Describe the significance of act1scene1 of the tempest
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वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊं
वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊंवो बेच रहे हैं भारत को, खामोश मैं कैसे हो जाऊं
वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊंवो बेच रहे हैं भारत को, खामोश मैं कैसे हो जाऊंहां मैंने कसम उठायी है, मैं देश नहीं बिकने दूंगा
वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊंवो बेच रहे हैं भारत को, खामोश मैं कैसे हो जाऊंहां मैंने कसम उठायी है, मैं देश नहीं बिकने दूंगासौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।
वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊंवो बेच रहे हैं भारत को, खामोश मैं कैसे हो जाऊंहां मैंने कसम उठायी है, मैं देश नहीं बिकने दूंगासौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।मेरा वचन है भारत मां को, तेरा शीष नहीं झुकने दूंगा
वो लूट रहे हैं सपनों को, मैं चैन से कैसे सो जाऊंवो बेच रहे हैं भारत को, खामोश मैं कैसे हो जाऊंहां मैंने कसम उठायी है, मैं देश नहीं बिकने दूंगासौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।मेरा वचन है भारत मां को, तेरा शीष नहीं झुकने दूंगासौगंध मुझे है मिट्टी की, मैं देश नहीं लुटने दूंगा।
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