Hindi, asked by shobha7973, 1 year ago

doha or sortha m diff

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Answered by mahendrasahu24p8yjgz
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दोहा अत्यंत लोकप्रिय छंद है। कबीर, तुलसी, रहीम, बिहारी इत्यादि कवियों ने इस छंद को आभा प्रदान की। बिहारी सतसई बिहारीलाल की एकमात्र रचना है, इसमें 719 दोहे संकलित हैं। गागर में सागर का अनुपम उदहारण प्रस्तुत करने वाली इस कालजयी कृति के बारे में सच ही  कहा गया है –

सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर।।

सोरठा

सोरठा रोला जैसा ही होता है, बस अंतर इतना है कि सोरठे में विषम चरणों में तुक होती है सम चरणों में तुक होना जरुरी नहीं है। दूसरा अंतर ये है कि सोरठे में सम चरणों के अंत में लघु वर्ण आता है।  बाकी संरचना समान ही है; विषम चरणों में ११ मात्राएँ तथा सम चरणों १३।

SI  SI   I I  SI    I S  I I I   I I S I I I

कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।

जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥

 S I  S I  I I  S I    I I I  I S  S I I  I I I
–रामचरितमानस

सोरठे के कुछ और उदहारण-

जुर-मिल तीनो भाय ,करी विदा दुई बहिना ।
सुमरी शरद माय ,कछु भार घटा कंधे से ।।१।।भैया ठाडे तीन ,साथ में स्यामाबाई ।
भीगे नयन मलीन ,दूर जात दुई बहना ।।२।।भई ओझल आँखिन सु ,बरात की बैलगाड़ी ।
उड़ गई सुगंध चन्दन सु ,आभा उडी सोने की ।।३।।

                                                –परमानंद


Answered by adarsh3385
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दोहा अत्यंत लोकप्रिय छंद है। कबीर, तुलसी, रहीम, बिहारी इत्यादि कवियों ने इस छंद को आभा प्रदान की। बिहारी सतसई बिहारीलाल की एकमात्र रचना है, इसमें 719 दोहे संकलित हैं। गागर में सागर का अनुपम उदहारण प्रस्तुत करने वाली इस कालजयी कृति के बारे में सच ही कहा गया है –

सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।

देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर।।

बिहारी सतसई के दोहे का उदाहरण-

मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई l

जा तन की झाईं परै श्यामु हरित दुति होई ll 1 ll

भव-बाधा = संसार के कष्ट, जन्ममरण का दु:ख

नागरि = सुचतुरा

झाईं = छाया

हरित = हरी

दुति = द्युति, चमक

वही चतुरी राधिका मेरी सांसारिक बाधाएँ हरें-नष्ट करें, जिनके (गोरे) शरीर की छाया पड़ने से (साँवले) कृष्ण की द्युति हरी हो जाती है l

नोट – नीले और पीले रंग के संयोग से हरा रंग बनता है l कृष्ण के अंग का रंग नीला और राधिका का कांचन-वर्ण (पीला) – दोनों के मिलने से ‘हरे’ प्रफुल्लता की सृष्टि हुई. राधिका से मिलते ही श्रीकृष्ण खिल उठते थे l

दोहे की संरचना

दोहा मात्रिक छंद है अर्थात इसमें मात्राओं की गणना की जाती है। दोहे के पहले एवं तीसरे चरण में १३ मात्राएँ जबकि दूसरे और चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। चरणान्त में यति होती है। विषम चरणों के अंत में ‘जगण’ नहीं आना चाहिए। सम चरणों में तुक होती है, तथा सम चरणों के अंत में लघु वर्ण होना चाहिए।

S I I I I I I S I I I I I I I I I I I S I

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।

बरनउं रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।

I I I I I I I I I I I I I S S I I I I S I

–श्री हनुमान चालीसा

दोहों के कुछ और उदहारण-

१) परमा खड़ा बज़ार में, ताकै चारों ओर।

ये नर लड़की ताक के, कभी न होता बोर।

२) यों परमा सुख होत हैं, स्टॉकर के संग।

हर फोटो देखत ह्रदय, बाजत ढोल मृदंग।

३) साईं इतना दीजिये, जासै कुटुम दिखाय।

मैं भी सिंगल ना रहूँ, खर्चा भी बच जाय।

४) इन्फी प्रोफाइल देख के दिया स्टॉकर रोय।

उसकी नज़र के सामने, सिंगल बची न कोय।

५) सिंगल देखन मैं चला, सिंगल न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा सिंगल न कोय।

६) बंदी ढूंढत जुग गया, फिरा न मनका फेर।

परमा जो अब ढूंढ़ ली, गई कहीं मुख फेर।

७) स्टॉक कर-कर जग मुआ, कमिटेड हुआ न कोय।

दुइ आखर ‘डूड’ का, पढ़े सो कमिटेड होय।

८) ‘परमा ‘वृक्ष -कुटुंब की ,बेटी है हरियाल ।

पतझड़ बाद जो न रहे ,सूनो रूख बिहाल ।–परमानंद

रोला

आचार्य संजीव‘सलिल’ के अनुसार….. रोला एक चतुश्पदीय अर्थात चार पदों (पंक्तियों ) का छंद है। हर पद में दो चरण होते हैं। रोला के ४ पदों तथा ८ चरणों में ११ – १३ पर यति होती है. यह दोहा की १३ – ११ पर यति के पूरी तरह विपरीत होती है ।हर पद में सम चरण के अंत में गुरु ( दीर्घ / बड़ी) मात्रा होती है ।

११-१३ की यति सोरठा में भी होती है। सोरठा दो पदीय छंद है जबकि रोला चार पदीय है। ऐसा भी कह सकते हैं के दो सोरठा मिलकर रोला बनता है।

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।

२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३

सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।

२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३

नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं।

११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३

बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है।

२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३

–– मैथिलीशरण गुप्त

सोरठा

सोरठा रोला जैसा ही होता है, बस अंतर इतना है कि सोरठे में विषम चरणों में तुक होती है सम चरणों में तुक होना जरुरी नहीं है। दूसरा अंतर ये है कि सोरठे में सम चरणों के अंत में लघु वर्ण आता है। बाकी संरचना समान ही है; विषम चरणों में ११ मात्राएँ तथा सम चरणों १३।

SI SI I I SI I S I I I I I S I I I

कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।

जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥

S I S I I I S I I I I I S S I I I I I

–रामचरितमानस

सोरठे के कुछ और उदहारण-

जुर-मिल तीनो भाय ,करी विदा दुई बहिना ।

सुमरी शरद माय ,कछु भार घटा कंधे से ।।१।।

भैया ठाडे तीन ,साथ में स्यामाबाई ।

भीगे नयन मलीन ,दूर जात दुई बहना ।।२।।

भई ओझल आँखिन सु ,बरात की बैलगाड़ी ।

उड़ गई सुगंध चन्दन सु ,आभा उडी सोने की ।।३।।

–परमानंद

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