Ek phati pustak ki atmakatha
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मैं एक पुस्तक हूँ। मेरा जन्म एक कागज़की फैक्ट्री में हुआ। वहां पर मुझे कईपन्ने जोड़कर बनाया गया। मैं देखने में बहुत सुंदर थी। मेरे ऊपर के कवर पर सुंदर सुंदर फूल बने हुए थे। एक दिन एक विद्यार्थी ने मुझे खरीद लिया और अपने घर ले आया।उसने बड़े प्यार से मेरे कवर पर अपना नाम लिखा और मेरे पन्नों पर लिखने लगा। अगले दिन वह मुझे अपने बस्ते मेंरखकर स्कूल ले गया। उसने अपने सब साथियों को मुझे दिखाया। उन लोगों ने मेरी बहुत तारीफ करी।वह मुझे पाकर बहुत खुश था। वह प्रतिदिन मेरे पन्नों पर लिखकर पढ़ता था और मुझे अपने साथ रखता था। इस प्रकार कई साल बीत गए। वह बड़ा हो गया और मैं पुरानी हो गयी। धीरे धीरे मेरेपन्ने पीले और कमज़ोर हो गए। मेरे कागजों के किनारे फटने लगे और कई पन्ने निकल गए।इसलिए उसने मुझे अलमारी में एक जगह रखदिया। अब मैं फट गयी हूँ और यहीं रहती हूँ। वह कभी कभी मुझे देखने आता है और मुझे देखकर बहुत खुश होता है।
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नमस्कार मित्रो मै एक फटी पुस्तक हुं।
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