Dharti Kahe Pukar Ke par nibandh
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धरती कहे पुकार के पर निबंध....
सुन लो ओ धरती पुत्रो! मैं धरती बोल रही हूँ। मैं तुमको पुकार रही हूँ, मेरी पुकार ध्यान से सुनो
मैं धरती हूँ कहीं पर मैं बंजर सी हो गयी हूँ तो कहीं थोड़ी सी मुझमें हरियाली है। वृक्ष जो मेरे बेटे के समान उन्हें तुम काटते जा रहे हो। मेरी तुम से पुकार है मेरे बेटों वृक्षों को मत काटो इनके बिना में सूख के बंजर हो जाऊंगी।
मेरे संसाधनों का तुमने भरपूर दोहन किया। बिल्कुल निर्दयी होकर। अब मेरे अंदर कुछ नही बचा है क्योंकि तुम मुझे खोखला कर चुके हो।
मेरे पर्वतों को तुम काटते जा रहे हो। मेरी नदियों को तुम दूषित कर चुके हो। मेरी मिट्टी को तुम खराब कर चुके हो। जो स्वच्छ हवा मेरी सांसो में थी उसे भी तुम जहरीली कर चुको हो।
मेरे गर्भग्रह में छिपे खनिजों को तुम लुटेरों की तरह लूटते ही जा रहे हो। मेरी हरियाली को तुमने नष्ट कर कंक्रीट के जंगलों का साम्राज्य खड़ा कर दिया है।
मैं चिल्ला रही हूँ, चीख रही हूँ। मैं मेरे वजूद को कतरा-कतरा मिटते देखती जा रही हूँ। लेकिन मैं संघर्ष कर नही हूँ अपना वजूद बचाने के लिये।
मैँ तुमसे कहना चाहती हूँ कि अब मैं तुम्हारा बोझ उठाने में असमर्थ हूँ। तुम अपनी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ाते जा रहे हो। मुझमें इतनी सामर्थ्य नही है और न ही अब मेरे पास इतने संसाधन बचे हैं कि मैं कि तुम सबकी जरूरतों को पूरा कर सकूँ।
मैँ तुम्हारी माँ हूँ। मैंने तुम्हें इतना कुछ दिया पर क्या तुमने कभी अच्छी संतान का कर्तव्य निभाया है? तुमने हमेशा मेरे साथ निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया है। तुमने विकास के नाम पर मेरे साथ छल किया है और मेरी प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट किया है।
मैं पुकार कर कह रही हूँ कि अभी भी समय है, संभल जाओ। अपनी इस माँ का सम्मान करना सीख लो। मेरा ध्यान रखो। मुझे इस तरह नष्ट करते रहोगे तो मैं नही बचूंगी। मेरा अस्तित्व है तो तुम सुरक्षित हो। जब मैं ही नही रहूँगी तो तुम्हारा भी वजूद नही बचेगा।
Answer:
Dharti kahe pukar ke
Explanation:
हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब के चेहरे पर लाली खिला देने वाला लाल गुलाब हवा और पानी के स्वास्थ्य और स्वच्छता का प्रतीक भी है। कहते हैं कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी अचकन में यह खूबसूरत फूल सजाते ही नहीं थे, दिल्ली स्थित तीनमूर्ति भवन के लॉन में फूलों की क्यारियों को सहलाने, सराहने और उनमें पानी डालने को भी तत्पर रहते थे।
इसी तीनमूर्ति भवन में स्थित प्लेनेटोरियम आज धरती और सौरमण्डल के रिश्तों और पर्यावरण की कहानी दुनिया-जहान को सुनाता है। साथ ही जगाता है जल, जंगल और जमीन के नाजुक रिश्तों के प्रति संवेदना। भारत के अन्तिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन का 1960 में निधन हुआ तो प्रधानमंत्री नेहरू ने यहीं से गुलाब के फूलों का एक पूरा पोत भेजा था एडविना के प्रति संवेदना के प्रतीक स्वरूप।
कार्बन उत्सर्जन से गर्म होती धरती
विशेषज्ञों की चिन्ता है कि धरती को बुखार चढ़ गया है, मौसम का मिजाज बदल गया है, जो सरकारों को समझ में नहीं आ रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बीमारियाँ बढ़ रही हैं, लोग मर रहे हैं, लेकिन उसकी चिन्ता सरकार को नहीं है। गौर करने की बात है कि आखिर धरती माँ को हरारत है क्यूँ। कौन सा इंफेक्शन उन्हें बीमार बना रहा है। इसका जवाब छुपा है उन कार्बन प्वाइंट्स में, जिसे हटाने के लिये आज हर कारपोरेट घराना व्याकुल है।
