एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं
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एडवोकेसी का शाब्दिक अर्थ होता है “पक्ष समर्थन” या किसी की वकालत करना। “पक्ष समर्थन” या वकालत पत्रकारिता पत्रकारिता की एक शैली है जो जानबूझकर और पारदर्शी रूप से एक गैर-उद्देश्यीय दृष्टिकोण को अपनाती है, आमतौर पर कुछ सामाजिक या राजनीतिक उद्देश्य के लिए। क्योंकि यह तथ्यात्मक होने का इरादा है, यह आम प्रचार से अलग होती है। यह मीडिया के पूर्वाग्रह और मीडिया घरानों में निष्पक्षता की विफलताओं के उदाहरणों से अलग होती है, क्योंकि इसमें पूर्वाग्रह होने की संभावना होती है, जैसा कि आजकल की पत्रकारिता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, बीजेपी, कॉंग्रेस या अन्य बड़ी राजनीतिक पार्टियां विज्ञापन और पैसे के दम पर मीडिया घरानों को अपने विचारों और इरादों को जनता पर थोपने के लिए मजबूर करती है। “पक्ष समर्थन” पत्रकारिता में पत्रकार किसी व्यक्ति अथवा समूह विशेष के विचारों का खुलकर समर्थन अथवा पक्ष लेने के लिए बाध्य होता है, या जानबूझ समर्थन कर करता है।
परंपरागत रूप से, “पक्ष समर्थन” करना या वकालत और आलोचना संपादकीय और विचारों के लिए नियत पृष्ठों तक ही सीमित होती थी, जो प्रकाशन और संगठन की आंतरिक संरचना में स्पष्ट रूप से प्रतिष्ठित होती हैं। आप चाहें तो एक सबसे बेहतर समाचार पत्र “देशबंधु” हिन्दी में और अंग्रेजी के लिए “द हितवाद” का उदाहरण ले सकते हैं, इन समाचार पत्रों ने मध्य भारत में पत्रकारिता के उसूलों को ज़िंदा रखा है, और ये कभी भी “पक्ष समर्थन” मीडिया के रूप में अपने आप को प्रस्तुत नहीं करते हैं। समाचार रिपोर्टों का उद्देश्य व निष्पक्ष होना है। इसके विपरीत, “पक्ष समर्थन” करने वाले पत्रकारों की अपनी लिखी कहानी के बारे में एक राय होती है, जो उनके अपने विचार होते हैं। उदाहरण के लिए, राजनीतिक भ्रष्टाचार को दंडित किया जाना चाहिए, कि उपभोक्ताओं द्वारा अधिक पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाया जाना चाहिए, या यह कि सरकार की नीति व्यावसायिक हितों के लिए हानिकारक होगी और इसे अपनाया नहीं जाना चाहिए। यह छोटे तरीकों से स्पष्ट हो सकता है, जैसे कि बोलने के टोन या चेहरे की अभिव्यक्ति, या बड़े तरीके, जैसे कि तथ्यों और विचारों का चयन। इसका उदाहरण मैं आपको इलेक्ट्रोनिक मीडिया से श्री रजत शर्मा का देना चाहूँगा, वे कितनी ही शालीनता से किसी भी बात को रखते हैं, कोई चिल्ला-चोट नहीं, पर एकदम सटीक। दूसरा उदाहरण श्री प्रोनय रॉय हो सकते हैं। पर वहीं आप श्री अर्बन गोस्वामी या श्री दीपक चौरसिया द्वारा बातों को सामने रखने की शैली को देखिये, ये अपने व्यक्तिगत विचारों या फिर यूं कहें की किसी समूह अथवा सत्ता विशेष के विचारों या दृष्टिकोण को आप पर थोपने की कोशिश में लगे नज़र आते है, यह भी एक प्रकार का “पक्ष समर्थन” पत्रकारिता है।
“पक्ष समर्थन” करने वाले कुछ पत्रकार इस बात को अस्वीकार करते हैं कि निष्पक्षता का पारंपरिक आदर्श व्यवहार में, या तो आम तौर पर या विज्ञापन में कॉर्पोरेट प्रायोजकों की उपस्थिति के कारण असल तौर पर चरितार्थ कर पाना असंभव है। कुछ लोगों का मानना है कि विभिन्न प्रकार के मीडिया घरानों और उनकी प्राथमिकताओं के चलते सार्वजनिक हित के अलावा इस घरानों के आदर्शो व विचारों को आम जनता तक प्रिंट अथवा इलेक्ट्रोनिक माध्यम से पेश करना ही “पक्ष समर्थन” या वकालत पत्रकारिता है।
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