dialogue between mom and daughter
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★विवाह संस्कार व भूमिका- हिन्दू संस्कृति में एक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक सोलह तरह के पर्व उत्सव होते है जिन्हें संस्कारों का नाम दिया जाता हैं. जिनमें विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया हैं. प्रत्येक दौर में विवाह को दो पवित्र भावनाओं के बंधन के रूप में स्वीकृति दी गई जो अगले सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाए.
बदलते वक्त के साथ विवाह संस्कार में कई तरह की बुराइयां सम्मिलित हो गई और इन कुरीतियों के चलते विवाह व्यवस्था विकृति का शिकार हो गई. जिसका एक स्वरूप हम बाल विवाह अथवा अनमेल विवाह के रूप में देखते है. यह भारतीय समाज के लिए अभिशाप साबित हो रहा हैं.
बाल विवाह की कुप्रथा- ऐसा नहीं है कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में बाल विवाहों का शुरू से प्रचलन रहा, वैदिक काल में इस तरह का कोई संकेत नहीं मिलता हैं. मध्यकाल के आते आते जब भारत बाहरी आक्रमणों को झेल रहा था तब बेटियों को विदेशी शासक भोग की वस्तु समझकर अपहरण कर ले जाते तथा उनके साथ सम्बन्ध बना लेते थे.
इसी दौर में रोटी बेटी की कुप्रथा का प्रचलन हो गया. गरीब तथा निम्न वर्ग के कमजोर तबके के लोगों के लिए अपनी बेटी को घर में रखना दुष्कर कार्य हो गया था अतः उन्होंने बचपन में ही बेटियों का विवाह करना शुरू कर दिया. दहेज प्रथा के कारण आज भी भारतीय समाज में बाल विवाह धड़ल्ले से हो रहे हैं.
मध्यकाल में एक दौर ऐसा भी आया जब बेटी के जन्म को अशुभ माना जाने लगा. शिक्षा के अभाव तथा स्वतंत्रता न होने के कारण लड़कियाँ इसका विरोध भी नहीं कर पाती थी. छोटी उम्रः में विवाह हो जाने के कारण दहेज भी कम देना पड़ता था. इस कारण से मध्यम तथा निम्न वर्गीय परिवारों में बाल विवाह की प्रथा ने अपनी जड़े गहरी जमा ली.