Hindi, asked by mamtanandsingh, 1 year ago

Dhwani ki aatmakatha

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Answered by ana19
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Answered by gopalbhagat3p7s8ho
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प्रतिदिन असंख्य ध्वनियाँ  हमारे कर्णद्वार से होते हुए स्मृति में समाहित होती हैं ।इनके बिना इस संसार का विचार एक परिकल्पना मात्र है। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है ,कि यदि ध्वनि को अवसर  मिले अपनी कथा कहने का,तो वो कैसी होगी ?आइये आज सुनते हैं ध्वनि की आत्मगाथा ,उसी के शब्दों में -  ध्वनि की आत्मकथा 

घर्षण से उतपन्न हुई 

न छिपती,पर न दिखती हूँ,

कर्णों में अस्तित्व मेरा 

तरंगित जा पहुँचती हूँ,

कभी मैं हूँ मधुर चंचल ,

कभी कर्कश ,कभी गंभीर

न कोई है दिशा न है गली 
इकसीध सी मेरी,

हवा ही इक सखी मेरी,

उसी के संग बहती हूँ,

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं  कहती हूँ । 


मैं बनती ताल तबलों की,

कभी स्वर शारदे की हूँ 

मुझे संगीत कहते तुम,तुम्हारे मन में बस्ती हूँ,

सरल एकांत में भी मैं ,तुम्हारे साथ होती हूँ 

विषाद ग्रस्त हो कोई,वजह मुस्कान की बनती 

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं  कहती हूँ ।

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