Hindi, asked by bhumirgupta, 1 year ago

ek bhukamp pidit ki atmakatha


wishi: hey please ask ur questions properly or completely.

Answers

Answered by JackelineCasarez
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'भूकंप पीड़ित की आत्मकथा'

Explanation:

                             'भूकंप पीड़ित की आत्मकथा'

कल, मैं सो रहा था और अचानक, मुझे एक कंपकंपी सी महसूस हुई। उठकर, मैं बेडसाइड लैंप चालू करता हूं। रात के 3:34 बजे थे। मंजिल अब जोर से हिल रही है, और मैं खड़े होने की कोशिश करता हूं। एक उछाल मुझे पीछे की ओर फेंकता है।

अचानक मेरी 14 वीं मंजिल का होटल का कमरा जीवित हो जाता है, जैसे एक गुस्से में जानवर अपने दांतों में एक छोटे से जानवर से मिलाते हुए। पृथ्वी हिल गई और आस-पास की इमारतें हिंसक रूप से बह गईं कि मुझे लगा कि वे हमारे ऊपर आ सकती हैं। मैं एक बाड़ के खिलाफ शरण लेने और शरण लेने के लिए बदल गया, लेकिन मैदान के आंदोलन ने मेरा संतुलन खो दिया और मैं एक पल के लिए बाहर ब्लैक हेडिंग में भाग गया। बाद में, मैं कारों के दुर्घटनाग्रस्त होने और लोगों के चीखने और हाथ में तेज दर्द की आवाज़ के आसपास आया। दीवार के खंडों में उथल-पुथल थी, इसलिए मेरे दोस्त और मैं धूल के एक बादल के रूप में हमारे ऊपर से लुढ़के।

भूकंप हमेशा के लिए लग रहा था, और जब पृथ्वी ने बकल करना बंद कर दिया, तो घबराहट जल्दी से अंदर आ गई। लोगों को डर गया। मैंने अपने परिवार के बारे में सोचा और घर जाकर उन्हें पता चला कि वे ठीक हैं। जैसे-जैसे झटके कम होते गए, हम जानते थे कि हमें एक आश्रय बनाने के लिए क्या-क्या इकट्ठा करना होगा। हमने एक स्कूल के मैदान में कवर किया है, यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त खुला है कि हम एक और बड़े भूकंप के सामने भी सुरक्षित रहें।

लेकिन सौभाग्य से प्रभाव कम शक्तिशाली था और हम सभी ने हमें बचाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा किया।

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Answered by bhatiamona
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एक भूकंप पीड़ित की आत्मकथा :

भूकंप एक ऐसी त्रासदी है जो हमारे जीवन में कुछ घाव हमेशा के लिए छोड़ जाती है| सात माह पहले मेरे साथ ऐसी ही दुर्घटना घटी । सुबह के 7 बजे का समय था । मैं अपने कमरे में बैठ कर एक कविता लिख रहा था । अचानक से छत का पंखा हिलने लगा । एक पल के लिए तो मुझे कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है । मुझे तुरंत ध्यान आया कि ये तो भूकंप से हिल रहा है । मैंने जल्दी से अपना मोबाइल उठाया और बाहर की तरफ भागा । जब तक अपने दरवाजे से बाहर निकलता मेरे सामने से छत गिर गई। मैं फिर से पीछे हटा और अपनी खिड़की को खोल कर छलांग लगा दी ।

    दो मंज़िला इमारत से छलांग लगाना कोई आसान बात नहीं । बहुत हिम्मत चाहिए । नीचे पहुँचने से पहले मैं जिंदा रहूँगा या नहीं । कुछ नहीं जानता था । बस तय कर लिया कि कूद जाना है  जो होगा देखा जाएगा । नीचे पहुँचने से पहले ही मेरी आँखें बंद हो गई थी । जब आँख खुली तो मैंने अपने आपको अस्पताल में पाया । मेरी एक टांग व बाजू में प्लास्टर लगा हुआ था । मैं पूरे 2 दिन बाद होश में आया था । अखबार में भूकंप से हजारों की संख्या में मरने वालों की ख़बर देख कर आश्चर्यचकित रह गया । मैं उन किस्मत वालों में से एक था जो कि इमारतों के मलवे से जिंदा निकाला गया । हालांकि मेरी टांग व बाजू टूट चुकी थी परतुं  ज़िंदगी भूकंप रूपी भयानक मोड़ को पार कर जीत की खुशी मना रही थी । इस सदमें से उभरने में मुझे पूरे सात महीने लगे । आज अपने आपको जिंदा देख कर भाग्यशाली महसूस कर रहा हूँ।  

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