Hindi, asked by rubymaurya8454, 5 months ago

easy on जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।​

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Answered by ivallithanmay
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भारत मेरी मातृभूमि है, यहाँ के अधिकांश लोग गाँवों में रहते हैं। यहां कई बड़े शहर भी हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई उनमें से कुछ हैं। भारत संतों का देश है। यह कालिदास, कबीर और गुरु नानक की भूमि है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। इसके उत्तर में, हिमालय दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत हैं। हिंद महासागर अपने दक्षिण में है भारत बड़े जंगलों, झीलों, घाटियों और नदियों का देश है। उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। भारत की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। यह हमें कई तरह की फसलें देता है। भारत शेरों, बाघों और हाथियों का देश है और भारतीय बहादुर और बुद्धिमान लोग हैं। वे शांतिप्रिय लोग हैं। मुझे अपने देश और यहां के लोगों पर गर्व है।

भारत मेरी मातृभूमि है, यहाँ के अधिकांश लोग गाँवों में रहते हैं। यहां कई बड़े शहर भी हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई उनमें से कुछ हैं। भारत संतों का देश है। यह कालिदास, कबीर और गुरु नानक की भूमि है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। इसके उत्तर में, हिमालय दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत हैं। हिंद महासागर अपने दक्षिण में है भारत बड़े जंगलों, झीलों, घाटियों और नदियों का देश है। उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। भारत की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। यह हमें कई तरह की फसलें देता है। भारत शेरों, बाघों और हाथियों का देश है और भारतीय बहादुर और बुद्धिमान लोग हैं। वे शांतिप्रिय लोग हैं। मुझे अपने देश और यहां के लोगों पर गर्व है।मैं भारत से प्यार करता हूं, सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया के सबसे पुराने नागरिकों में से एक, चेन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारतीय सभ्य लोग हैं। मेरे देश ने पुरु, रण प्रताप और शिवाजी जैसे नेताओं और जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे नेताओं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बागत सिंह और लाला लाजपत राय जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पादन किया है।

भारत मेरी मातृभूमि है, यहाँ के अधिकांश लोग गाँवों में रहते हैं। यहां कई बड़े शहर भी हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई उनमें से कुछ हैं। भारत संतों का देश है। यह कालिदास, कबीर और गुरु नानक की भूमि है। भारत एक बहुत बड़ा देश है। इसके उत्तर में, हिमालय दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत हैं। हिंद महासागर अपने दक्षिण में है भारत बड़े जंगलों, झीलों, घाटियों और नदियों का देश है। उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। भारत की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। यह हमें कई तरह की फसलें देता है। भारत शेरों, बाघों और हाथियों का देश है और भारतीय बहादुर और बुद्धिमान लोग हैं। वे शांतिप्रिय लोग हैं। मुझे अपने देश और यहां के लोगों पर गर्व है।मैं भारत से प्यार करता हूं, सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया के सबसे पुराने नागरिकों में से एक, चेन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारतीय सभ्य लोग हैं। मेरे देश ने पुरु, रण प्रताप और शिवाजी जैसे नेताओं और जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे नेताओं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बागत सिंह और लाला लाजपत राय जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पादन किया है।साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में मेरे देश ने रवींद्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद, सारा चंद्र, सी.वी. रमन, जगदीश चंद्र बोस और डॉ। अब्दुल कलाम जैसे महान नाम मुझे मेरे देश पर गर्व करते हैं। मेरा देश गाँवों और खेतों से भरा हुआ देश है। मुझे उनके गाँव पर गर्व है जहाँ से भारतीय सभ्यता आगे बढ़ रही है। हमारे देश के महान नेता गांवों से आए थे। हमारे खेतों को गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियों से पानी मिलता है। गंगा घाटी हमारे देश का सबसे उपजाऊ क्षेत्र है।

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Answered by sangeetagupta1303198
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जननी जन्मभूमिश्च पर निबंध | Essay on My Motherland in Hindi!

‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है । हमारे वेद पुराण तथा धर्मग्रंथ सदियों से दोनों की महिमा का बखान करते रहे हैं ।

माता का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय है। इसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है । लेखकों, कवियों व महामानवों ने जन्मभूमि की गरिमा और उसके गौरव को जन्मदात्री के तुल्य ही माना है ।

जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा उनका लालन-पालन करती है, अनेक कष्टों को सहते हुए भी बालक की खुशी के लिए अपने सुखों का परित्याग करने में भी नहीं चूकती उसी प्रकार जन्मभूमि जन्मदात्री की भाँति ही अनाज उत्पन्न करती है ।

वह अनेक प्राकृतिक विपदाओं को झेलते हुए भी अपने बच्चों का लालन-पालन करती है । अत: किसी कवि ने सच ही कहा है कि वे लोग जिन्हें अपने देश तथा अपनी जन्मभूमि से प्यार नहीं है उनमें सच्ची मानवीय संवेदनाएँ नहीं हो सकतीं ।

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।

हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”

माता की महिमा का गुणगान तीनों लोकों में होता रहा है । वह प्रत्येक रूप में पूजनीय है ।

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तभी तो माता को देवतुल्य माना गया है:

‘मातृ देवो भव ।’

पुत्र भले ही एक बार अपनी माता को भुला दे अथवा वह उसके साथ अनपेक्षित व अनुचित व्यवहार करे परंतु माता सदैव अपने पुत्र के लिए शुभकामनाएँ ही करती है । वह उसे निरंतर फलते-फूलते देखना चाहती है ।

जन्मदात्री की तरह ही जन्मभूमि का स्थान भी श्रेष्ठ है । जन्मभूमि भी तो माता का ही एक रूप है जहाँ हम हँसते-खेलते हुए बड़े होते हैं । उसी का अन्न खाकर हमारे शरीर और मस्तिष्क का विकास होता है । जन्मभूमि की संस्कृति और परंपरा हमारे चरित्र के निर्माण में प्रमुख भूमिका अदा करती है ।

अत: जिस प्रकार हम अपनी जननी से लगाव रखते हैं तथा उसके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं उसी प्रकार यह जन्मभूमि भी हमारे लिए उतनी ही वंदनीय है । इसकी रक्षा और सम्मान हमारा कर्तव्य है । इसकी रक्षा के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए ।

हमारे देश में ऐसे महामानवों व उनके सच्चे सपूतों के अनगिनत नाम इतिहास के पन्नों में अंकित हैं ज्न्हग्नं जन्मभूमि की आन, बान और शान के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की बलि दे दी । जिन्होंने न केवल अपनी जननी की कोख को अपितु अपने त्याग और बलिदान से संपूर्ण देश को गौरवान्वित किया है । इन शहीदों की अमर गाथाएँ आज भी युवाओं में देशप्रेम की भावना को जागृत करती हैं तथा उसे प्रबल बनाती हैं ।

किसी कवि ने सत्य ही कहा है :

”स्वदेश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल, असीम, त्याग से विकसित ।”

ADVERTISEMENTS:

जन्मभूमि के प्रेम के कारण ही महाराणा प्रताप ने अकबर से युद्‌ध में हारने के बावजूद उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की और वन में सहर्ष घास की रोटियाँ खाना स्वीकार किया । दूसरी ओर हमारे देश में कई ऐसे राजा भी हुए हैं जिन्होंने संभावित पराजय से डरकर अथवा लालच में आकर अपनी मातृभूमि को कलंकित किया ।

अत: जननी तथा जन्मभूमि दोनों ही वंदनीय हैं । दोनों ही अपना वात्सल्य अपने-अपने रूपों में पुत्र पर न्यौछावर करती हैं । इनकी रक्षा और सम्मान हमारा उत्तरदायित्व है । इनकी अवहेलना कर कोई भी देश अथवा समाज का व्यक्ति उन्नति नहीं कर सकता है । दूसरे शब्दों में, माता और जन्मभूमि के आदर-सम्मान के साथ ही मनुष्यता का पूर्ण विकास भी संलग्न है । जीवन की चरितार्थता भी तभी सिद्‌ध होती है ।

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