Doha Rahim Das Ji ka ya Kabir Das ji ka koi accha Sa Hindi Ka Pani Ki Mata ke upar Ek Doha
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pani gye na oobre moti ,maanas ,choon
रहिमन पानी राखिए,बिनु पानी सि सून। पानी गए न ऊिरे , मोती, मानुष , चून ।। अर्थ – रिीम दास जी ने इस दोिे में 3 िार पानी शब्द का प्रयोग ककया िै और िर िार पानी शब्द का अलग मतलि िै। 1. पानी = प्रततष्ठा सम्मान 2. पानी = चमक 3. पानी = जल। प्रत्येक चीज़ के ललए पानी ििुत जरुरी िै बिना पानी के संसार कुछ भी निीं िै। इंसान को पानी यातन मान सम्मान िनाये रिना चाहिए। मोती को पानी यातन चमक िनाये रिनी चाहिए निीं तो उसका कोई मोल निीं रिेगा। और पानी यातन जल के बिना तो िर जीव का जीवन िी ित्म िो जायेगा।
तरुवर फल नहिं िात िै,सरवर पपयहि न पान। कहि रिीम पर काज हित ,संपतत सँचहि सुजान।। अर्थ – रिीमदास जी किते िैं कक पेड़ अपने फल िुद निीं िाता और समुद्र अपना पानी िुद निीं पीता। रिीमदास जी किते िैं कक सज्जन लोग िमेशा दूसरों के ललए जीते िैं। परोपकारी लोग सुि संपत्त्त भी केवल परोपकार के ललए िी जोड़ते िैं।
जो रिीम उत्तम प्रकृतत, का करर सकत कुसंग। चंदन पवष ब्यापत निीं , ललपटे रित भुजंग।। अर्थ – रिीमदास जी किते िैं कक जो लोग अच्छे पवचारों वाले और सज्जन िोते िैं उनपर दुष्टता का कोई प्रभाव निीं पड़ता िै। जैसे चन्दन के पेड़ पर सांप ललपटे रिते िैं लेककन कफर भी चन्दन अपनी िुशिु और गुण निीं छोड़ता।
टूटे सुजन मनाइए , जो टूटे सौ िार। रहिमन कफरर-कफरर पोहिए, टूटे मुक्तािार।। अर्थ – रिीम दास जी किते िैं कक अपने पप्रयजनों को रूठने पर मना लेना चाहिये। चािे वो सौ िार रूठें लेककन आपको अपने पप्रयजनों को जरूर मना लेना चाहिए। जैसे ककसी माला के टूट जाने पर िम कफर से मोती पपरोकर माला कोई जोड़ लेते िैं वैसे िी पप्रयजनों को भी रूठने पर मना लेना चाहिये
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से कफर ना जुड़े, जुड़े गांठ परर जाय।। अर्थ – रिीम दास जी किते िैं कक आपसी प्रेम और परस्पर सियोग की भावना रूपी धागा टूटने मत दीत्जये। क्योंकक अगर एक िार धागा टूट जाये तो दोिारा जोड़ने पर उसमें गाँठ पड़ जाती िै। वैसे िी ररश्ते टूटकर जि कफर से जुड़ते िैं तो मन में एक गाँठ िन जाती िै।
रहिमन देि िडिन को , लघु ना दीत्जये िारर जिा काम आवे सुई ,का करी िै तरवारर अर्थ – रिीम दास जी किते िैं कक िड़ी वस्तु को देिकर छोटी चीजों को फेंक निीं देना चाहिए। त्जस प्रकार जो काम सुई कर सकती िै वो काम कोई तलवार निीं कर सकती अर्ाथत िर चीज़ का अपना एक अलग मित्व िै चािे छोटी िो या िड़ी
किी रहिम सम्पतत सगे , िनत ििुत ििु रीत पवपतत कसौटी जे कसे , तेई सांचे मीत अर्थ – रिीमदास जी किते िैं कक जि तक संपत्त्त सार् िोती िै तो ििुत से ररश्ते और लमत्र िन जाते िैं लेककन पवपत्त्त के समय जो िमारा सार् देता िै विी सच्चा लमत्र िोता िै
“रहिमन तनज मन की बिर्ा, मन िी रािो गोय। सुनी इठलैिैं लोग सि, िांटी लैिैं कोय।” अर्थ – अपने मन के दुुःि को मन के अंदर िी तछपा कर रिना चाहिये क्योंकक दूसरों का दुुःि सुनकर लोग इठला भले िी लेते िैं लेककन उसे िांट कर काम करने वाले ििु कम लोग िोते िैं। अपनी पिुँचच बिचारर कै, करति कररए दौर। तेते पाँव पसाररए, जेती लांिी सौर।। अर्थ — कपव वृंद किते िैं कक मनुष्य को अपनी सामर्थयथ के अनुसार िी अपने लक्ष्य को तय करना चाहिए। अर्ाथत अपने जीवन में जो भी उसकी इच्छा िै, जो भी कामना िै, वो वि अपनी क्षमता के अनुसार िी तनधाथररत करें ताकक वि अपने लक्ष्य को, अपनी इच्छा को पूरा करने में सफल रिें। अपनी सामर्थयथ से अचधक अपनी क्षमता जाने बिना उससे ज्यादा िड़ा लक्ष्य तनत्श्चत कर लेना और उसे पाने का प्रयास करना मूिथता िै। कपव किता िै, कक त्जतनी अपनी चादर िै उतने िी पांव फैलाने चाहिये।