desh bhakti sey sambandith koyi eak kahani
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the title for the story is prashno ka pitaara
नंदन को विद्यालय से पुस्तकें मिली थीं। वह बिस्तर पर लेटा हुआ उन्हें उलटपुलटकर देख रहा था। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठ पर लिखी पंक्तियां वह गुनगुनाने लगा। “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।”
“ऐ-ऐ नंदन यह क्या? राष्ट्रगान को इस तरह लेटकर नहीं गाया जाता। राष्ट्रगान को हमेशा सावधान की मुद्रा में खड़े होकर खुले आसमान के नीचे राष्ट्रध्वज के सामने गाया जाता है।”
अगर लेटकर या बैठकर या चलते हुए गाएं तो दीदी?” “नहीं, इससे हमारे राष्ट्र का अपमान होता है।
राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे देश प्रेम की भावना को प्रकट करना है। अब कभी भी कहीं भी चलते या बैठे हुए तुम्हारे कानों में यदि राष्ट्रगान की धुन भी सुनाई पड़ जाएतो तुरन्त वहीं ठहरकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना। फिर गान की समाप्ति पर श्रद्धा से शीश झुका देना।
“वह क्यों दीदी?” वह तुम्हारा मातृभूमि को किया गया नमन होगा।” ओह दीदी। अज्ञानतावश मैं कितनी बड़ी गलती कर बैठा।” अच्छा नंदन अब मैं चलती हूं। आज शाम को मैं तुम्हें राष्ट्रीय चिन्हों से सम्बन्धित बातें बताऊंगी। अभी मुझे जाना है।” दीदी की बातें सुन नंदन की उत्सुकता बढ़ गई थी। शाम तक का इन्तजार करने का सब्र उसमें नहीं था। वह दौड़ा-दौड़ा रसोई में मां के पास |
“मां-मां, मुझे राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में बताओ न?”
“हूं से नोट तो निकालो
अभी बताती पर पहले अपनी जेब । नंदन ने जेब से एक रुपए का नोट निकाला। मां बताने लगी. देखो नंदनहमारा राष्ट्रीय चिन्ह जो कि वाराणसी के पास सारनाथ से सब अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ से लिया है।”
“बना हुआ है। हां, और नीचे की इस चौरस पट्टी के बीच एक चक्र जिसके दाईं ओर सांड और घोड़ा बना हुआ है। बीच में देखोसत्यमेव जयते’ लिखा हुआ , जो हमारे राष्ट्र का आदर्श वाक्य भी है।
इसका अर्थ । समझते हो नंदन?” नहीं, नंदन ने “ना” में गर्दन हिलाई। इसका अर्थ है सत्य की हमेशा विजय होती है। यह चक्र, जिसे तम तिरंगे झंडे में भी देखते हो।
“हां, मां झंडे के तीनों रंग मुझे मालूम हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच। में सफेद और नीचे हरा।।
हां, राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी पर नीले रंग का यह चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं। यह हमारी प्रगति का सूचक है। तिरंगे। के सभी रंग अपने अन्दर संदेश समाहित किए हुए हैं। इतना कहने के बाद मां चौंक पड़ी। दूध उबलकर बाहर आ गया था। आगे की बात बाद में बताने को कहवह रसोई में जुट गईकिन्तु नंदन की।
जिद थी कि वे उसे पूरी बात उसी समय ही बताएं।
नंदन की जिद सुन उसके पिताजी ने पुकारा, “इधर आओ नंदनमैं तुम्हें बताता हूं, कहकर पिताजी नंदन को बताने लगेइडे का के ऊपर केसरिया रंग हमारी वीरता का प्रतीक है।
प्राचीन समय में जब भारत में राजाओं का राज्य था। तब वीर राजपूत योद्धा केसरिया बाना (वस्त्र ) पहनकर युद्धभूमि में अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ निकल पड़ते थे। यह रंग हमें संदेश देता है कि हम हमेशा हमारे उन वीरों की तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें।
सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। जो विश्व में शान्ति का संदेश देता है।
हरा रंग हमारी समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। खेतों में लहलहाती फसलों का रंग हरा होता है। अब फसलें अच्छी होंगी तो चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।
समृद्धि फैल जाएगी।” नंदन ने सारी बात ध्यान से सूनी। उसे भी विद्यालय जाना था। समय हो चुका था तैयार होकर वह विद्यालय के लिए निकला।
पूरे रास्ते उसके दिमाग में यही सारी बातें घूमती रहीं। विद्यालय में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया गया। आज इस गीत के प्रति उसके मन में असीम श्रद्धा थी। सभी बालक अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंचे । नंदन सभी बच्चों को राष्ट्रीय चिन्ह और ध्वज के बारे में बताने लगा। इतने में कक्षा में गुरुजी ने प्रवेश किया। सभी बच्चों ने खड़े होकर गुरुजी को प्रणाम किया।
गुरुजी ने उन्हें बैठ जाने का संकेत दिया। “क्या तुम बता सकते हो नंदन कि राष्ट्रगान के रचयिता कौन थे?”
इस प्रश्न पर पूरी कक्षा मौन हो गई। गुरुजी ने बताया-रवीन्द्रनाथ टैगोर। उन्होंने यह गीत 1912 में लिखा तथा इसे राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी1950 में स्वीकार किया गया।
“इसी तरह बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित गीत वन्देमातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में माना जाता है, यह गीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा है।
जब दीदी ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय फूल के बारे में पूछा तो वह नहीं बता पाया अभी इनके बारे में और जानना बाकी था। दीदी ने नंदन को बड़े प्यार से बताया कि अपना राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय फूल कमल है।
अपने राष्ट्र के महत्व की इतनी सारी रोचक जानकारी पाकर नंदन फूला नहीं समाया।
नंदन को विद्यालय से पुस्तकें मिली थीं। वह बिस्तर पर लेटा हुआ उन्हें उलटपुलटकर देख रहा था। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठ पर लिखी पंक्तियां वह गुनगुनाने लगा। “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।”
“ऐ-ऐ नंदन यह क्या? राष्ट्रगान को इस तरह लेटकर नहीं गाया जाता। राष्ट्रगान को हमेशा सावधान की मुद्रा में खड़े होकर खुले आसमान के नीचे राष्ट्रध्वज के सामने गाया जाता है।”
अगर लेटकर या बैठकर या चलते हुए गाएं तो दीदी?” “नहीं, इससे हमारे राष्ट्र का अपमान होता है।
राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे देश प्रेम की भावना को प्रकट करना है। अब कभी भी कहीं भी चलते या बैठे हुए तुम्हारे कानों में यदि राष्ट्रगान की धुन भी सुनाई पड़ जाएतो तुरन्त वहीं ठहरकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना। फिर गान की समाप्ति पर श्रद्धा से शीश झुका देना।
“वह क्यों दीदी?” वह तुम्हारा मातृभूमि को किया गया नमन होगा।” ओह दीदी। अज्ञानतावश मैं कितनी बड़ी गलती कर बैठा।” अच्छा नंदन अब मैं चलती हूं। आज शाम को मैं तुम्हें राष्ट्रीय चिन्हों से सम्बन्धित बातें बताऊंगी। अभी मुझे जाना है।” दीदी की बातें सुन नंदन की उत्सुकता बढ़ गई थी। शाम तक का इन्तजार करने का सब्र उसमें नहीं था। वह दौड़ा-दौड़ा रसोई में मां के पास |
“मां-मां, मुझे राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में बताओ न?”
“हूं से नोट तो निकालो
अभी बताती पर पहले अपनी जेब । नंदन ने जेब से एक रुपए का नोट निकाला। मां बताने लगी. देखो नंदनहमारा राष्ट्रीय चिन्ह जो कि वाराणसी के पास सारनाथ से सब अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ से लिया है।”
“बना हुआ है। हां, और नीचे की इस चौरस पट्टी के बीच एक चक्र जिसके दाईं ओर सांड और घोड़ा बना हुआ है। बीच में देखोसत्यमेव जयते’ लिखा हुआ , जो हमारे राष्ट्र का आदर्श वाक्य भी है।
इसका अर्थ । समझते हो नंदन?” नहीं, नंदन ने “ना” में गर्दन हिलाई। इसका अर्थ है सत्य की हमेशा विजय होती है। यह चक्र, जिसे तम तिरंगे झंडे में भी देखते हो।
“हां, मां झंडे के तीनों रंग मुझे मालूम हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच। में सफेद और नीचे हरा।।
हां, राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी पर नीले रंग का यह चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं। यह हमारी प्रगति का सूचक है। तिरंगे। के सभी रंग अपने अन्दर संदेश समाहित किए हुए हैं। इतना कहने के बाद मां चौंक पड़ी। दूध उबलकर बाहर आ गया था। आगे की बात बाद में बताने को कहवह रसोई में जुट गईकिन्तु नंदन की।
जिद थी कि वे उसे पूरी बात उसी समय ही बताएं।
नंदन की जिद सुन उसके पिताजी ने पुकारा, “इधर आओ नंदनमैं तुम्हें बताता हूं, कहकर पिताजी नंदन को बताने लगेइडे का के ऊपर केसरिया रंग हमारी वीरता का प्रतीक है।
प्राचीन समय में जब भारत में राजाओं का राज्य था। तब वीर राजपूत योद्धा केसरिया बाना (वस्त्र ) पहनकर युद्धभूमि में अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ निकल पड़ते थे। यह रंग हमें संदेश देता है कि हम हमेशा हमारे उन वीरों की तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें।
सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। जो विश्व में शान्ति का संदेश देता है।
हरा रंग हमारी समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। खेतों में लहलहाती फसलों का रंग हरा होता है। अब फसलें अच्छी होंगी तो चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।
समृद्धि फैल जाएगी।” नंदन ने सारी बात ध्यान से सूनी। उसे भी विद्यालय जाना था। समय हो चुका था तैयार होकर वह विद्यालय के लिए निकला।
पूरे रास्ते उसके दिमाग में यही सारी बातें घूमती रहीं। विद्यालय में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया गया। आज इस गीत के प्रति उसके मन में असीम श्रद्धा थी। सभी बालक अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंचे । नंदन सभी बच्चों को राष्ट्रीय चिन्ह और ध्वज के बारे में बताने लगा। इतने में कक्षा में गुरुजी ने प्रवेश किया। सभी बच्चों ने खड़े होकर गुरुजी को प्रणाम किया।
गुरुजी ने उन्हें बैठ जाने का संकेत दिया। “क्या तुम बता सकते हो नंदन कि राष्ट्रगान के रचयिता कौन थे?”