कार्बन उत्सर्जन प्वाइंट्स मतलब अपने स्तर पर कार्बन का कम-से-कम उत्सर्जन या ऐसा काम जिससे प्रकृति का कार्बन सन्तुलन बिगड़े नहीं। कार्बन उत्सर्जन जितना ज्यादा होगा, धरती सूर्य की गर्मी को उतना ही ज्यादा सोखेगी और बढ़ेगी गर्मी। कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने की मुहिम जारी है, पर बावजूद इसके कार्बन का स्तर घटने की जगह बढ़ता ही जा रहा है।
आने वाली पीढ़ियों का सोचें
धरती को चढ़ रहे बुखार से चिन्तित अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक के तमाम संगठन यह मंथन करने में लगे हैं कि 1950 में जैसी धरती हमारे बाप-दादाओं ने छोड़ी थी, क्या हम 2050 के युवाओं के लिये धरती माँ को उतनी ही हरी-भरी बनाकर सौंप सकते हैं। वैश्विक संगठन 2050 के जिन युवाओं की बात कर रहे हैं, वे कोई और नहीं, आज आपकी गोदी में, शहरों के पार्कों और गाँवों के खेत-खलिहानों, स्कूलों में खेल-पढ़ रहे वे बच्चे ही हैं, जिनको जरा सी खरोंच आ जाये तो हमारा कलेजा मुँह को आ जाता है।
यह वही बच्चे हैं, जिनके स्वास्थ्य की चिन्ता में यूनिसेफ ने सभी समझदार लोगों से स्वच्छ खेतों और फुटपाथों वाले स्वच्छता मिशन की दुहाई दी है। जिनकी भलाई और भविष्य का सन्देश देती प्रियंका चोपड़ा समूचे देश में घूम रही हैं। धरती को हरारत है। लापरवाही लगातार जारी है। सरकारें उदासीन हैं और जनता लापरवाह। लगता है मियादी बुखार की तैयारी है। सयाने वैद्य और विलायती डॉक्टर हरारत को कभी हल्के में नहीं लेते, क्योंकि बुखार मियादी हुआ तो उसकी आड़ में पचासों बीमारियाँ जड़ जमा लेती हैं।
तापमान बढ़ता रहा तो...
तमाम वैज्ञानिक आँकड़े चीख-चीख कर चेतावनी दे रहे हैं कि पिछली शताब्दी में धरती की सतह का औसत तापमान एक डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ चुका है। यह कितना खतरनाक संकेत है इसका अन्दाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि महज 9 डिग्री फारेनहाइट तापमान बढ़ने से हिमयुग का अन्त हो गया था। एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने का मतलब है हिमालय और इस जैसे तमाम हिमाच्छादित पर्वतों पर लाखों साल में जमा हुई बर्फ का 5 फीसदी हिस्सा पानी बनकर समुद्र में समा जाना।
ऑक्सीजन - हमारी मेहनत की कमाई
जल और वायु दोनों प्रकृति की देन हैं। प्रकृति इनके बदले हमसे कुछ चार्ज नहीं करती। इनका कोई मोल नहीं, इसलिये यह अनमोल हैं। अनमोल इसलिये क्योंकि ‘क्षिति जल पावक गगन समीरा’ यह पाँचों तत्व ही हमारे अस्तित्व के मूल हैं। जल हमारे जीवन का आधार है और हमारे शरीर का 80 प्रतिशत हिस्सा जल ही है। धरती हमारी माँ है, जिसने करोड़ों साल तक लगातार और कठिन मेहनत से उगाया और खिलाया है जीवन। कोई कहता है धरती पर जीवन बाहर से आया तो चार्ल्स डार्विन के विकासवादी मानते हैं कि धरती पर जो भी जीवन है, जो भी फ्लोरा फाना है वह रस-रसायनों के योग और संयोग का परिणाम है।
जीवन का बीज बाहर से आया या धरती ने खुद पैदा किया, इस पर वाद-विवाद हो सकता है, किन्तु यह तथ्य निर्विवाद है कि सात महासागरों से लेकर सात महाद्वीपों तक जो भी जीवन है, उसका आधार ऑक्सीजन है, इसीलिये इस गैस से युक्त हवा को कहते हैं प्राणवायु। और यह प्राणवायु ऑक्सीजन हमने खुद कमाया है। इस पृथ्वी पर ऑक्सीजन सदा से नहीं रही, धरती माँ की सन्तानों ने ही पैदा किया यह ऑक्सीजन।