easy summary of patjhar mein tooti pattiyan
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पतझर में टूटी पत्तियाँ
पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ कहानी लेखक रविन्द्र केलेकर द्वारा दार्शिनिक रचनाएँ रची गई है जिसका नाम है
गिन्नी का सोना |इस कहानी में लेखक हमें शुद्ध सोना अर्थात् आदर्शवादी तरीके से रहने कि एवं और ताम्बे जैसे सख्त होने कि प्रेरणा देते हैं।
झेन की देन -लेखक इस रचना से जापान पहुंच जाते हैं | पाठ में पता चलता है की जापानी मनोरुग्न से ग्रस्त हैं | उनकी मन की गति को धीमा करने के लिए एक झेन जो उनकी पुर्वज थे चो नो यू आयोजित करते थे | इस विधि को और इससे होने वाले परिणाम के विषय में लेखक ने अच्छे से बताया हैं |
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प्रस्तुत पाठ के उप-शीर्षक झेन की देन लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | इस प्रसंग के माध्यम से लेखक कहते हैं कि वे एक बार जापान की यात्रा पर गए हुए थे | जब वे अपने एक दोस्त से पूछे कि यहाँ के लोगों को कौन सी बीमारी अत्यधिक होती है ? तो लेखक के सवाल पर उनके मित्र ने जवाब दिया 'मानसिक रोग' | आगे लेखक कहते हैं कि जापान के 80 प्रतिशत लोग मनोरोगी हैं | लेखक ने जब इस रोग का कारण जानना चाहा तो उन्हें अपने मित्र के द्वारा पता चला कि जापानियों के जीवन की रफ़्तार अत्यधिक बढ़ गई है | लोग चलते नहीं बल्कि दौड़ते हैं | अर्थात् महीनों का काम एक दिन में पूरा करने की कोशिश करते हैं | परिणामस्वरूप, एक समय ऐसा आता है, जब दिमाग़ी तनाव बढ़ जाता है | तत्पश्चात्, दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और इस प्रकार मानसिक रोगी की संख्या बढ़ते चले जाते हैं | शाम के वक़्त जापानी दोस्त लेखक को 'टी-सेरेमनी' में ले गए |
यह एक प्रकार का चाय पीने की विधि है, जिसे जापान में 'चा-नो-यू' कहते हैं | जहाँ पर लेखक अपने मित्र के साथ गए थे, वह एक छः मंजिली इमारत थी, जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारों वाली और चटाई की ज़मीन वाली एक खूबसूरत पर्णकुटी थी | बाहर पानी से भरा मिटटी का बर्तन था, जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए | अंदर में बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह की ओर इशारा किया | तत्पश्चात्, उसने अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी | लेखक को सारी क्रियाएँ खूब भा रही थीं | वातावरण इतना शांत था की चाय का उबलना भी स्पष्ट कानों में गूँज रहा था | जैसे ही चाय तैयार हुई, चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा और उसे तीनो दोस्तों के सामने पेश कर दिया | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, वे लोग ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद को लगभग डेढ़ घंटे तक पीते रहे | लेखक को ऐसा आभास हो रहा था, मानो वे अनंतकाल में जी रहे हों | उन्हें सन्नाटे की भी आवाज़ स्पष्ट सुनाई देने लगी थी | चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल विलुप्त हो गए थे | सिर्फ वर्तमान पल सामने था, जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था | लेखक के अनुसार, वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए | सही मानो में असल जीना किसे कहते हैं, लेखक को उस दिन एहसास हुआ...||
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