इस प्रश्न पर पूरी कक्षा मौन हो गई। गुरुजी ने बताया-रवीन्द्रनाथ टैगोर। उन्होंने यह गीत 1912 में लिखा तथा इसे राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी1950 में स्वीकार किया गया।
“इसी तरह बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित गीत वन्देमातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में माना जाता है, यह गीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा है।
जब दीदी ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय फूल के बारे में पूछा तो वह नहीं बता पाया अभी इनके बारे में और जानना बाकी था। दीदी ने नंदन को बड़े प्यार से बताया कि अपना राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय फूल कमल है।
अपने राष्ट्र के महत्व की इतनी सारी रोचक जानकारी पाकर नंदन फूला नहीं समाया।
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प्रश्नों का पिटारा
नंदन को विद्यालय से पुस्तकें मिली थीं। वह बिस्तर पर लेटा हुआ उन्हें उलटपुलटकर देख रहा था। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठ पर लिखी पंक्तियां वह गुनगुनाने लगा। “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।”
“ऐ-ऐ नंदन यह क्या? राष्ट्रगान को इस तरह लेटकर नहीं गाया जाता। राष्ट्रगान को हमेशा सावधान की मुद्रा में खड़े होकर खुले आसमान के नीचे राष्ट्रध्वज के सामने गाया जाता है।”
अगर लेटकर या बैठकर या चलते हुए गाएं तो दीदी?” “नहीं, इससे हमारे राष्ट्र का अपमान होता है।
राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे देश प्रेम की भावना को प्रकट करना है। अब कभी भी कहीं भी चलते या बैठे हुए तुम्हारे कानों में यदि राष्ट्रगान की धुन भी सुनाई पड़ जाएतो तुरन्त वहीं ठहरकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना। फिर गान की समाप्ति पर श्रद्धा से शीश झुका देना।
“वह क्यों दीदी?” वह तुम्हारा मातृभूमि को किया गया नमन होगा।” ओह दीदी। अज्ञानतावश मैं कितनी बड़ी गलती कर बैठा।” अच्छा नंदन अब मैं चलती हूं। आज शाम को मैं तुम्हें राष्ट्रीय चिन्हों से सम्बन्धित बातें बताऊंगी। अभी मुझे जाना है।” दीदी की बातें सुन नंदन की उत्सुकता बढ़ गई थी। शाम तक का इन्तजार करने का सब्र उसमें नहीं था। वह दौड़ा-दौड़ा रसोई में मां के पास |
“मां-मां, मुझे राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में बताओ न?”
“हूं से नोट तो निकालो
अभी बताती पर पहले अपनी जेब । नंदन ने जेब से एक रुपए का नोट निकाला। मां बताने लगी. देखो नंदनहमारा राष्ट्रीय चिन्ह जो कि वाराणसी के पास सारनाथ से सब अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ से लिया है।”
“बना हुआ है। हां, और नीचे की इस चौरस पट्टी के बीच एक चक्र जिसके दाईं ओर सांड और घोड़ा बना हुआ है। बीच में देखोसत्यमेव जयते’ लिखा हुआ , जो हमारे राष्ट्र का आदर्श वाक्य भी है।
इसका अर्थ । समझते हो नंदन?” नहीं, नंदन ने “ना” में गर्दन हिलाई। इसका अर्थ है सत्य की हमेशा विजय होती है। यह चक्र, जिसे तम तिरंगे झंडे में भी देखते हो।
“हां, मां झंडे के तीनों रंग मुझे मालूम हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच। में सफेद और नीचे हरा।।
हां, राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी पर नीले रंग का यह चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं। यह हमारी प्रगति का सूचक है। तिरंगे। के सभी रंग अपने अन्दर संदेश समाहित किए हुए हैं। इतना कहने के बाद मां चौंक पड़ी। दूध उबलकर बाहर आ गया था। आगे की बात बाद में बताने को कहवह रसोई में जुट गईकिन्तु नंदन की।
जिद थी कि वे उसे पूरी बात उसी समय ही बताएं।
नंदन की जिद सुन उसके पिताजी ने पुकारा, “इधर आओ नंदनमैं तुम्हें बताता हूं, कहकर पिताजी नंदन को बताने लगेइडे का के ऊपर केसरिया रंग हमारी वीरता का प्रतीक है।
प्राचीन समय में जब भारत में राजाओं का राज्य था। तब वीर राजपूत योद्धा केसरिया बाना (वस्त्र ) पहनकर युद्धभूमि में अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ निकल पड़ते थे। यह रंग हमें संदेश देता है कि हम हमेशा हमारे उन वीरों की तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें।
सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। जो विश्व में शान्ति का संदेश देता है।
हरा रंग हमारी समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। खेतों में लहलहाती फसलों का रंग हरा होता है। अब फसलें अच्छी होंगी तो चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।
समृद्धि फैल जाएगी।” नंदन ने सारी बात ध्यान से सूनी। उसे भी विद्यालय जाना था। समय हो चुका था तैयार होकर वह विद्यालय के लिए निकला।
पूरे रास्ते उसके दिमाग में यही सारी बातें घूमती रहीं। विद्यालय में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया गया। आज इस गीत के प्रति उसके मन में असीम श्रद्धा थी। सभी बालक अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंचे । नंदन सभी बच्चों को राष्ट्रीय चिन्ह और ध्वज के बारे में बताने लगा। इतने में कक्षा में गुरुजी ने प्रवेश किया। सभी बच्चों ने खड़े होकर गुरुजी को प्रणाम किया।
गुरुजी ने उन्हें बैठ जाने का संकेत दिया। “क्या तुम बता सकते हो नंदन कि राष्ट्रगान के रचयिता कौन थे?”
