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यदि डॉक्टर होता तो मरीज़ो के स्वास्थ्य और इलाज़ को प्राथमिकता देता। मैं अपने निजी क्लिनिक को साफ़ सुथरा रखता। अपने कमरे में ऐसे कुर्सियां और बेड का इंतज़ाम करता, जिससे मरीज़ो को किसी भी प्रकार की तकलीफ ना हो।
मैं मरीज़ो से नम्रतापूर्वक बातें करता और मरीज़ो की परेशानी को गहराई से समझता। जो भी ज़रूरत है मरीज़ो को उसी के अनुसार उन्हें ब्लड इत्यादि टेस्ट करने के लिए कहता। मैं मरीज़ो के हर कथन को ध्यानपूर्वक सुनता, ना कि आजकल के कुछ डॉक्टरों की तरह, जो थोड़ा बहुत सुनकर पर्चे पर दवाई लिखकर मरीज़ो को थमा देते है।
मैं मरीज़ो की सही तरीके से जांच करता और फिर उन्हें ज़रूरत की दवाई और प्रत्येक दिन उन्हें खाने में क्या सेवन करना चाहिए इसके बारे उनको अच्छे से समझा देता।
मरीज़ो की आपातकालीन स्थिति में मैं सर्वप्रथम उस मरीज़ को प्राथमिकता देता। चाहे कितनी ही देर रात को मुझे रोगियों के इमरजेंसी कॉल्स आये, मैं हमेशा उनके सेवा में हाज़िर हो जाता।
रोगी का परीक्षण करते हुए रिश्तेदारों का हस्तशेप मैं सहन नहीं करता। मैं रिश्तेदारों की भावनाओ को समझता हूँ, मगर रोगियों की जांच के समय, मैं कोई हस्तक्षेप नहीं चाहता क्योकि इससे कहीं ना कहीं जांच में बाधा पड़ती है
अस्पताल में कार्यरत होने के बावजूद कभी रोगी को घर पर जाकर देखना पड़े तो मैं उसके लिए हमेशा तैयार रहूंगा। आजकल कुछ डॉक्टर रोगी की बीमारी को भली भाँती जानते हुए भी उसे बड़ी बीमारी घोषित कर देते है। ऐसा वे इसलिए करते है ताकि उन्हें अत्यधिक पैसा मिले।