difference between sakarmak and akarmak kriya
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सकर्मक क्रिया के भेद
१.एककर्मक – जिस क्रियाओं का एक ही कर्म होता है । एककर्मक क्रिया कहलाती है ।
जैसे – वह पुस्तक पढ़ता है । यहाँ पुस्तक एक ही कर्म है ।
२.द्विकर्मक – जिस सकर्मक क्रियाओं के दो कर्म हो, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते है ।
जैसे – पिता ने पुत्र को पुस्तक पढाई । यहाँ ‘पुत्र’ और ‘पुस्तक’ दो कर्म है ।
अकर्मक से सकर्मक बनाना
अकर्मक सकर्मक
अनिल दौड़ता है । अनिल दौड़ दौड़ता है ।
विमला हँसती है । विमला हँसी हँसती है ।
ऊपर के वाक्यों में ‘दौड़ता’ है और ‘हँसती’ है , क्रियाएँ अकर्मक है । यहाँ क्रिया को भाववाचक बनाकर कर्म के रुप में प्रयुक्त किया गया है । यहाँ ‘दौड़’ और ‘हँसी’ भाववाचक संज्ञाएँ है।
इस प्रकार अकर्मक क्रिया सकर्मक बन गई है ।
कभी – कभी प्रेरणार्थक क्रिया के प्रयोग से अकर्मक क्रिया सकर्मक बन गई है ।
जैसे - अकर्मक सकर्मक
बच्चा सोता है । माँ बच्चे को सुलाती है ।
यहाँ ‘सुलाती है’ प्रेरणार्थक क्रिया है ।
सकर्मक क्रिया का अकर्मक क्रिया के रुप में प्रयोग
जब सकर्मक क्रिया द्वारा केवल व्यापार (कार्य) प्रगट किया जाय और कार्य की आवश्यकता न समझी जाए तब वह अकर्मक हो जाती है । जैसे – वह सुनता है ।
यहाँ केवल यह अर्थ स्पष्ट हें कि वह सुन सकता है बहरा नही है । यहाँ ‘क्या सुनता है, बताना अभीष्ट नही । अत: सुनना क्रिया सकर्मक होते हुए भी अकर्मक है । यदि हम कहें कि “वह गीत सुनता है” तब वह क्रिया सकर्मक कहलाएगी ।
विशेष - हिन्दी में कुछ क्रियाओं का सकर्मक तथा अकर्मक – दोनों रुपों में प्रयोग होता है ।
जैसे - अकर्मक सकर्मक
(क) घड़ा भरता है । नौकर घड़ा भरता है ।
(ख) वह लजाती है । उसे मत लजाओ ।
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