इस प्रश्न पर पूरी कक्षा मौन हो गई। गुरुजी ने बताया-रवीन्द्रनाथ टैगोर। उन्होंने यह गीत 1912 में लिखा तथा इसे राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी1950 में स्वीकार किया गया।
“इसी तरह बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित गीत वन्देमातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में माना जाता है, यह गीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा है।
जब दीदी ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय फूल के बारे में पूछा तो वह नहीं बता पाया अभी इनके बारे में और जानना बाकी था। दीदी ने नंदन को बड़े प्यार से बताया कि अपना राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय फूल कमल है।
अपने राष्ट्र के महत्व की इतनी सारी रोचक जानकारी पाकर नंदन फूला नहीं समाया।
I hope it is helpful for you
नंदन को विद्यालय से पुस्तकें मिली थीं। वह बिस्तर पर लेटा हुआ उन्हें उलटपुलटकर देख रहा था। पुस्तक के अन्तिम पृष्ठ पर लिखी पंक्तियां वह गुनगुनाने लगा। “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ।”
“ऐ-ऐ नंदन यह क्या? राष्ट्रगान को इस तरह लेटकर नहीं गाया जाता। राष्ट्रगान को हमेशा सावधान की मुद्रा में खड़े होकर खुले आसमान के नीचे राष्ट्रध्वज के सामने गाया जाता है।”
अगर लेटकर या बैठकर या चलते हुए गाएं तो दीदी?” “नहीं, इससे हमारे राष्ट्र का अपमान होता है।
राष्ट्रगान का सम्मान करना हमारे देश प्रेम की भावना को प्रकट करना है। अब कभी भी कहीं भी चलते या बैठे हुए तुम्हारे कानों में यदि राष्ट्रगान की धुन भी सुनाई पड़ जाएतो तुरन्त वहीं ठहरकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना। फिर गान की समाप्ति पर श्रद्धा से शीश झुका देना।
“वह क्यों दीदी?” वह तुम्हारा मातृभूमि को किया गया नमन होगा।” ओह दीदी। अज्ञानतावश मैं कितनी बड़ी गलती कर बैठा।” अच्छा नंदन अब मैं चलती हूं। आज शाम को मैं तुम्हें राष्ट्रीय चिन्हों से सम्बन्धित बातें बताऊंगी। अभी मुझे जाना है।” दीदी की बातें सुन नंदन की उत्सुकता बढ़ गई थी। शाम तक का इन्तजार करने का सब्र उसमें नहीं था। वह दौड़ा-दौड़ा रसोई में मां के पास |
“मां-मां, मुझे राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में बताओ न?”
“हूं से नोट तो निकालो
अभी बताती पर पहले अपनी जेब । नंदन ने जेब से एक रुपए का नोट निकाला। मां बताने लगी. देखो नंदनहमारा राष्ट्रीय चिन्ह जो कि वाराणसी के पास सारनाथ से सब अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ से लिया है।”
“बना हुआ है। हां, और नीचे की इस चौरस पट्टी के बीच एक चक्र जिसके दाईं ओर सांड और घोड़ा बना हुआ है। बीच में देखोसत्यमेव जयते’ लिखा हुआ , जो हमारे राष्ट्र का आदर्श वाक्य भी है।
इसका अर्थ । समझते हो नंदन?” नहीं, नंदन ने “ना” में गर्दन हिलाई। इसका अर्थ है सत्य की हमेशा विजय होती है। यह चक्र, जिसे तम तिरंगे झंडे में भी देखते हो।
“हां, मां झंडे के तीनों रंग मुझे मालूम हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच। में सफेद और नीचे हरा।।
हां, राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी पर नीले रंग का यह चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं। यह हमारी प्रगति का सूचक है। तिरंगे। के सभी रंग अपने अन्दर संदेश समाहित किए हुए हैं। इतना कहने के बाद मां चौंक पड़ी। दूध उबलकर बाहर आ गया था। आगे की बात बाद में बताने को कहवह रसोई में जुट गईकिन्तु नंदन की।
जिद थी कि वे उसे पूरी बात उसी समय ही बताएं।
नंदन की जिद सुन उसके पिताजी ने पुकारा, “इधर आओ नंदनमैं तुम्हें बताता हूं, कहकर पिताजी नंदन को बताने लगेइडे का के ऊपर केसरिया रंग हमारी वीरता का प्रतीक है।
प्राचीन समय में जब भारत में राजाओं का राज्य था। तब वीर राजपूत योद्धा केसरिया बाना (वस्त्र ) पहनकर युद्धभूमि में अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ निकल पड़ते थे। यह रंग हमें संदेश देता है कि हम हमेशा हमारे उन वीरों की तरह मातृभूमि की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहें।
सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। जो विश्व में शान्ति का संदेश देता है।
हरा रंग हमारी समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। खेतों में लहलहाती फसलों का रंग हरा होता है। अब फसलें अच्छी होंगी तो चारों ओर खुशहाली छा जाएगी।
समृद्धि फैल जाएगी।” नंदन ने सारी बात ध्यान से सूनी। उसे भी विद्यालय जाना था। समय हो चुका था तैयार होकर वह विद्यालय के लिए निकला।
पूरे रास्ते उसके दिमाग में यही सारी बातें घूमती रहीं। विद्यालय में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया गया। आज इस गीत के प्रति उसके मन में असीम श्रद्धा थी। सभी बालक अपनी-अपनी कक्षाओं में पहुंचे । नंदन सभी बच्चों को राष्ट्रीय चिन्ह और ध्वज के बारे में बताने लगा। इतने में कक्षा में गुरुजी ने प्रवेश किया। सभी बच्चों ने खड़े होकर गुरुजी को प्रणाम किया।
गुरुजी ने उन्हें बैठ जाने का संकेत दिया। “क्या तुम बता सकते हो नंदन कि राष्ट्रगान के रचयिता कौन थे?”
इस प्रश्न पर पूरी कक्षा मौन हो गई। गुरुजी ने बताया-रवीन्द्रनाथ टैगोर। उन्होंने यह गीत 1912 में लिखा तथा इसे राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी1950 में स्वीकार किया गया।
“इसी तरह बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित गीत वन्देमातरम्’ को राष्ट्रीय गीत के रूप में माना जाता है, यह गीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणा स्रोत रहा है।
जब दीदी ने राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय फूल के बारे में पूछा तो वह नहीं बता पाया अभी इनके बारे में और जानना बाकी था। दीदी ने नंदन को बड़े प्यार से बताया कि अपना राष्ट्रीय पक्षी मोर, राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय फूल कमल है।
अपने राष्ट्र के महत्व की इतनी सारी रोचक जानकारी पाकर नंदन फूला नहीं समाया।
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