ek apathit gadyansh
Answers
Explanation:
माँ – न-न मेरे बेटे, मेरे लाल, ऐसे नहीं। अजी, जरा देखना, डॉक्टर क्यों नहीं आया! इसे तो कुछ ज्यादा ही तकलीफ़ जान पड़ती है। यह ‘ऐसे-ऐसे’ तो कोई बड़ी खराब बीमारी है। देखो न, कैसे लोट रहा है! जरा भी कल नहीं पड़ती। हींग, चरून, पिपरमटें – सब दे चकुी हूँ।
माँ – (कमर सहलाती हुई) क्या हो गया? दोपहर को भला-चंगा गया था। कुछ समझ में नहीं आता! कैसा पड़ा है! नहीं तो मोहन भला कब पड़ने वाला है! हर वक्त घर को सिर पर उठाए रहता है।
दीनानाथ – अजी, घर क्या, पड़ोस को भी गुलजार किए रहता है। इसे छेड़, उसे पछाड़, इसके मुक्का, उसके थप्पड़। यहाँ-वहाँ, हर कहीं मोहन ही मोहन।
पिताजी – बड़ा नटखट है।
वैद्य जी – (हर्ष से उछलकर) मैंने कहा न, मैं समझ गया। अभी पुड़िया भेजता हूँ। मामूली बात है, पर यही मामूली बात कभी-कभी बड़ों-बड़ों को छका देती है। समझने की बात है। मैंने कहा, आओ जी, दीनानाथ जी, आप ही पुड़िया ले लो।
(मोहन की माँ से) आधे-आधे घंटे बाद गरम पानी से देनी हैं। दो-तीन दस्त होंगे। बस फिर ‘ऐसे-ऐसे’ ऐसे भागेगा जैसे गधे के सिर से सींग!
मासस्टर – माता जी, मोहन की दवा वैद्य और डॉक्टर के पास नहीं है। इसकी ‘ऐसे-ऐसे’ की बीमारी को मैं जानता हूँ। अक्सर मोहन जैसे लड़कों को वह हो जाती है।
माँ – सच! क्या बीमारी है यह?
मास्टर – अभी बताता हूँ। (मोहन से) अच्छा साहब! दर्द तो दूर हो ही जाएगा। डरो मत। बेशक कल स्कूल मत आना। पर हाँ, एक बात तो बताओ, स्कूल का काम तो पूरा कर लिया है?
Answer:I think you will understand ok
Explanation: