Dhatu Roop of Samay in Sanskrit
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संस्कृत में क्रिया-पद पर विचार करने का प्रसंग ही तिङन्त-प्रकरण है। पद के स्वरूप पर विचार करते समय संकेत किया गया था कि संस्कृत व्याकरण में सभी सार्थक शब्दों को ‘पद’ कहा जाता है। इन सभी सार्थक शब्दों को तीन ‘वर्गों’ में बाँट दिया गया है-
नाम,
आख्यात और
अव्यय।
Verb In Sanskrit (संस्कृत में क्रिया)
‘आख्यात’ पद को ही क्रिया-पद’ कहते हैं और क्रिया-पद वे होते हैं जो किसी कर्ता के काम या कुछ करने को बताते हैं। उदाहरण के लिए एक वाक्य लें- रामः पुस्तकं पठति। (राम पुस्तक पढ़ता है।)
इस वाक्य में ‘रामः’ कर्ता है, ‘पुस्तकम्’ कर्म-पद है, कारण उसी को पढ़ा जा रहा है और ‘पठति’ क्रिया-पद या ‘आख्यात’ है, कारण यही ‘राम’-रूप कर्ता के कुछ करने (पढ़ने) को बताता है।
तिड्न्त प्रकरण (धातु रूप) – Tidant Prakaran (Dhatu Roop)
अब ‘पठति’ क्रिया-पद के रूप पर थोड़ा गौर करें। संस्कृत में किसी भी क्रिया-पद का निर्माण ‘धातु’ और ‘प्रत्यय’ के मिलने से बनता है। उदाहरण के लिए ‘पठति’ में ‘पठ्’ मूल धातु है और ‘ति’ (तिप्) प्रत्यय है। इन दोनों के मिलने से ही ‘पठति’ रूप बनता है। जैसे-
पठ् + शप् + तिप्
= पठ् + अ + ति
= पठति (पढ़ता है।)
परस्मैपद धातुओं की रूपावलि – Parasmaipada Dhatu Kee Roopavali
भू (होना, to be)
पठ् (पढ़ना, to read)
गम् (जाना, to go)
स्था (ठहरना, स्थित होना, रहना, to stay/to wait)
पा (पीना, to drink)
दृश्/पश्य (देखना, to see)
दाण-यच्छ (देना, to give)
शुच् (शोक करना)
अर्च्/पूजा (पूजा करना, to pray)
तप्/तपना (तपना, तपस्या करना)
हन् (मारना, to kill)
अस् (होना, to be)
नृत् (नाचना, to dance)
नश् (नाश होना, to perish, to be lost)
चि/चिञ् (-चिञ्-चुनना)
इष् (चाहना, इच्छा करना, to wish)
त्रस् (-डरना, उद्विग्न होना, भयभीत होना, to fear)
लिख् (लिखना, to write)
प्रच्छ् (पूछना, to ask)
सिच् (-सींचना)
मिल् (मिलना, to get)
विद् (जानना, to know)
दिश् (इंगित या संकेत करना)
तुद् (कष्ट देना, to give pain)
मुच् (त्याग करना, छोड़ना, to leave)
ग्रह (पकड़ना, ग्रहण करना, to receive)
ज्ञा (जानना, to know)
गण (गिनना, to count)
पाल् (=पालना-पोसना, रक्षण करना, to nurse/to protection)