बार मुलाकात का मौका आया
उसने मुझे भी मिलने बुलाया
देर शाम ढल चुकी थी
वह एक स्थान पर आ चुकी थी,
वही मुझसे भी एक गलती हो गई
वो इंतज़ार में ग़मगीन हो गई ।
मेरी मंजिल किसी और स्थान पर हो गई
यूं समझ लो आने में देर हो गई ।
मैं इधर उसकी तलाश में रहा
उधर वो नाराज हो गई
फिर मिले देर से मिले
साथ में उसकी बहन से मिले ,
उसकी बहन ने समझाया
मैंने उसे खूब समझाया ।
वो नखरे दिखा रही थी
मेरी बातों से वह दूर जा रही थी ।
मैं यहां से कुछ दूर चला आया
वहां से कुछ चॉकलेट्स ले आया
अब क्या अब तो देर हो चुकी थी
वह अपने घर जा चुकी थी
मैंने उस वक़्त चप्पल में था
चेहरे पर उदासी
मुँह बे-धुला हुआ था
बालों में तेल नहीं,
मेरा इस तरह से मिलना
कायरों के जैसे मिलना था ।
शायद उसको सुंदरता चहिये थी
मेरी पर्सनेलटी में चमक चाहिए थी ।
मालूम न था घर उसका
अंदाज़ों में यहां वहां ढूंढा
फोन लगाया उठाया नहीं
चॉकलेट्स पिघल कर हलवा हो गई ,
घर वापस आकर वह चॉकलेट्स
किस की थी और किस की हो गई ।
आंखें पानी से लाल थीं
यूं लगा कोई चाल थी ।
दिल ग़मो में चूर होता रहा
मैं मैसेज पर मैसेज करता रहा
काफी रातें तन्हाई में गुजारी
आंसूओं की बूंदे बिस्तर पर उतारी ,
एक दिन वह फिर से मान गई
मेरे दिल की बची सांसें जाग गईं ।
अब मैं वही प्यार चाहता था
जुदा होने से मैं घबराता था ।
उसे जॉब करने का शौक था
मुझे अपने काम पर रॉब था
एक दिन उसे मेरी जरूरत पड़ गई
कुछ पैसों के लिये वह मुझसे मिल गई ,
मैंने मदद में देर नहीं की
और उसकी जॉब लग गई
शायद वह मुझे भी चाहती थी
जॉब पर अपने साथ चाहती थी ,
मुझे मैसेज पसन्द थे
उसे कॉल पसन्द थी ।
मुझे उसकी फिक्र रहती थी
जब वह जॉब पर रहती थी ।
एक दिन हमारी क्लास शुरू हो गई
उसकी जरूरत फिर शुरू हो गई
मैं जाता था उसकी आस में
वो फिर भी नहीं आई मेरी बात पे ।
मैंने मदद बन्द कर दी
फोन पर बात बन्द कर दी ।
कॉल्स मेरे काम मे अड़ते थे
जॉब पर मैसेज काम करते थे ।
उसे एक स्मार्ट फ़ोन चाहिए था
इधर मेरी आर्थिक तंगी थी
उधर से मैसेज आने बन्द हो गए
मोबाइल के नम्बर बदलकर दो हो गए
उसकी और मेरी आखिरी बात आ गई
'बता तू क्या चाहती है' इस पर आ गई
मैं ब्याह चाहता था मुहब्बत का
वो जल्द से जल्दी सेटल पर आ गई ,
'मुझसे आज के बाद बात मत करना'
यूं मेरा कभी इंतजार मत करना ।
आखिरी से आखिरी बात हो गई
मेरी तरह वो भी तन्हा हो गई ।
दो दिल फिर जुदा हो गए
मैं और वो खफा हो गए
राहें बदल ली हमने
चेहरे भी देखने बे-नसीब हो गए ,
न नींद थी न चैन था
न घर में कहीं न ज़माने में
एक नया मोड़ आ ही गया
मेरे दिल के अफसाने में ,
मेने जीना सीख लिया
समझकर उसकी बेवफाई को ।
मेरा शायद नसीब न था
समझकर किसी का दिल गरीब को ।
यही पर मेरे प्यार की
कहानी खत्म हो गई
प्यार की सारी कीमती
निशानी दफन हो गई ।
अब न प्यार था न खुदाई
अधूरी कहानी जाने किस रब ने बनाई ।
जिंदगी जी लूं यही बहुत है
मुहब्बत में न जाने किस किस ने
जान लुटाई ।
किस किस ने जान लुटाई ।
- गुड्डू सिकंद्राबादी
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें